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महिलाओं से प्यार करने के पीछे कई वजूहात हैं, जिसमें से एक है उनकी कुदरती रचनाधर्मिता।
दो दिन पहले हमारी एक महिला मित्र से सियासत पर बात हुई। इनसे रु-ब-रु कभी नहीं मिल पाया हूँ लेकिन फेसबुक पर बड़ी बेबाकी से बात होती है - (इन बॉक्स एक खत मिला )
'जनतंत्र के समर्थक हो, समाजवाद, समता, सौहार्द्र, वगैरह सब जनतंत्र के ही हिस्से हैं, इनके चलते तुम जो लिखते हो लोगों को पसंद आता है (और भी बहुत तारीफें हुई हैं, उसे यहां नहीं दे रहा हूँ) लेकिन प्यारे ! यह निर्गुण है, इसे सगुण करो। तुमसे इस लिए खुल कर बोल रही हूं कि तुम’कांग्रेसी’ नहीं हो, तुम निखालिस ’कांग्रेस’ हो।
आजादी के पहले कांग्रेस थी, जो आजादी के बाद कांग्रेसी हो गईं।
इंसानी सभ्यता में एक शब्द है ख्वाहिश। ख्वाहिश हीन या उससे विरक्त होना, कर्म करते रहना कांग्रेस की पहचान थी, कालांतर जब सत्ता हाथ लगी तो ख्वाहिश ने अपना रंग बदला और कांग्रेस काँग्रेसी हो गया। पंडित नेहरू ने ठीक समय पर कांग्रेस के इस परिवर्तन को पकड़ लिया।
एक निश्चित समय यानी जंगे आजादी के समय यह काँग्रेस पंडित नेहरू के विचारों की वाहक थी, वही आजादी मिलते ही फिसलने लगी चुनांचे नेहरू ने सत्ता तंत्र को अपने विचारों का वाहक बनाना शुरू किया जिस पर पंडित नेहरू के निहायत अजीज 'राममनोहर’( डॉ राममनोहर लोहिया ) ने खुले आम नेहरू पर आरोप लगाया कि नेहरू कार्यकर्ताओं की अवहेलना कर रहे हैं। जवाब में पंडित नेहरू ने इस बात का खंडन नहीं किया बल्कि कारण और तर्क दिए कि किस तरह ये कार्य कर्ता भ्रष्ट हो रहे हैं। जिनमें चापलूसी, लालच और कई तरह के व्यसन उनमे आ चुके हैं।
मैं इसलिए ये सब तुम्हें लिख रही हूं कि स्थिति समझ लो। आज कांग्रेस सिकुड़ कर दो या ज्यादा से ज्यादा चार ’नामों’ तक जाकर रुक गयी है। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, सलमान खुर्शीद और चौथा ? बाकी कहाँ हैं ? कोई राशिफल बता रहा है कोई हाई ब्रीड के बीज की खूबी लिख रहा है। राजनीति पर आते समय राहुल या प्रियंका की आरती उतारेगा और गणेसी परिक्रमा पूरी कर चाटुकारिता पर जाकर जोर की सांस लेगा। इसे न कांग्रेस की जानकारी है, न रवायत की पहचान। गलती इसकी नहीं है गलती है कांग्रेस की। उसने आजादी के बाद 'कांग्रेस’ का साँचा तोड़ कर उसे 'कांग्रेसी’ खांचे में ढालने लगी, नतीजा रहा पंडित महावीर त्यागी, पंडित कमलापति त्रिपाठी की जगह आनंद शर्मा और गुलाम नबी आजाद और राजीव शुक्ला पैदा होने लगे।
चलो इस सवाल को छोड़ो, यह सत्ता का स्थायी भाव होता है। नए सिरे से कांग्रेस पैदा करो। मदरसा खोलो। उसे इतिहास, समाज, अर्थ, तंत्र सलीका बताओ। नई पौध तैयार करो। उसे बताओ कि सरकार और संगठन दो अलहदा ढांचा होता है। इस फर्क को समझाओ।
शुरू करो गांधी से।
प्रश्नावली तैयार करो, उसका जवाब मांगो। शिविर लगाओ। तुम जवाब मत देना।
एक सवाल के साथ खत बन्द कर रही हूं। बस। उम्हारी, तुम्हारी नहीं लिख रही हूं, तुमसे बड़ी हूं। एक सवाल नीचे है
गांधी ने कांग्रेस कब छोड़ा था ? '
चंचल
(वरिष्ठ पत्रकार, चित्रकार और गांधीवादी चिंतक चंचल जी की फेसबुक टिप्पणी साभार)