when events start to look like characters, then the composition does not remain simple
Advertisment
'नदी सिंदूरी' पर बोले प्रो. अभय कुमार दुबे
Advertisment
नई दिल्ली, 4 मार्च 2023: विख्यात समाज वैज्ञानिक और लेखक प्रो अभय कुमार दुबे ने कहा है कि जब घटनाएं और गतिविधियां चरित्रों की तरह दिखाई देने लगे तब वह रचना साधारण नहीं रह जाती। यह बात उन्होंने शिरीष खरे की सद्यः प्रकाशित पुस्तक नदी सिंदूरी का लोकार्पण करते हुए कही। उन्होंने कहा कि खरे की किताब अपने विवरणों में रेणु के मैला आँचल की याद दिलाती है।
Advertisment
विश्व पुस्तक मेला प्रांगण में 'राजपाल एण्ड सन्ज़' द्वारा आयोजित लोकार्पण समारोह में प्रो दुबे ने कहा कि इस किताब में रामलीला भी एक चरित्र के रूप में अंकित हुई है। किताब में आए अनेक पात्रों का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि गैर आदिवासी गांव में एक गोंड महिला का सरपंच बने रहना और लोगों का आपसी सौहार्द इस किताब को पठनीय बनाता है।
Advertisment
किताब के एक अध्याय में आई कल्लो गाय के वर्णन की प्रशंसा करते हुए कहा प्रो दुबे ने कि खरे की किताब व्यतीत जीवन के समृद्ध पक्षों का हृदयस्पर्शी चित्रण करती है।
Advertisment
समारोह में युवा आलोचक पल्लव ने नदी सिंदूरी को कथाकृति से अधिक कथेतर की किताब बताया। उन्होंने कहा कि पात्रों की आवाजाही और टूटते रूपबंध इसे भिन्न किस्म की विधा ठहराते हैं।
Advertisment
पल्लव ने खरे के लेखन में साधारण की प्रतिष्ठा को इधर की विशेष घटना बताया।
Advertisment
'राजपाल एण्ड सन्ज़' की निदेशक मीरा जौहरी ने कहा कि उनके प्रकाशन से खरे की पहली किताब 'एक देश बारह दुनिया' के भी तीन संस्करण आ चुके हैं।
अपनी रचना प्रक्रिया पर बोलते हुए खरे ने कहा कि नर्मदा की सहायक सिंदूरी नदी की इन कहानियों में नदी न सिर्फ गांव का भूगोल बनाती है बल्कि समुदाय को भी रचती है, जिसमें लोकरीति, लोकनीति,किस्से और कहावतों का ताना-बाना है।
समारोह के अंत में चंद्रशेखर चतुर्वेदी ने आभार ज्ञापित किया। आयोजन में पाठक, शोधार्थी और लेखक उपस्थित थे।
'एक देश बारह दुनिया' जैसी चर्चित पुस्तक के लेखक शिरीष खरे की 'नदी सिंदूरी' आत्मीय संस्मरणों का इन्द्रधनुषी वितान हमारे सामने खड़ा करती है, जिनमें पात्रों और उनके परिवेश का जीवंत चित्रण हमारे पुतलियों के परदे पर चलचित्र-सा गतिमान हो उठता है। नर्मदा की सहायक नदी सिंदूरी के किनारे का गांव मदनपुर के पात्रों की मानवीयता और विद्रूपता, जड़ता और गतिशीलता रचनाकार के सहज-स्वभाविक कहन के साथ स्वतः कथाओं में ढलती चली गई है।
मदनपुर सन् 1842 और 1857 के गोंड राजा ढेलन शाह के विद्रोह के कारण इतिहास के पन्नों में दर्ज है। लेकिन, नदी सिंदूरी की कहानी अब दर्ज हुई है। ये संस्मरण, ये कथाएँ सिंदूरी नदी के बीच फेंके गए पत्थर के कारण नदी के शांत जल की तरंगों जैसी हैं। नदी सिंदूरी से गुज़रते हुए महादेवी वर्मा की 'स्मृति की रेखाएं' और आचार्य शिवपूजन सहाय की 'देहाती दुनिया' की याद दिलाती हैं।
कौन हैं शिरीष खरे?
शिरीष खरे पिछले दो दशक से वंचित समुदायों के पक्ष में लिख रहे हैं। इस दौरान इन्होंने देश के चौदह राज्यों के अंदरूनी भागों की यात्राएं की हैं। इन्हें भारत पर उत्कृष्ट रिपोर्टिंग के लिए वर्ष 2013 में ‘भारतीय प्रेस परिषद सम्मान’ दिया गया। शिरीष को वर्ष 2009, 2013, 2020 में ‘संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष’ द्वारा ‘लाडली मीडिया अवार्ड’ सहित सात राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार मिल चुके हैं।
नदी के गाँव से by Shanti Suman | hastakshep | हस्तक्षेप | उनकी ख़बरें जो ख़बर नहीं बनते
When events start to look like characters, then the composition does not remain simple