जिन्ना तिलक का बहुत सम्मान करते थे. तिलक के अलावा वे गोखले का भी बहुत सम्मान करते थे. यह सम्मान तब भी कायम रहा जब जिन्ना मुस्लिम लीग के नेता हो गए
इतिहास के झरोखे से | लोकमान्य तिलक की पुण्यतिथि (1 अगस्त)
When Jinnah defended Tilak in sedition case
वर्ष 1908 में बंबई हाईकोर्ट ने लोकमान्य तिलक को 6 साल की सजा सुनाई. तिलक पर देशद्रोह (सेडिशन) का आरोप (Tilak was accused of sedition) लगाया गया था. शायद अंग्रेज सरकार द्वारा पहली बार किसी भारतीय नेता पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया.
सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद बंबई में दंगे हो गए. लोगों का गुस्सा फूट पड़ा. तिलक की सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की गई.
इस घटना का जिक्र करते हुए बंबई हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री एम. सी. छागला अपनी आत्मकथा ‘रोजेज इन दिसंबर‘ में लिखते हैं
“जिस दिन हाईकोर्ट में फैसला होना था उस दिन मैं कोर्ट गया सिर्फ तिलक महाराज के दर्शन करने के इरादे से. देशद्रोह के आरोप को लेकर तिलक की वकालत मोहम्मद अली जिन्ना ने की थी. उस दौर में जिन्ना की गिनती देश के बड़े वकीलों में होती थी. मैं तिलक के दर्शन करने सुबह-सुबह कोर्ट पहुंच गया. थोड़ी देर में तिलक आए और वे दूसरी पंक्ति में बैठ गए. उसके बाद जिन्ना आए और पहली पंक्ति में, तिलक का वकील होने के नाते उनके लिए आरक्षित सीट पर बैठ गए. इसके कुछ समय बाद फैसला सुनाया गया. तिलक को दी गई सजा रद्द कर दी गई. इसका श्रेय जिन्ना की जोरदार जिरह को दिया गया. फैसला सुनाए जाने के तुरंत बाद जिन्ना अपनी सीट से उठे और उन्होंने तिलक से हाथ मिलाया.”
छागला आगे लिखते हैं
“लंबे समय तक जिन्ना के संपर्क में रहने के दौरान मैंने पाया कि जिन्ना तिलक का बहुत सम्मान करते थे. तिलक के अलावा वे गोखले का भी बहुत सम्मान करते थे. यह सम्मान तब भी कायम रहा जब जिन्ना मुस्लिम लीग के नेता हो गए।”
– एल. एस. हरदेनिया
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
हमें गूगल न्यूज पर फॉलो करें. ट्विटर पर फॉलो करें. वाट्सएप पर संदेश पाएं. हस्तक्षेप की आर्थिक मदद करें