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जब एक पाकिस्तानी न्यायाधीश के सवाल पर निरुत्तर हो गए थे जस्टिस काटजू

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hastakshep
06 Mar 2021
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Justice Markandey Katju

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When Justice Katju was rendered speechless on the question of a Pakistani judge

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नई दिल्ली, 06 मार्च 2021. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश जस्टिस मार्कंडेय काटजू (Justice Markandey Katju, retired judge of Supreme Court of India) न्यायपालिका में उच्च मानदंड स्थापित करने के हिमायती रहे हैं। वह अक्सर न्यायपालिका की अंदरूनी बातों पर भी गंभीर टिप्पणी करते रहते हैं। जस्टिस काटजू ने “A Judge’s plight” शीर्षक से अपने सत्यापित फेसबुक पेज पर ऐसी ही एक टिप्पणी की है।

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अंग्रेजी में लिखी पोस्ट में जस्टिस काटजू ने बताया कि

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“वर्ष 2000 या 2001 में जब मैं इलाहाबाद उच्च न्यायालय में न्यायाधीश था, तब मुझे दिल्ली के एक सम्मेलन में आमंत्रित किया गया था जहाँ भारत के कई हिस्सों और कई देशों के न्यायाधीशों को आमंत्रित किया गया था। इनमें कुछ पाकिस्तानी जज भी थे। 1999 में जनरल परवेज मुशर्रफ द्वारा पाकिस्तान में तख्तापलट किए जाने के कुछ समय बाद यह घटना हुई थी।“

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उन्होंने लिखा

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“सैन्य शासन ने पाकिस्तान के संविधान को निलंबित कर दिया, और पाकिस्तान के संविधान आदेश को जारी करते हुए सभी पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को एक विशेष तिथि तक सैन्य शासन के प्रति निष्ठा की शपथ लेने का निर्देश दिया, जिसमें शासन द्वारा किए गए किसी भी कृत्य पर सवाल नहीं उठाने की शपथ भी थी। । ऐसा करने से इनकार करने से सभी वेतन और भत्तों के परिणामी नुकसान के साथ कार्यालय से स्वचालित बर्खास्तगी हो जाएगी।“

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उन्होंने लिखा कि जब सम्मेलन में बोलने की उनकी बारी आई, तो वह उठे, और वहां पाकिस्तानी जजों को संबोधित करते हुए कहा, "आपके पाकिस्तान में किस तरह की न्यायपालिका है?" ऐसी न्यायपालिका को कैसे स्वतंत्र माना जा सकता है? “।

इस पर, पाकिस्तानियों में से एक ने उठकर कहा “मैं जस्टिस काटजू को जवाब देना चाहूंगा। मेरा नाम नासिर असलम जाहिद है और मैं पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट का पूर्व न्यायाधीश हूं। उन्होंने कहा कि जिस दिन जनरल परवेज मुशर्रफ ने तख्तापलट किया, उसके बाद सुप्रीम कोर्ट के जजों ने आपस में एक बैठक की कि हमें क्या करना चाहिए। मैंने बैठक में कहा कि मैं ऐसी अनुचित शपथ नहीं लूंगा, और इस्तीफा दे रहा हूं।

जस्टिस ज़ाहिद ने कहा मैं एक साधन संपन्न परिवार से आता हूं और इसलिए मैं अपना वेतन और भत्ता छोड़ सकता हूं। मैंने इसके तुरंत बाद इस्तीफा दे दिया। हालाँकि, मेरे एक साथी ने बैठक में कहा “मेरी एक पत्नी और 5 बच्चे हैं, जिनमें से एक शारीरिक रूप से विकलांग है। मेरे बैंक खाते में केवल 50,000 रुपये हैं, और मैं साधन संपन्न परिवार से नहीं आता हूं। अगर मैं अपना वेतन और भत्ता खो देता हूं तो मेरा परिवार भूखों मर जाएगा। इसलिए मुझे शपथ लेनी है।

यह कहते हुए, न्यायमूर्ति ज़ाहिद ने पूछा “अब, न्यायमूर्ति काटजू, मुझे बताओ, आपने मेरे सहयोगी के स्थान पर क्या किया होता? “।

जस्टिस काटजू ने लिखा है,

“मैं मानता हूं कि मेरे पास जस्टिस जाहिद का कोई जवाब नहीं था।“

क्या जस्टिस काटजू की यह फेसबुक टिप्पणी भारत के मौजूदा संदर्भ में भी बहुत कुछ कहती है, जिसे जस्टिस काटजू ने कहा नहीं है, परंतु पढ़ने वालों ने समझ ही लिया होगा। थोड़े लिखे को बहुत समझना।





A Judge’s plight

Sometime in the year 2000 or 2001 when I was a judge in Allahabad High Court, I was invited to a...

Posted by Markandey Katju on Saturday, March 6, 2021

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