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बैंकों का महत्व क्या है?
हर व्यक्ति के जीवन में बैंक जैसी सुविधाओं का होना बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि हर व्यक्ति चाहता है कि वह जो कमाए, उसे बचाए और मुश्किल समय में उसका उपयोग करे. नौकरीपेशा वर्ग को भी अपना मासिक वेतन बैंक की सहायता से मिलता है. इसके साथ ही दिव्यांगों और अन्य लोगों को भी सरकार द्वारा दी जाने वाली पेंशन बैंक से ही मिलती है. ऐसे में बैंक मानव जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है.
डिजिटल इंडिया के दौर में बैंकों का महत्व
आर्थिक व्यवस्था को बेहतर ढंग से चलाने के लिए देश भर में असंख्य बैंक खोले गए हैं, जिससे लोग अपना जीवन बेहतर तरीके से व्यतीत करते हैं. डिजिटल इंडिया के इस दौर में इसका महत्त्व और भी अधिक बढ़ गया है. जम्मू-कश्मीर में भी कई जगहों पर बैंक खोले गए हैं, जिनसे लोग लाभ उठा रहे हैं. लेकिन अभी भी यहां के कई ऐसे दूर दराज़ के ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां बैंकों की शाखाएं खोलने की सख्त आवश्यकता है.
जिला पुंछ की जनसांख्यिकी (Demography of District Poonch)
जम्मू और कश्मीर के सीमावर्ती जिला पुंछ में कुल 11 ब्लॉक हैं, जिनमें तहसील मंडी में तीन ब्लॉक मंडी, लॉरेन और साथरा है. एक सर्वे के मुताबिक इन तीनों प्रखंडों की कुल आबादी करीब 99,772 है.
तहसील मंडी में जम्मू-कश्मीर बैंक की तीन शाखाएं हैं, जबकि मंडी प्रखंड में 17 पंचायतें और साथरा प्रखंड में 13 पंचायतें हैं. लेकिन इन क्षेत्रों में बैंक शाखाएं न होने से बड़ी आबादी प्रभावित हो रही है. पंचायत धर्रा, फतेहपुर, दीना धाकड़न, कहन्नो कलानी और हाड़ी बुदा जैसे दूर दराज़ गांवों के लोगों को बैंक से पैसा निकालने या जमा करने के लिए लगभग तीन घंटे पैदल चलना पड़ता है. जिससे उनका पूरा दिन बर्बाद हो जाता है. साथरा और लॉरेन में बैंक की शाखाएं तो हैं लेकिन इन क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए परिवहन की बेहतर सुविधा तक नहीं है. कई दिव्यांगों को अपनी पेंशन का पैसा लेने के लिए महीने में कई बार बैंक के चक्कर लगाने पड़ते हैं. इन उपरोक्त पंचायतों में बैंक की सुविधा नहीं होने के कारण सभी क्षेत्रों के लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
इस संबंध में साथरा ब्लॉक स्थित फतेहपुर गांव के निवासी 80 वर्षीय हकीम दीन शेख कहते हैं कि ''बैंक करीब नहीं होने के कारण मुझे प्रत्येक माह काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है." बैंक जाने के लिए मुझे एक आदमी को साथ लेकर जाना होता है, जिसका किराया भी मुझे ही अदा करनी होती है. कभी-कभी समय पर बस नहीं मिलने के कारण मुझे बैंक पहुँचने में देर हो जाती है.
उनका कहना है कि जब वे बैंक देर से पहुंचते हैं, तो लंबी-लंबी कतारें लगी होती हैं जिससे कई बार खाली हाथ लौटना पड़ता है. मंडी तहसील नजदीक होने के कारण इस गांव के सभी लोगों ने अपना बैंक अकाउंट वहीं खुलवाया है. जिससे बैंक पर ग्राहकों का बहुत अधिक भार है. वह कहते हैं कि कई बार मेरे साथ ऐसी घटनाएं हुई हैं कि जब तक मैं वहां पहुंचता हूं बैंक बंद होने का समय हो जाता है. फिर दूसरे दिन मुझे जाना पड़ता है. इस तरह मेरा दो दिन का नुकसान होता है. उन्होंने कहा कि जितनी मुझे पेंशन मिलती है उसका आधा केवल उसे प्राप्त करने में ही खर्च हो जाता है.
गांव के सरपंच मुहम्मद असलम कहते हैं कि "साथरा और लॉरेन में बैंक की सुविधा हमारे लिए महत्वहीन है, क्योंकि वह गांव से इतनी दूर है कि वहां पहुंचने तक बैंक बंद होने का समय हो जाता है. ऐसे में किराया और समय दोनों की बर्बादी होती है. यही कारण है कि गांव के लोग मंडी तहसील स्थित बैंक को प्राथमिकता देते हैं.
नाम नहीं छापने की शर्त पर एक बुजुर्ग महिला कहती हैं कि ''कभी-कभी ऐसा लगता है कि सरकार हमें वृद्धावस्था पेंशन नहीं, बल्कि आने जाने में होने वाली कठिनाइयों का भुगतान करती है. बैंक आने के लिए घर से एक घंटा पैदल चलना पड़ता है, फिर मुख्य सड़क पहुँच कर बस या ऑटो रिक्शा करनी पड़ती है, क्योंकि मेरे गांव में अभी तक कोई बस सेवा उपलब्ध नहीं है. यहां से एक तरफ का किराया 50 रुपये है. जब मैं वापस आती हूं तो उम्र के बढ़ने के कारण मुझे सांस लेने में तकलीफ होती है और मैं बीमार हो जाती हूं. जो 1000 रुपये पेंशन आती है वह मेरी दवाई पर ही खर्च हो जाती है. वह आगे कहती हैं कि कई बार इतनी दिक्कतों के बाद मुझे लगता है कि मैं मंडी बैंक से पेंशन लेने के बजाय शायद अपने लिए परेशानी खरीद कर लाती हूँ.
वहीं एक अन्य बुज़ुर्ग अब्दुल करीम कहते हैं, "गांव में इंटरनेट की बेहतर सुविधा नहीं होने के कारण हम डिजिटल बैंक की सुविधा का लाभ नहीं उठा पाते हैं. ऐसे में हमें बैंक स्टेटमेंट दर्ज करने के लिए पूरे दिन बर्बाद करना पड़ता है ताकि हम जान सकें कि पेंशन का पैसा हमारे खाते में आया है या नहीं?" अगर हमारे गांव में इंटरनेट की सुविधा होती तो हम डिजिटल माध्यम से अपना काम पूरा कर सकते थे अथवा आसपास कोई बैंक शाखा उपलब्ध होती तो हमें इतनी मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ता.
गांव फतेहपुर के युवक अशफाक अहमद का कहना है कि हमारे लिए इससे बड़ी परेशानी और क्या होगी कि खुद के पैसे निकालने के लिए हमें कई तरह की दिक्कतों से गुजरना पड़ता है. इस इलाके में अगर किसी के घर में मौत हो जाती है तो ज्यादातर लोगों के पास समय पर पैसे नहीं होते कि मृतक की अंतिम क्रिया और अन्य जरूरत की चीजें पूरी कर सकें, इसलिए उन्हें पैसा निकालने के लिए मंडी बैंक जाना पड़ता है और लंबी लाइन लगने पर उन्हें इससे होने वाली परेशान देख कर काफी दुःख होता है. हालांकि इस ग्रामीण क्षेत्र में बैंकिंग सुविधाओं की व्यवस्था समय की मांग है. सरकार लोगों की सुविधा के लिए ही व्यवस्था करती है. ऐसे में बैंक की सुविधाओं की व्यवस्था इस तरह की जाए कि आम लोगों को ही नहीं बल्कि वरिष्ठ नागरिकों, दिव्यांगों और महिलाओं को इसका पूरा लाभ मिल सके और उन्हें अपने ही पैसे प्राप्त करने के लिए इधर-उधर भटकने की जरूरत न पड़े.
स्थानीय लोगों को उम्मीद है कि जिला प्रशासन और एलजी उनकी चिंताओं को समझते हुए इन ग्रामीण क्षेत्रों के आसपास बैंक शाखाएं और एटीएम सुविधा उपलब्ध कराएँगे ताकि इन गांवों के लोग भी डिजिटल इंडिया की सुविधा से खुद को जुड़ा हुआ महसूस कर सकें.
शीराज़ अहमद मीर
मंडी, पुंछ
(चरखा फीचर)
When will the unfinished dream of Digital India be fulfilled?