/hastakshep-prod/media/post_banners/I9ZoIhg84t632XzAHlYA.jpg)
who am i film poster
Who Am I Review in Hindi | Who am i movie in hindi | ‘हू एम आई’ फिल्म समीक्षा
हम धरती पर क्यों आये... हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है... कौन हैं हम... एक आत्मा या शरीर...? को...अहम्! सदियों से इस सवाल का जवाब कई बुद्धिजीवियों ने खोजने की कोशिश की। यहाँ तक कि बुद्ध की विचारधारा से प्रेरित लोग तथा स्वयं बुद्ध भी इसी दर्शन की राह पर चलते नजर आये। यह बात और है कि उन बुद्ध ने स्वयं को पहचान कर ही इस मानव जीवन की व्याख्या की। लेकिन आज कौन इसके बारे में सोचता है पहला तो जेहन में सवाल यही उठता है। फिर कोई सोचता भी है तो वह बुद्ध तो नहीं हो जाता...?
दरअसल हम कौन हैं और हमारा जन्म क्यों हुआ है इस बहस में जो पार उतर गये उन्हें यह दुनिया जानने, मानने लगी।
अशोक जमनानी के उपन्यास ‘को अहम्’ पर आधारित फिल्म ‘हू एम आई’
फिल्म ‘हू एम आई’ की कहानी (Who Am I Movie Story) अशोक जमनानी के लिखे उपन्यास ‘को अहम्’ पर आधारित है, उसका नायक भी अपने में उलझा नजर आता है। सवाल है कि खत्म होने का नाम नहीं लेते। खुद को जानने, खुद की खोज के साथ-साथ वह दर्शन की गहराईयों में जब उतरने लगा तो उसने पाया की वह और उलझता जा रहा है। सवाल है कि खत्म होने पर नहीं आते और जवाब है कि उसे अपने उन्हीं सवालों का विस्तार नजर आते हैं।
‘हू एम आई’ फिल्म क्यों देखी जाए?
दर्शन से भरी इस भारी संवादों वाली फिल्म को आप कहेंगे कि भाई देखना ही क्यों? आम दर्शक तो मनोरंजन के लिए जाते हैं न! तो अरे भोले-भाले दर्शकों क्या तुम्हारे मन में कभी ऐसे सवालों ने जन्म नहीं लिया? अब आप यह मत कहना नहीं हमने ऐसा नहीं सोचा कभी! क्योंकि इस बारे में न सोचने वाला मनुष्य एक ही हो सकता है जिसे कहते हैं चेतनाहीन मनुष्य। और आप ठहरे बुद्धिमान, सजग दर्शक तो सोचेंगे क्यों नहीं भला...?
खैर अव्वल तो साहित्य पर आधारित फ़िल्में बॉलीवुड में कम ही देखने को मिलती हैं। फिर वे जो अपने अस्तित्व को खोजने की बात करती हों या उस आत्मा की जिसके बारे में शास्त्रों तक में कहा गया कि आत्मा केवल बदलती है कपड़े, शरीर रूपी...! लेकिन वह इन्हें कब बदलेगी यह कोई नहीं बता सकता। अब जब ऐसी कहानी आप देखेंगे जिसमें दर्शन भी है और दर्शन के सहारे अध्यात्म की राह भी तो क्या उसे सराहेंगे नहीं! फिर जैसे यह फिल्म बताती है कि दूर चले जाना बिछड़ना नहीं होता। लेकिन कुछ लोग एक कमरे में रहते हुए भी बिछड़ चुके होते हैं। तो आप स्वयं जो अपने आपसे ही दशकों से बिछड़े हुए हैं उसका क्या भला...?
ऐसी फ़िल्में देखकर आप अपने स्वयं के करीब तो आते ही हैं साथ ही मृत्यु के बाद हमारा क्या होता है...? हमारी आत्मा का राज क्या है...? जैसे सवालों का अंत भी अपने भीतर पाते हैं।
नायक के बहाने एक यात्रा करती नजर आती है यह फिल्म
इस यात्रा में फिल्म स्वयं ही बताती है कि यात्राओं का कभी अंत नहीं होता बल्कि उसका तो अंत तब होता है जब हमारा अंत होता है। साथ ही यह फिल्म जिस त्याग की बात करती है उसमें देह, बुद्धि, मन के सुखों का त्याग तो है ही साथ ही उस नायिका के किये गये त्याग पर भी बात करते हुए यह फिल्म दर्शन की राह पर चलती हुई सच्चा सुख देती नजर आती है। हम सांस क्यों लेते हैं... जीवन क्यों जीते हैं... जब हम सो जाते हैं तो क्या होते है... मृत्यु के बाद हमारा क्या होता है...?
खोज, शांति, क्रोध, उत्सव, मृत्यु, वेदांत, भक्ति, लीला, तप, जीवन आदि जैसी बातों के सवाल एक संजीदा दर्शक अवश्य जानना चाहता है। यदि आपमें भी एक संजीदा दर्शक मौजूद है तो देखिए तथा सराहिये ऐसी फिल्मों को अन्यथा वही कचरा देखते रहिए जो अब तक देखते आ रहे हैं।
यह फिल्म अहम् और मम् को पीछे छोड़ अद्वैत को स्थापित करती है। साथ ही उस अद्वैतवाद की व्याख्या की पुष्टि भी करती नजर आती है जिसके मतानुसार हम सब एक आत्मा से ही बने हैं। अद्वैतवाद के मतानुसार ब्रह्मांड एक प्रतीति है जो कि दृष्टिभ्रम की वजह से वास्तविक लगता है लेकिन इनकी सत्ता को मान लिया जाए तो फिर जिन चीजों से हम खुद की पहचान करते हैं तो वो सब भी दृष्टिभ्रम से बने! द्वैत और अद्वैत को साथ लेकर एक अलग तरह की प्रेम कहानी दिखाती इस फिल्म के हर सवाल का उत्तर उस सवाल की अधिकता ही नजर आता है। यही वजह है कि साधारण होकर भी यह असाधारण तथा असाधारण होकर भी यह साधारण रहने की बात करती है क्योंकि साधारण रहना आसान नहीं होता।
शिरीष खेमरिया के निर्देशन की पहली फिल्म है ‘हू एम आई’
/hastakshep-prod/media/post_attachments/FIZ5qhrNGxkJaPn19F5h.jpg)
निर्देशक शिरीष खेमरिया अपनी पहली ही फिल्म से अपनी निर्देशन क्षमता की वह लकीर खींच देते हैं जिससे इतना विश्वास तो जगता है कि अगली बार वह इससे भी एक कदम आगे का निर्देशन करते नजर आएंगे। ऐसी फ़िल्में बौद्धिक वर्गों द्वारा ज्यादा सराही जाती हैं। इसी का परिणाम रहा कि एक दर्जन से ज्यादा यह फिल्म समारोहों में विभिन्न कैटेगरी में ईनाम भी हासिल कर आई। अशोक जमनानी के लिखे उपन्यास की कहानी को उनके ही साथ मिलकर कलोल मुखर्जी ने जो संवाद लिखे वे दर्शन तथा बुद्ध से प्रेरित नजर आते हैं। तथा स्क्रीनप्ले फिल्म की कहानी के मुताबिक़ चलता हुआ जब भी आपको भारीपन महसूस कराने लगता है तो उसको हल्का करने के लिए कर्णप्रिय गाने भी देखने, सुनने को मिलते हैं।
शशांक विराग की सिनेमैटोग्राफी, अभिनव सिंह का म्यूजिक और गीत-संगीत, जहनब रॉय का साउंड, सक्षम यादव की एडिटिंग, शाश्वत कौरव, मुस्कान ठाकुर का वीएफएक्स, प्रशांत शर्मा की कलरिंग, कैमरामैन द्वारा लिए गये सुंदर दृश्य तथा चेतन शर्मा, सुरेंद्र राजन, ऋषिका चंदानी, शशि वर्मा, कुसुम लता शास्त्री, सुबीर कसली, गौरव कांबले आदि का अभिनय वह काम कर जाते हैं कि यह फिल्म लम्बे समय तक असर जरूर छोड़ जाती है।
अपनी रेटिंग - 4 स्टार
तेजस पूनियां