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कौन कर सकता है भाजपा की हेट पॉलिटिक्स को ध्वस्त !

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hastakshep
11 Jan 2020
New Update
एनआरसी भारत विभाजन से अधिक त्रासद परिणामों वाला फैसला होगा।

Who can destroy the hate politics of BJP!

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देश को अभूतपूर्व अशांति में झोंकने वाला नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 (Citizenship Amendment Act 2019), जिसका उद्देश्य पाकिस्तान, बांग्लादेश, और अफगानिस्तान से आये 6 समुदायों (हिन्दू, इसाई, सिख, जैन, बौद्ध तथा पारसी) के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देना रहा है, के लोकसभा में पास हुए एक महीने हो चुके हैं. नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के साथ राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर- National population register (एनपीआर) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (national register of citizenship in hindi) (एनआरसी) के मुद्दे पर गत 9 दिसंबर से शुरू हुआ आन्दोलन थमने का नाम नहीं ले रहा है.

आज सीएए और एनआरसी ख़त्म करवाने को लेकर नेता, बुद्धिजीवियों, छात्रों के साथ फिल्म जगत की हस्तियाँ तक अभूतपूर्व रूप से आंदोलित हो चुकी हैं. सीएए को भेदभावपूर्ण मानते हुए लगभग दर्जन भर राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने इसे अपने राज्य में न लागू करने की घोषणा कर दिया है.

एनआरसी (national register of citizenship 2019) न लागू हो तथा सीएए पर सरकार पुनर्विचार करे, इसके लिए ‘राष्ट्र मंच’ के बैनर तले 9 जनवरी को मुंबई के गेटवे ऑफ़ इंडिया से 3000 किलोमीटर की गाँधी शांति यात्रा शुरू हो चुकी है, जो महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा से होते हुए 30 जनवरी को राजघाट पर समाप्त होगी.

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इस बीच इस मुद्दे पर दिल्ली के शाहीन बाग में आंदोलनों का एक नया अध्याय जुड़ गया है. वहां 26 दिन से महिलाओं का धरना-प्रदर्शन जारी है, जिसमें ढेरों ऐसी महिलाएं तक शिरकत कर रही हैं, जिन्होंने जीवन में किसी धरना-प्रदर्शन में कभी भाग नहीं लिया. सर्दी और बारिश को चुनौती देती इन महिलाओं के चेहरे पर छाई दहशत और पीड़ा नागरिकता संशोधन विरोधियों को नया हौसला दे रही है.

बहरहाल देश के छात्र, नेता, एक्टिविस्ट, लेखक, कलाकार, मुस्लिम समुदाय के स्त्री- पुरुष अगर सीएए, एनपीआर, एनआरसी के खिलाफ मुखर हैं तो राष्ट्रवादी बुद्धिजीवी भी चुप नहीं बैठे हैं. वे जोर गले से इसके विरोध में खड़े लोगों को राष्ट्र की संपत्ति को नुक्सान पहुँचाने वाला गुंडा, मुस्लिमपरस्त, पकिस्तान के सुर में सुर मिलाने वाले राष्ट्रविरोधी प्रमाणित करने में जुट गये हैं.

बात यहीं तक सीमित नहीं है, इस पर विपक्ष के कथित झूठ का पर्दाफाश करने के लिए भाजपा नेतृत्व ने महासंपर्क अभियान छेड़ दिया है. इसके तहत वे घर-घर जाकर पुस्तिकाएं बाँट रहे हैं; बैठक व सभाओं के जरिये इस पर अपना पक्ष रख रहे हैं. इस में उनका सबसे ज्यादा जोर यह बताने पर है कि किस तरह एक ओर जहाँ पकिस्तान में हिन्दू आबादी घटी, वहीँ भारत में मुस्लिम आबादी बढती गयी है .

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देखा जाय तो भाजपा नेतृत्व ने इस महासम्पर्क अभियान के जरिये सीएए के विरोधियों के समानांतर अपने समर्थकों को सडकों पर उतार दिया है जो सीएए के समर्थन में स्लोगन लिखे पोस्टरों को हाथ में लिए ‘ मैं हूँ सीएए समर्थक’ और ‘भारत माता की जय’ के नारों गली- चौराहों को गुंजित किये जा रहे हैं.

Today, the country seems to be divided into two parts on the issue of CAA and NRC.

आज देश सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर दो भागों में बंटता दिखाई दे रहा है, जिसमें विपक्ष का अधिकतम जोर यह बताने में है कि सीएए, एनपीआर और एनआरसी के पीछे मोदी सरकार की मंशा बेरोजगारी, शिक्षा और सवास्थ्य के निजीकरण, महंगाई, और सार्वजानिक क्षेत्र की कम्पनियों के बिक्री जैसे वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाना है. लेकिन विपक्ष ऐसा कह रहा है तो शायद इच्छाकृत रूप से अर्द्ध-सचाई बता रहा है.

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इसमें कोई शक नहीं कि सरकार इसके जरिये उपरोक्त मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए यह सब कर रही है, लेकिन असल सचाई तो यह है कि उसने 2022 में यूपी और उससे भी बढ़कर 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए मुस्लिम विद्वेष के प्रसार पर निर्भर डॉ. हेडगेवार के उस ‘हेट-पॉलिटिक्स’ की एक नयी पारी का आगाज कर दिया है, जिसके सहारे ही कभी दो सीटों पर सिमटी भाजपा नयी सदी में अप्रतिरोध्य बन गयी.

What was Dr. Hedgewar's hate politics

डॉ.हेडगेवार की हेट पॉलिटिक्स क्या थी, जिसके समक्ष विपक्ष बार-बार मात खाया एवं जिसके जोर से ही भाजपा आज केंद्र की सत्ता पर मजबूती से काबिज है, इसकी विस्तृत जानकारी गत दिनों इसी अख़बार में छपे लेख में दी गयी है.

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खैर! विपक्ष जितना जल्दी यह समझ ले कि भाजपा ने राममंदिर और अनुच्छेद-370 जैसे मुस्लिम विद्वेषकारी मुद्दों की जगह सीएए-एनआरसी के एक बार फिर उस हेट-पॉलिटिक्स का गेम-प्लान कर दिया है, जिसकी काट करने में विपक्ष बराबर व्यर्थ रहा है, तो वह उतना ही लाभ में रहेगा.

अब यहां सवाल पैदा होता है कि भाजपा ने अगर हेट पॉलिटिक्स का अचूक हथियार फेंक दिया है तो उसे रोकेगा कौन?

इस सवाल का जवाब ढूँढने के लिए दो बातों को ध्यान में रखना होगा.
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पहला, यह कि भाजपा नेतृत्व सुपरिकल्पित रूप से मंदिर आन्दोलन की भांति फिर एक बार उस यूपी को केंद्र बनाता दिख रहा है, जहाँ से देश की राजनीति की दिशा तय होती है.

और दूसरा, यह कि भाजपा हेट पॉलिटिक्स में इसलिए कामयाब हो जाती है क्योंकि इसके झांसे में वे निरीह दलित, आदिवासी और पिछड़े आ जाते हैं, जिनका संख्या-बल चुनावी राजनीति का सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर है. इसमें सवर्ण और मुस्लिम वर्ग गौण है, क्योंकि जहाँ सवर्ण समुदाय के अधिकतम लोग हर हाल में भाजपा के पक्ष में जायेंगे, वहीं मुस्लिम समुदाय का रुख भी तय है. ऐसे में हेडगेवारवादी जिस वर्ग को लुभाने के लिए नफरत का खेल खेलते हैं, वह दलित, आदिवासी और पिछड़ा वर्ग हैं. अतः विपक्ष यदि भाजपा के हेट पॉलिटिक्स की काट करना चाहता है तो उसे ऐसा कुछ करना होगा कि संघ ने बहुजनों के जेहन में वर्ग- शत्रु के रूप में मुसलमानों की जो छवि बिठाई है, उसकी जगह भारत का विशेषाधिकारयुक्त सुविधाभोगी तबका ले, जिसके हित-पोषण के लिए ही संघ वजूद में आया. और इस किस्म का वर्ग-निर्माण करने लायक वर्तमान में अभूतपूर्व स्थितियां और पारिस्थितियाँ पूंजीभूत हैं.

कारण, मंडल के विरोध में मंदिर आन्दोलन के सहारे भाजपा ने केंद्र की सत्ता पर जो कब्ज़ा जमाया, उसका अधिकतम इस्तेमाल उसने मुख्यतः अपने वर्ग-शत्रु बहुजनों को फिनिश तथा जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग को अतिशक्ति-संपन्न करने में किया है. आज संघवादी सत्ता के सौजन्य से बहुजन उन स्थितियों में पहुँच गए हैं, जिन स्थितियों में दुनिया के तमाम वंचितों को स्वाधीनता संग्राम की लड़ाई लड़नी पड़ी है.

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आज मोदी –राज में एक ओर जहाँ दलित-आदिवासी और पिछड़े गुलाम बनते जा रहे हैं, वहीं हिन्दू आरक्षण के अल्पजन सुविधाभोगी वर्ग का शक्ति के समस्त स्रोतों(आर्थिक-राजनीतिक-शैक्षिक-धार्मिक) पर औसतम 80-90 प्रतिशत कब्ज़ा होते जा रहा है. शक्ति के स्रोतों पर सुविधाभोगी वर्ग के अभूतपूर्व कब्जे से वंचित बहुजन जिस पैमाने पर सापेक्षिक वंचना(रिलेटिव डिप्राइवेशन ) के शिकार हुए हैं, उसका भाजपा-विरोधी यदि कायदे से अहसास करा दें तो मुस्लिम विद्वेष के जरिये भाजपा के हेट –पॉलिटिक्स की सारी चाल बिखर कर रह जाएगी. क्योंकि तब बहुसंख्य लोगों की नफरत विशेषाधिकारयुक्त सुविधाभोगी वर्ग की ओर शिफ्ट हो जाएगी.

अब यहां सवाल पैदा होता है, देश में वह कौन सा नेता है जो बहुजनों में सापेक्षिक-वंचना का अहसास तुंग पर पहुंचा कर भाजपा के हेट पॉलिटिक्स का खेल ध्वस्त कर सकता है?

देश में इस समय नागरिक संशोधन कानून के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखर ममता बनर्जी, प्रियंका गांधी, अरविन्द केजरीवाल, सीताराम येचुरी, कन्हैया कुमार इत्यादि दिख रहे हैं. लेकिन इनकी त्रासदी यह है कि इनका वर्गीय हित वही है, जो संघियों का है. ऐसे में वे यह तो कह सकते हैं कि सीएए, एनपीआर और एनआरसी के पीछे मोदी सरकार की मंशा बेरोजगारी, शिक्षा और सवास्थ्य के निजीकरण, महंगाई, और सार्वजानिक क्षेत्र की कम्पनियों के बिक्री जैसे वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाना है. किन्तु वे बहुजनों की सापेक्षिक वंचना को उभारने की जोखिम नहीं उठा सकते. वे समाज के विभिन्न वर्गों- किसानों, मछुआरों, अल्पसंख्यकों, दलित, आदिवासियों, बेरोजगारों को भाजपा की हेट पॉलिटिक्स के खिलाफ संगठित करने का तो कुछ उपक्रम चला सकते हैं, पर, सीधे उन दलित, आदिवासी और पिछड़ों को उद्वेलित करने का काम नहीं कर सकते जिनको अपने पाले में करने के लिए ही भाजपा हेट पॉलिटिक्स की नयी पारी का आगाज की है. यह काम कोई बेहतर तरीके से अंजाम दे सकता है तो सपा के अखिलेश यादव ही दे सकते हैं.

अखिलेश यादव अब वह नहीं रहे जिन्होंने कभी ठेकों में दलितों के आरक्षण के खात्मे का जैसा सामाजिक न्याय विरोधी काम अंजाम दिया था. विगत वर्षों में जिस तरह यूपी के सीएम योगी ने उनके आवास का शुद्धिकरण किया, उससे उनमे शुद्र्त्व का अहसास पैदा हुआ है. इसलिए अब वह मंचों से ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी’ का नारा खुलेआम बुलंद कर रहे हैं. इसीलिए उन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को शिकस्त देने के लिए अपना भारी नुकसान उठाते हुए भी बसपा सुप्रीमो मायावती से चुनावी गठबंधन किया था. उनके उस प्रयास से भाजपा की सवर्णपरस्त नीतियों से त्रस्त बहुजनों में उनकी नयी छवि बननी शुरू हुई. ऐसे में जब बसपा सुप्रीमो ने बेबजह सपा से सम्बन्ध विच्छेद किया, सभी बहुजनों, विशेषकर बहुजन बुद्धिजीवियों में उनके प्रति सहानुभूति का सैलाब उमड़ा. यह बात और है कि उन्होंने उसका सदव्यवहार करने का प्रत्याशित प्रयास नहीं किया. पर, अब वह इस दिशा में अग्रसर होते दिख रहे हैं, जिसका बड़ा साक्ष्य उन्होंने राम कारण निर्मल को सपा के लोहिया वाहिनी का प्रदेश अध्यक्ष बना कर प्रस्तुत किया है.

दलित समुदाय में जन्मे राम करन निर्मल वही छात्र नेता हैं, जिन्होंने रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के बाद प्रधानमंत्री मोदी की आँख में आँख डालकर बताया था कि उनकी सरकार दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के छात्रों की सांस्थानिक हत्या कर रही है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जायेगा. ऐसे व्यक्ति को देश की राजनीति का दिशा तय करने वाले उत्तर प्रदेश में लोहिया-वाहिनी की कमान सौंपकर अखिलेश यादव ने बहुजनों के मध्य एक बड़ा सन्देश दे दिया है.

ऐसे में विपक्ष अगर अतीत की भांति धर्मनिरपेक्षता का तोता रटंत न करके भाजपा के हेट पॉलिटिक्स की काट करना चाहता तो उसे अपनी रणनीति अखिलेश यादव को केंद्र में रखकर स्थिर करने के लिए आगे बढ़ना होगा .

एच..एल.दुसाध

(लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.)

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