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प्रदूषण के लिए कौन जिम्मेदार? Who is responsible for pollution?
देशबन्धु में संपादकीय आज | Editorial in Deshbandhu today
देश में दीपावली के बाद से वायु प्रदूषण बेहद बढ़ गया है। ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है। साल दर साल ऐसा ही होता जा रहा है। पिछले कुछ बरसों में इसे लेकर कुछ जागरुकता फैलना की कोशिश भी जा रही है। लोगों से अपील की जा रही है कि बिना पटाखों के दीपावली मनाएं, लेकिन समाज का एक बड़ा तबका इसे हिंदू धर्म पर प्रहार की तरह देखता है। धूल, धुएं और शोर के साथ दीपावली मनाना वह अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानता है। इस तबके के पास लाखों रूपए पटाखों पर उड़ाने के लिए होते हैं। कोई अपने पैसे कैसे उड़ाए, ये उसकी मर्जी है, लेकिन जब पटाखों से दूसरों की जान पर बन आती है, तो सवाल उठना लाजिमी है। इस समस्या का निवारण करने का जिम्मा सरकार का है, लेकिन सरकार इसमें भी दूसरों का दोष निकालने में लगी है।
गौरतलब है कि हाल ही में जारी दुनियाभर के एयर क्वालिटी इंडेक्स पर निगरानी रखने वाली संस्था (Air Quality Index Monitoring Organization) आईक्यू एयर के वायु गुणवत्ता सूचकांक में 10 शहरों की सूची में 556 अंकों के साथ दिल्ली टॉप पर है, कोलकाता 177 एक्यूआई के साथ चौथे नंबर पर और 169 एक्यूआई के साथ मुंबई छठे नंबर पर रहा है। दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में 3 तो भारत में ही हैं और उसमें भी दिल्ली सबसे अधिक प्रदूषित है। बधाई हो मोदी सरकार को, जिसके राज में भारत केवल गलत चीजों में टॉप पर रह रहा है। भूख के मामले में हम आगे रहे, कुपोषण के मामले में हम आगे रहे, मानवाधिकार हनन और लोकतंत्र के लिए खतरनाक परिस्थितियां हमारे यहां बनीं, कोरोना में तो हम रिकार्ड ब्रेक करने ही वाले थे और अब प्रदूषण में भी हमने दुनिया को पीछे कर दिया है।
सरकार कह सकती है कि प्रदूषण के आंकड़ों में गड़बड़ी है, क्योंकि भूख के मामले में यही कुतर्क पेश किया गया था। लेकिन जब सांस लेने में घुटन महसूस हो तो, हवा कैसी है, ये समझने के लिए किसी आंकड़े की जरूरत नहीं पड़ती।
सरकार की लापरवाही और एयर प्यूरीफायर घर में रखने वाले अमीरों की बदतमीजी के कारण दीपावली पर खूब पटाखे चले, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के साथ-साथ पर्यावरण की भी धज्जियां उड़ीं।
शनिवार को प्रदूषण के मुद्दे पर दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई (Hearing in the Supreme Court on a petition filed on the issue of pollution) हुई, जिसमें मुख्य न्यायाधीश एन वी रमण ने सीधे सरकार से सवाल पूछे। उन्होंने कहा कि आप देख रहे हैं कि स्थिति कितनी खतरनाक है। हमें घरों पर भी मास्क लगाकर बैठना पड़ेगा। आखिर क्या कदम उठाए जा रहे हैं।
इस पर केंद्र की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वायु प्रदूषण का पहला कारण पराली जलाया जाना है।
श्री मेहता ने कहा कि किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए कुछ नियम होने चाहिए, जिससे राज्य सरकारें उन पर कार्रवाई कर सकें।
सॉलिसिटर जनरल की इस मांग पर मुख्य न्यायाधीश ने सवाल उठाते हुए कहा- आप ऐसे कह रहे हैं कि सारे प्रदूषण के लिए किसान जिम्मेदार हैं। आखिर इसे रोकने का तंत्र कहा है?
उन्होंने कहा- 'प्रदूषण में कुछ हिस्सा पराली जलने का हो सकता है, लेकिन बाकी दिल्ली में जो प्रदूषण है वो पटाखों, उद्योगों और धूल-धुएं की वजह से है। हमें तत्काल इसे नियंत्रित करने के कदम बताएं। अगर जरूरत पड़े तो दो दिन का लॉकडाउन या कुछ और कदम लीजिए। ऐसी स्थिति में आखिर लोग जिएंगे कैसे?'
वहीं जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'कोरोना महामारी के बाद स्कूल भी खोल दिए गए हैं। हमने अपने बच्चों को इस स्थिति में खुला छोड़ा है।
डॉक्टर गुलेरिया कहते हैं कि जहां प्रदूषण है, वहां ये महामारी है।'
किसानों द्वारा पराली जलाए जाने के मुद्दे पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि वह भी एक किसान हैं और मुख्य न्यायाधीश एन वी रमण भी एक किसान परिवार से आते हैं।
उन्होंने कहा कि मैं जानता हूं कि गरीब-सीमांत किसान पराली प्रबंधन के लिए मशीन नहीं खरीद सकते हैं। मैं एक किसान हूं और मैं जानता हूं।
जस्टिस सूर्यकांत ने यह भी कहा कि वायु प्रदूषण के लिए किसानों को दोष देना फैशन बन गया है।'
सरकार ने पूरी कोशिश की कि किसानों पर वायू प्रदूषण का जिम्मा डाल कर खुद मुक्त हो जाए, मगर गनीमत है कि देश की सर्वोच्च अदालत ने मोदी सरकार की मनमानी नहीं चलने दी।
वैसे इस महीने की शुरुआत में ग्लासगो में 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (कॉप 26- COP26) को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पर्यावरण संरक्षण के लिए भारत की ओर से पंचामृत दुनिया को दिया था।
नरेन्द्र मोदी के पंचामृत का मतलब
पंचामृत मतलब पांच इरादे जतलाए थे- पहला- भारत, 2030 तक अपनी गैर जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक पहुंचाएगा। दूसरा- भारत, 2030 तक अपनी 50 प्रतिशत ऊर्जा की जरूरत अक्षय ऊर्जा से पूरी करेगा। तीसरा- भारत अब से लेकर 2030 तक के कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक बिलियन (अरब) टन की कमी करेगा। चौथा- 2030 तक भारत, अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता (इन्टेंसिटी) को 45 प्रतिशत से भी कम करेगा। और पांचवा- वर्ष 2070 तक भारत, नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि विश्व की आबादी का 17 प्रतिशत होने के बावजूद, भारत केवल पांच प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार है। बावजूद इसके भारत ने अपना कर्तव्य पूरा करके दिखाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी है।
इसके साथ ही पर्यावरण संरक्षण को लेकर संतों की तरह प्रवचन भी दुनिया के सामने दिया था।
पंचामृत के तहत जो इरादे प्रधानमंत्री ने जतलाए हैं, वो अगले साल तक भी लोगों को याद रहेंगे या नहीं, कहा नहीं जा सकता, जबकि पंचामृत की सारी बातों के लिए समयसीमा 2030 तक रखी गई है। इन नौ सालों में तो दुनिया में न जाने कितने बदलाव हो जाएंगे। लेकिन देश में प्रदूषण के हालात बदलेंगे या नहीं कहा नहीं जा सकता।
सरकार का पंचामृत न जाने कहां बंट रहा है, जनता के हिस्से तो केवल धूल, धुआं और धोखा ही आ रहा है।
आज का देशबन्धु का संपादकीय (Today’s Deshbandhu editorial) का संपादित रूप साभार.