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अर्णब गोस्वामी के साथ कौन है : दोगले लोग पत्रकारिता के लिए नहीं गोदी पत्रकारों के लिए चिंतित हैं

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hastakshep
28 Apr 2020
क्या अर्नब गोस्वामी ने पहली बार साम्प्रदयिक वैमनस्यता फैलाई है ? भाजपा ने चैनल खुलवाया है तो उसके एजेंडे पर ही तो काम करेगा !

Who is with Arnab Goswami: The misbegotten people are worried about Godi journalists  not for journalism

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बहुत सारे लोग खुद को निष्पक्ष स्वतंत्र और बहुत बड़ा पत्रकार बताने के चक्कर में अर्णब गोस्वामी के साथ मुंबई पुलिस द्वारा की गई पूछताछ की निंदा कर रहे हैं।

ऐसे लोग इसे प्रेस पर हमला भी बता रहे हैं। यह वही लोग हैं जो कश्मीर के तीन पत्रकारों पर आतंक निरोधी धारा लगाने पर मौन रहते हैं। ये वे लोग हैं जो बताने का प्रयास कर रहे हैं कि अर्णब गोस्वामी के साथ यह सब केवल इसलिए हो रहा है क्योंकि उसने सोनिया गांधी के खिलाफ कुछ अभद्र टिप्पणी की। यह एक साजिशन प्रयास है ताकि अरनव को एक राजनीतिक प्रतिक्रिया में फंसा हुआ बेचारा दिखाया जा सके।

यहां स्पष्ट करना जरूरी है कि अर्णब गोस्वामी पर जो आरोप हैं वह सोनिया गांधी पर टिप्पणी करने का नहीं है, उसने सांप्रदायिक सौहार्द खराब करने, सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने लोगों को भड़काने जैसे बयान दिए हैं, जिससे देश में कहीं भी तनाव भी हो सकता था।

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एक बात जान लें-- बीच का रास्ता कोई नहीं होता है या तो दायां होता है या बायां होता है। जो लोग बीच के रास्ते पर चल रहे हैं - वह एक ऐसे शेर की सवारी कर रहे हैं, जिस दिन यह नीचे उतरने कोशिश करेंगे वह शेर इन्हें ही खा जाएगा।

यह जो शेर है सांप्रदायिकता का है, यह शेर है पीत पत्रकारिता का है, यह शेर जो है अफवाह और लोगों को भड़काने का है।

बहुत स्पष्ट है कि अर्णब गोस्वामी का समर्थन करने वाले अधिकांश सरकार का पट्टा अपने गले में बांधे हैं।

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जिनको अर्नब से मुंबई पुलिस के पूछताछ पर बहुत बड़ा पत्रकारिता पर खतरा दिख रहा है वहीं कश्मीरी पत्रकार काज़ी शिबली (Kashmiri journalist Kazi Shibli) के दर्द को सुनें। उसे पब्लिक सेफ्टी एक्ट (Public safety act) में गिरफ्तार किया गया। 57 दिन एक ही कपड़े में वह जेल में रहा। वहीं धोता था वही पहनता था जब उसे कपड़े मिले तब तक उसकी टी-शर्ट में 119 छेद हो चुके थे।

कौन है काज़ी शिबली | Who is Kazi Shibli

दक्षिणी कश्मीर के अनंतनाग के निवासी काज़ी को अभी 23 अप्रैल को 9 महीने बाद बरेली की जेल से छोड़ा गया। उन्होंने बंगलोर से पत्रकारिता में स्नातक किया। देश विदेश के कई अख़बरों में लिखते थे और एक वेव पोर्टल चलाते थे।

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तब न किसी को दया आई, ना पत्रकारिता पर संकट (Journalism crisis) दिखा। दोगले लोग पत्रकारिता के लिए नहीं गोदी पत्रकारों के लिए चिंतित हैं। दलाल और दंगाई के साथ हैं।

पंकज चतुर्वेदी

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। उनकी एफबी टिप्पणियों के समुच्चय का संपादित अंश साभार)

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