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कम्युनिस्ट प्रभावित राज्यों में दलितों-अल्पसंख्यकों पर हमलों की घटनाएं कम क्यों होती हैं?

वामपंथी ताली, लोटा और थाली नहीं बजायेंगे, क्योंकि दंगाई दंगे भड़काने को इस का इस्तेमाल करते रहे हैं

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Why are there less incidents of attacks on Dalits and minorities in communist affected states?

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कम्युनिस्टों का जिन राज्यों में सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव रहा है वहां पर दलितों-अल्पसंख्यकों के ऊपर हमलों की घटनाएं बहुत कम हुई हैं, यह संयोग नहीं है, बल्कि कम्युनिस्ट राजनीतिक सच्चाई है कि वंचितों को ऊँचा सिर करके जीने में उनसे मदद मिली है। अछूतों का अधिकांश हिस्सा बंगाल में अछूतों की तरह नहीं मनुष्यों की तरह सोचता है, यह सब बनाने में कम्युनिस्टों के संघर्षों की बड़ी भूमिका है। बंगाल, केरल और त्रिपुरा में दलित सबसे ज्यादा सुरक्षित हैं और सम्मान की जिंदगी जीते हैं। दलित अपनी मौजूदा बदहाल और शोषित अवस्था से मुक्त हों यह कम्युनिस्टों का सपना रहा है।

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दलित यदि जातिचेतना में बंधा रहेगा तो वह कभी जातिभेद के चक्रव्यूह से निकल नहीं पाएगा।

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कम्युनिस्टों ने हमेशा लोकतांत्रिक चेतना के विकास पर जोर दिया है, इस समय दलितों का बड़ा तबका लोकतांत्रिक हक के रूप में आरक्षण तो चाहता है लेकिन लोकतांत्रिक चेतना से लैस करना नहीं चाहता, वे आरक्षण और जातिचेतना के कुचक्र में फंसे हैं। कम्युनिस्ट चाहते हैं दलितों के लोकतांत्रिक हक, जिसमें आरक्षण भी शामिल है, न्यायबोध, समानता और लोकतंत्र भी शामिल है। इनके साथ जातिचेतना की जगह लोकतांत्रिक चेतना पैदा करने और दलित मनुष्य की बजाय लोकतांत्रिक मनुष्य बनाने पर कम्युनिस्टों का मुख्य जोर है, यही वह बिंदु है जहां तमाम किस्म के बुर्जुआदलों और चिंतकों से कम्युनिस्टों के नजरिए का अंतर है।

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देश में संयुक्त मोर्चे की राजनीति कैसे शुरु हुई?

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वामदलों ने सबसे पहले देश में संयुक्त मोर्चे की राजनीति शुरु की और आज यह सच है कि सभी दल इस राजनीति के अंग हैं, कोई यूपीए, कोई एनडीए, और कोई थर्डफ्रंट कर रहा है। वामदल देश का सही भविष्य देख पाते हैं यह बात इससे पुष्ट होती है। वामदलों से डरने या घृणा करने या पूर्वाग्रहों के आधार पर देखने की ज़रूरत नहीं है। वे इस बार पहले से भी बेहतर सामाजिक -आर्थिक सुरक्षा देंगे। वाम दलों का दबाव ही है कि कांग्रेस को सब्सिडी केन्द्रित राजनीति पर लौटना पड़ा ,सब्सिडी ख़त्म और देश चलाओ की कांग्रेस की नव्य उदारनीतियां पिट गयी हैं।

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सब्सिडी क्यों ज़रूरी है? | Why is subsidy necessary?

आर्थिक -सामाजिक विकास और संतुलन के लिए सब्सिडी बेहद ज़रूरी है यह बात वामदल लगातार उठाते रहे हैं और आज सभी दल ख़ासकर कांग्रेस -भाजपा वाम के सुझावों की महत्ता मान रहे हैं और विकास -विकास, सब्सिडी -सब्सीडी कर रहे हैं। कहते हैं मज़दूरों किसानों के संघर्ष बेकार नहीं जाते ! यह सब उसका दबाव है। मैं फिर कह रहा हूँ कि वाममोर्चा आ रहा है हम अपनी खिड़की- दरवाज़े खुले रखें वाम के झोंकों को घर में आने दें !

अंत में, अ-लोकतांत्रिक विचार, अ-राजनीति की राजनीति और अ-लोकतांत्रिक नायक के प्रति भक्तिभाव युवाओं में अवसाद, अशांति और असभ्यता पैदा करता है। युवाओं को इनसे बचना चाहिए।

प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी

प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी की एफबी टिप्पणी का संपादित अंश

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