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समाजवादियों ने महात्मा गाँधी की आँख मूंदते ही कांग्रेस छोड़ने का फ़ैसला क्यों किया?

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hastakshep
13 Aug 2022
समाजवादियों ने महात्मा गाँधी की आँख मूंदते ही कांग्रेस छोड़ने का फ़ैसला क्यों किया?

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स्वयं को कुजात गांधीवादी कहने वाले समाजवादी, गाँधी हत्या के 4 वर्ष बाद गाँधी के हत्यारों का समर्थन क्यों करने लगे?

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समाजवादी चिंतक, ITM विश्वविद्यालय ग्वालियर के कुलाधिपति Rama Shankar Singh ने फेसबुक पर एक टिप्पणी में सवाल उठाया था, कि “बाक़ी सब ठीकई है जो है सो हइयै पर चंचल जी यह बताया जाये कि ४७ के बाद से लगातार २०१४ तक कांग्रेस ने अपने उन विपक्षी सत्याग्रहियों के साथ भयानक दुर्व्यवहार क्यों किया जिनकी शानदार भूमिका आज़ादी की लड़ाई में थी।” इसके उत्तर में वरिष्ठ पत्रकार  और समाजवादी चिंतक चंचल जी की एक टिप्पणी “हमारे जैसे लोग जिन्होंने अपनी पूरी जवानी जेल और सड़क पर गुज़ारी है, आज कांग्रेस को क्यों चाहते हैं ?हस्तक्षेप पर प्रकाशित हुई थी, जो चंचलजी ने मूलतः फेसबुक पर लिखी थी। उस टिप्पणी के प्रत्युत्तर में वरिष्ठ पत्रकार क़ुरबान अली की यह टिप्पणी प्राप्त हुई है जो नए सवाल उठाती है।

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चंचल जी,

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आपके लेख से कई सवाल उठते हैं। उठने भी चाहिए और इस पर सार्थक चर्चा हो तो बहुत सारे सवालों के जवाब भी शायद मिल जायें। मैं अपने चंद सवाल आपके समक्ष रख रहा हूँ उनके जवाब मिल सकें तो आभारी होऊंगा।

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1. समाजवादियों ने महात्मा गाँधी की आँख मूंदते ही कांग्रेस छोड़ने का फ़ैसला क्यों किया? (कहा जाता है कि आचार्य नरेंद्र देव और राममनोहर लोहिया इसके पक्ष में नहीं थे पर जयप्रकाश नारायण के दबाव के चलते उन्हें झुकना पड़ा जो रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाना चाहते थे पर पहले ही आम चुनाव के बाद सक्रिय राजनीति से भाग खड़े हुए जिसे उन्होंने 'समाजवाद से सर्वोदय' की ओर पलायन का नाम दिया!).

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2. समाजवादियों ने संविधान सभा का बहिष्कार क्यों किया और अपना एक अलग संविधान क्यों बनाया जबकि डॉ. आंबेडकर द्वारा बनाया गया संविधान उसी कांग्रेस पार्टी के सिद्धांत और विचारधारा पर आधारित था जिसके वे 1948 तक सदस्य थे?

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3. समाजवादी, जो गाँधी-नेहरू के नूरे नज़र थे, ख़ासकर नरेंद्र देव, जेपी और लोहिया और जो बाद में अपने को कुजात गांधीवादी कहते थे, गाँधी की हत्या के महज़ चार वर्ष बाद हुए पहले आम चुनाव में कांग्रेस के विरोध में गाँधी के हत्यारों का समर्थन क्यों करने लगे?

सन्दर्भ : 1952 के पहले आम चुनाव में डॉ. लोहिया ने फूलपुर में जवाहरलाल नेहरू के ख़िलाफ़ हिन्दू महासभा के उम्मीदवार प्रभुदत्त ब्रह्मचारी का समर्थन किया था। विपक्षी दल होने के नाते आप कांग्रेस पार्टी या नेहरू का विरोध करते, जैसा आपने 1962 में किया, तो बात समझ में आती है, लेकिन कांग्रेस-नेहरू विरोध के कारण आप गाँधी के हत्यारों के समर्थन में खड़े हो जायें ये समझ से परे है ! 

4.पहले आम चुनाव में करारी हार के बाद समाजवादियों ने कांग्रेस के साथ सहयोग करने के लिए 'compulsions of backward economy' का सिद्धांत गढ़ा, लेखक थे अशोक मेहता। इसी आधार पर जेपी ने 1954 में नेहरू के साथ पत्राचार और मुलाक़ातों का सिलसिला शुरू किया और कांग्रेस के साथ सहयोग के 14 बिंदु गिनाये।(सन्दर्भ नेहरू-जेपी टॉक्स).उसी दौरान जेपी को उपप्रधानमंत्री बनाये जाने की चर्चा शुरू हुई, लेकिन नरेन्द्रदेव-लोहिया के पुरज़ोर विरोध के कारण ऐसा नहीं हुआ।(पूरी जानकारी के लिए सोशलिस्ट पार्टी के विशेष बैतूल सम्मेलन की कार्यवाही देखें।)

5. "कांग्रेस पार्टी को हराने के लिए मैं शैतान से भी हाथ मिलाने के लिए तैयार हूँ" यह सिद्धांत प्रतिपादित करने वाले नेता नेहरू और उनकी कांग्रेस पार्टी से इतने बदज़न क्यों हो गए कि वह आरएसएस कैम्पों में जाकर उन्हें (गाँधी के हत्यारों के मानस पुत्रों को) राष्ट्रवादी होने के सर्टिफिकेट देने लगे? और फिर 1974 में तथाकथित जेपी मूवमेंट में तो इसके नायक ने यहाँ तक कह दिया कि "अगर आरएसएस और जनसंघ कम्युनल और फ़ासिस्ट है तो में भी कम्युनल और फ़ासिस्ट हूँ!

6. सोशलिस्ट पार्टी के इन दोनों बड़े नेताओं को, जो 1942 की अगस्त क्रांति के हीरो भी थे, कभी ये समझ में क्यों नहीं आया कि राष्ट्रीय आंदोलन,1857-1947, और उसकी विचारधारा का विरोध करने वाले उनके सहयोगी कैसे हो सकते हैं ? जो सावरकर, हेडगेवार और गोलवलकर के अनुयायी हैं वह कैसे इस देश की एकता अखंडता और हज़ारों साल पुरानी सभ्यता को अक्षुण्ण रख पाएंगे? फिर आँख बंद करके ग़ैर कांग्रेसवाद की रणनीति बनाना और संघ की बैसाखियों से कांग्रेस पार्टी को तबाह करना, जिसका सबसे ज़्यादा फायदा संघ परिवार ने उठाया और आज वह इस देश के सीने पर मूंग दल रहा है, कहाँ तक जायज़ था?

ये कुछ ऐसे बुनियादी सवाल हैं जिन पर गंभीर बहस की ज़रूरत है।

भावावेश में आकर आप व्यक्तिगत रूप से कुछ नेताओं की वंदना और तारीफ़ कर सकते हैं या 'पॉलिटिकल करेक्टनेस' के चक्कर में पढ़कर कह सकते हैं कि हम पहले भी सही थे और अब भी सही हैं, लेकिन इतिहास में वही दर्ज होगा जो तथ्य है! आशा है आप मेरे सवालों को अन्यथा नहीं लेंगे। 

क़ुरबान अली

जिलाधीश का पद समाप्त कर देना चाहते थे डॉ. राम मनोहर लोहिया

Why did the socialists decide to leave the Congress as soon as Mahatma Gandhi died?

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