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पतझड़ में पत्तों का रंग क्यों बदलता है? | Why do leaves change color in the fall? | पतझड़ में पत्ते क्यों रंग बदलते हैं?
मध्य भारत में सर्दी (winter in central india) खत्म होते ही बसन्त ऋतु (spring season) शुरु हो जाती है जो कि फरवरी से अप्रैल तक रहती है। गर्मियाँ आने से ठीक पहले कई हरे पेड़ों की पत्तियों का रंग सुनहरा, लाल या भूरा और यहाँ तक कि नीला या बैंगनी होने लगता है। फिर ये पत्ते झड़कर पेड़ से गिर जाते हैं। कुल मिलाकर साल में एक बार पर्णपाती पौधों के पत्ते रंग बदलते हैं और फिर अन्तत: गिर जाते हैं। कुछ समय बाद नई कोपलों से फूटने वाली हरी पत्तियाँ इनका स्थान ले लेती हैं। वहीं कश्मीर में पतझड़ का ये मौसम (Autumn season in Kashmir) सर्दियों के सितम्बर से लेकर दिसम्बर के महीने तक रहता है। पतझड़ के मौसम में अपने आखिरी पड़ाव पर पहुँचकर चिनार के सूखते पत्ते कई रंग बिखेर देते हैं...कश्मीर में पतझड़ की इस अनोखी खूबसूरती को देखने वाला हर इन्सान इसका कायल हो जाता है।
पतझड़ में पत्ते क्यों झड़ते हैं?
बदलते रंग पत्तियों में होने वाली एक सहज प्रक्रिया जीर्णता या पर्ण-मृत्यु की एक नुमाइश भर है। आम तौर पर पौधों या उनके अंगों में जीर्णन बढ़ती उम्र के कारण होता है। लेकिन पत्तियों में जीर्णन, खासकर पर्णपाति पौधों में समकालिक जीर्णन व पतझड़ कुछ अलग कारणों से भी होता है।
Autumn Season In Hindi : पतझड़ का मौसम क्या होता है?
पतझड़ का मौसम अक्सर वो होता है जिसमें पेड़ स्थानीय जलवायु की प्रतिकूलता (Adversity of local climate) का अनुभव करते हैं या करने वाले होते हैं। तापमान तीव्र होते हैं, अक्सर पानी की कमी होती है और पत्तियों से अत्याधिक वाष्पोत्सर्जन होता है। पौधों के लिए यह एक तनावपूर्ण समय होता है और इसका सामना करने का एक तरीका पत्तियों का जीर्णन होता है। पत्तियों की जीर्णता के नतीजतन पौधों को जीवित व स्वस्थ रखने के लिए ऊतक कम हो जाते हैं, और पत्तियों से वाष्पोत्सर्जन के ज़रिए पौधे पानी भी कम खोते हैं।
यह भी देखा गया है कि जीर्णता के दौरान और पत्तियों के झड़ने यानी पतझड़ से पहले पौधे पत्तियों से पौष्टिक तत्वों को खींच लेते हैं। कुछ पौधों (जैसे नारियल व अशोक) में इन तत्वों का उपयोग नई पत्तियों के इस्तेमाल के लिए होता है।
जिन इलाकों में समकालिक पतझड़ फूल या फल लगने के मौसम में होता है, वहाँ पौधे (जैसे सेमल और ढाक) पौष्टिक तत्वों को इन ज़रूरतमन्द ऊतकों में वितरित करते हैं।
पतझड़ के रंगों के स्रोत (sources of autumn colors)
जीर्णन के दौरान पत्तियों में प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis in leaves) रुकता है और क्लोरोफिल (पर्ण-हरित) का विघटन होता है। पतझड़ में पत्तियों में दिखने वाले कई रंगों के लिए जिम्मेदार वर्णक यानी पिगमेंट (pigment) दरअसल पत्ती में पहले से ही मौजूद होते हैं। लेकिन क्लोरोफिल का हरा रंग (green color of chlorophyll) हावी होने के कारण ये रंग अमूमन उसके आवरण में ढके रहते हैं। जीर्णन के कारण जब क्लोरोफिल टूटने लगता है तो हरा रंग खत्म होने लगता है और तब हमें पत्तियों में विविध रंग दिखाई देने लगते हैं।
जैसे जेंथोफिल सुनहरे पीले रंग का वर्णक है, जो मक्के के दानों और बसन्त के पीले फूलों में भी दिखाई देता है। नारंगी रंग केरोटीन वर्णक के कारण होता है जो गाजर में भी पाया जाता है।
ज़ेंथोफिल और केरोटीन, दोनों की प्रकाश संश्लेषण में भूमिकाएँ हैं। टेनिन भूरे रंग के लिए जिम्मेदार है जो कि अक्सर हम तने की छाल में देखते हैं, जैसे - नीम और कत्था। पत्तियों को यह शाकभक्ष कीटों से बचाता है। एंथोसायनिन पत्तियों में लाल, नीले और बैंगनी रंग के लिए ज़िम्मेदार होता है। एंथोसायनिन पत्तियों में कम मात्रा में पाया जाता है और जीर्णन के होते पत्तियों में अधिक बनता है।
पत्तियों में विभिन्न रंग पहले से ही मौजूद होते हैं, इसे देखने के लिए एक प्रयोग कर सकते हैं। कुछ हरी, पीली, नारंगी और लाल पत्तियाँ एकत्र कर लें। आइसो प्रोपाइल अल्कोहल (Isopropyl alcohol | CH3CHOHCH3 कार्बनिक विलेय) के साथ प्रत्येक पत्ती को खरल की सहायता से बारीक पीसकर लगभग एक घण्टे के लिए छोड़ दें। पत्तियों का रंग एल्कोहॉल में अच्छी तरह घुल जाएगा। अब एक फिल्टर पेपर की लम्बी स्ट्रिप काटकर उसे इस घोल में किसी स्लाइड का सहारा देकर खड़ा कर दें। धीरे-धीरे घोल फिल्टर पेपर पर ऊपर की ओर चढ़ने लगेगा। जब तीन-चौथाई पेपर भीग जाए तो उसे बाहर निकालकर सुखा लें।
ध्यान से देखने पर हरी पत्ती सम्बन्धी फिल्टर पेपर पर हरा, पीला और नारंगी रंग अलग-अलग पट्टी के रूप में दिखेगा जबकि लाल या बैंगनी पत्तियों सम्बन्धी फिल्टर पेपर में अलग से एक लाल रंग की पट्टी भी मिलती है।
अर्थात् हरी दिखने वाली पत्तियों में हरा, नारंगी और पीला रंग पहले से ही मौजूद होता है।
जैसा हम जानते हैं पतझड़ से पहले पौधा कुछ महत्वपूर्ण तत्वों को पत्तियों से खींच लेता है। एंथोसायनिन पत्तियों की कोशिकाओं को इन तत्वों के अवशोषण से पहले ही टूटने से बचाए रखता है।
पत्तों के रंग बदलने की प्रक्रिया (leaf color change) को यदि हम गौर से देखें तो पाएँगे कि पहले पत्ती के बाहरी किनारों की ओर से रंग बदलता है जबकि मध्य व आधारीय भाग अब भी हरे होते हैं। सबसे आखिर में पत्ती के डण्ठल का आधार रंग बदलता है, इसके बाद कोशिकाओं से निकलने वाले स्राव से वाहिनियाँ अवरुद्ध हो जाने के कारण पत्तियाँ मर जाती हैं और टूट कर गिर पड़ती हैं।
इतने वर्णक फिर भी पत्ते हरे क्यों? | Why so many pigments yet the leaves are green?
पत्तियों की कोशिका में हरित-लवक (क्लोरोप्लास्ट- chloroplast) में मौजूद वर्णक क्लोरोफिल सूर्य के प्रकाश में से लाल और नीले प्रकाश को अवशोषित कर लेता है जिससे कि पत्ती की सतह से परावर्तित होने वाला प्रकाश हरे रंग का दिखाई पड़ता है।
केरोटीन भी हरित-लवक में पाया जाता है और नीले-हरे और लाल प्रकाश को अवशोषित करता है, इससे परावर्तित होने वाला प्रकाश पीले रंग का दिखाई देता है।
क्लोरोफिल और केरोटीन मिलकर पत्ती को चटख हरा रंग देते हैं। प्रकाश के अवशोषण में केरोटीन क्लोरोफिल के सहायक की तरह काम करता है। जीर्णन की क्रिया के दौरान जब हरा क्लोरोफिल टूटता है, केरोटीन (और अन्य वर्णक) पत्तियों में बना रहता है जिससे कि हम इसका पीला रंग देख पाते हैं।
एक सामान्य प्रक्रिया है पत्तों की जीर्णता व रंग बदलना (A common process is leaf senescence and color change.)
पर्णपाती पौधे या सदाबहार पौधे (deciduous plants or evergreen plants)
पत्तियों में जीर्णता के अलग-अलग पैटर्न देखने को मिलते हैं। पर्णपाती पौधों (जैसे सहजन, चिलबिल/पपड़ी) में पतझड़ समकालिक होता है। एक समय पर पूरा पौधा पत्ती-विहीन हो जाता है एवं बाद में उनका स्थान नई पत्तियाँ लेती हैं। कुछ पौधों में अनुक्रमिक जीर्णता देखने को मिलती है जहाँ तने के शीर्ष से लगातार नई पत्तियाँ उगती हैं और एक क्रम से पहले पुरानी और फिर अपेक्षाकृत नई पत्तियाँ जीर्ण होने लगती हैं, और फिर झड़ जाती हैं, ऐसा वर्ष में किसी भी समय हो सकता है। ऐसे पौधे कभी पूरी तरह पत्ती-विहीन नहीं दिखाई देते और सदाबहार पौधे कहलाते हैं जैसे नारियल, नीलगिरी, अशोक, खजूर आदि। और मौसमी व एकवर्षीय पौधों में बीज बनने व विसर्जित होने के बाद पत्तों का पौधे के साथ जीर्णन हो जाता है।
तो पौधों में पत्तियों के रंग बदलने, जीर्ण होने और झड़ने की प्रक्रिया आवश्यक रूप से पाई जाती है, फिर चाहे वो एकवर्षी हो या बहुवर्षी, सदाबहार हो या पर्णपाती, थलीय हो या जलीय, पैटर्न अलग हो सकते हैं।
- अम्बिका नाग
(लेखिका अजीम प्रेमजी फाउण्डेशन, जयपुर में विज्ञान की स्रोत व्यक्ति के तौर पर कार्यरत हैं। देशबन्धु में प्रकाशित लेख का संपादित रूप साभार )