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भारत में चुनावी मुद्दा क्यों नहीं बनता जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण? | Why does climate change and pollution not become an election issue in India?
नई दिल्ली, 06 फरवरी 2022. पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के गंभीर परिणामों का सामना कर रही है, मगर भारत में यह मसला अब भी चुनावी मुद्दा नहीं बनता। आबादी के लिहाज से भारत के सबसे बड़े राज्य (India's largest state in terms of population) उत्तर प्रदेश में इसी महीने से विधानसभा चुनाव होने हैं। हालांकि ज्यादातर राजनीतिक दलों ने अभी अपना चुनाव घोषणापत्र जारी नहीं किया है लेकिन इस बार भी जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण का मुद्दा राजनीतिक विमर्श से गायब है।
जलवायु परिवर्तन के बारे में क्या सोच रहा है उत्तर प्रदेश का मतदाता? | What is the voter of Uttar Pradesh thinking about climate change?
प्रदूषण की समस्या को लेकर वैश्विक फलक पर गहरी चिंता जाहिर किए जाने के बावजूद यह चुनावी मुद्दा क्यों नहीं बनता और क्या उत्तर प्रदेश का मतदाता जलवायु परिवर्तन के बारे में कुछ सोच रहा है या नहीं, इस विषय पर पर्यावरण थिंक टैंक क्लाइमेट ट्रेंड्स (environmental think tank climate trends) ने शुक्रवार को एक वेबिनार आयोजित कर विशेषज्ञों की राय जानी और प्रदूषण के मुद्दे को कैसे जन चर्चा का विषय बनाया जाए, इस पर व्यापक विचार विमर्श किया गया।
प्रदूषण अभी तक आम लोगों का मुद्दा क्यों नहीं बन पाया है? | Why pollution has not become an issue of common people till now?
वर्ल्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट (world research institute - डब्ल्यूआरआई) इंडिया में वायु गुणवत्ता शाखा के प्रमुख डॉक्टर अजय नागपुरे ने कहा कि कोई भी मसला तभी राजनीतिक मुद्दा बनता है जब वह आम लोगों का मुद्दा हो। समस्या यही है कि प्रदूषण अभी तक आम लोगों का मुद्दा नहीं बन पाया है। अभी तक यह मुद्दा सिर्फ पढ़े-लिखे वर्ग का ही मुद्दा है। अगर हम वास्तविक रूप से धरातल पर देखें और आम लोगों से उनकी शीर्ष पांच समस्याओं के बारे में पूछें तो पाएंगे कि प्रदूषण का मुद्दा उनमें शामिल नहीं है।
जलवायु परिवर्तन के कारण कितनी मौतें होती हैं? | How many deaths are caused by climate change?
दिल्ली में किए गए एक सर्वे का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि हमने इस सर्वेक्षण के दौरान लोगों से पूछा था कि 5 ऐसी कौन सी चीजें हैं जिनसे आप नाखुश हैं। यह बात स्पष्ट रूप से सामने आई कि जलवायु परिवर्तन उन पांच चीजों में शामिल नहीं था। मुख्य कारण यही है कि प्रदूषण जब जनता का ही मुद्दा नहीं होगा तो यह राजनीतिक मुद्दा कैसे बनेगा। लोग डायबिटीज और ब्लड प्रेशर से होने वाली मौतों के बारे में तो जानते हैं लेकिन उन्हें यह नहीं पता है कि इन दोनों के बराबर ही मौतें जलवायु परिवर्तन के कारण होती हैं।
डॉक्टर नागपुरे ने कहा कि जिस तरह से प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है, उस हिसाब से हम लोगों को इस बारे में बता नहीं पा रहे हैं। यह सबसे बड़ा कारण है। अगर हम समाधान की बात करें तो हमें समझना होगा कि कोई वैज्ञानिक वायु प्रदूषण का समाधान नहीं कर सकता। यह किसी एक तबके का काम नहीं है। वैज्ञानिक हमें वायु प्रदूषण का कारण बता सकते हैं और थोड़ा बहुत समाधान भी सुझा सकते हैं लेकिन उसे जमीन पर उतारना तो हम सभी का काम है। वैज्ञानिक जरूर वायु प्रदूषण की समस्या के गंभीर परिणामों से अवगत हैं लेकिन धरातल पर मौजूद लोगों के मुद्दे अलग हैं। हमें एक सुव्यवस्थित रवैया अपनाना होगा और आम लोगों को साथ लेकर प्रदूषण के गंभीर मौजूदा और भावी परिणामों के बारे में बातचीत करके उन्हें जागरूक करना होगा। जिस दिन प्रदूषण का मुद्दा जन चर्चा और जन सरोकार का मुद्दा बनेगा, उसी दिन यह एक राजनीतिक मुद्दा भी बन जाएगा और राजनीतिक पार्टियां इसे अपने घोषणापत्र में शामिल करने को मजबूर हो जाएंगी।
केन्द्र सरकार के नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम की स्टीयरिग कमेटी के सदस्य और आईआईटी कानपुर में प्रोफेसर एसएन त्रिपाठी ने कहा कि हमें यह समझना होगा कि क्लीन एयर का मुद्दा भारत में बमुश्किल सात-आठ साल से ही उठना शुरू हुआ है। भारत का नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम अभी ढाई साल का बच्चा है। यानी भारत के स्तर पर अभी यह कार्यक्रम से ढाई साल से ही शुरू हुआ है। उससे पहले ऐसे कार्यक्रम कुछ शहरों तक ही सीमित था। यह अच्छी बात है कि अब लोगों ने इसे समझना शुरू किया है और अब इस बात पर काफी चर्चा होने लगी है कि कैसे हमें अपने विकास को ज्यादा से ज्यादा सतत बनाना है, हम कैसे कार्बन न्यूट्रैलिटी (carbon neutrality) के लक्ष्य को हासिल करें।
उन्होंने कहा कि यूपी में मैंने पाया है कि उत्तर प्रदेश सरकार और स्थानीय स्तर पर अब यह बात समझी जाने लगी है कि हमें इस मुद्दे पर कुछ काम करना होगा। अब चीजें कुछ सही दिशा में हो रही हैं। हाल ही में कानपुर में वायु गुणवत्ता निगरानी के करीब 5 नए केंद्र स्थापित किए गए हैं और पूरे उत्तर प्रदेश में 100 से ज्यादा ऐसे स्टेशन बनाए गए हैं। चर्चा का बिंदु यह है कि जलवायु परिवर्तन को लेकर क्या आम लोगों के स्तर पर जागरूकता है या नहीं। मेरा मानना है कि जनता अब काफी जागरूक हो चुकी है।
प्रोफेसर त्रिपाठी ने कहा कि कुछ दिन पहले उनके पास कानपुर के सांसद के कार्यालय से फोन आया था। इस दौरान उनसे कहा गया कि सांसद आपसे मिलना चाहते हैं। सांसद ने करीब एक घंटे तक बातचीत की। उनका कहना था कि कानपुर में वायु प्रदूषण की स्थिति (air pollution status in kanpur) काफी खराब है और इस दिशा में सुधार के लिए क्या किया जा सकता है। यह राजनीतिक हलके में प्रदूषण की समस्या पर चर्चा के लिहाज से अत्यंत सुखद अनुभव था। ऐसा नहीं है कि पूरी तस्वीर बहुत अच्छी हो गई है लेकिन यह जरूर है कि बात कुछ न कुछ आगे बढ़ी है। हर किसी को यह बात समझनी होगी कि सबका अपना अपना काम का हिस्सा है जो उन्हें करना ही होगा।
Practical aspects of the reasons why climate change has not become a political issue
टाइम्स ऑफ इंडिया के लखनऊ के स्थानीय संपादक प्रवीण कुमार ने जलवायु परिवर्तन के राजनीतिक मुद्दा नहीं बन पाने के कारणों के व्यावहारिक पहलुओं का जिक्र करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में चुनाव के दौरान विकास के बारे में बात जरूर होती है लेकिन क्या वोट देते वक्त वाकई यह कोई मुद्दा बन पाता है? उत्तर प्रदेश में अक्सर जाति और धर्म के मुद्दे ही हावी होते हैं। हमें इस पर विचार करना चाहिए कि उत्तर प्रदेश के सभी 15 करोड़ मतदाता इसके प्रति जागरूक हैं या नहीं।
उन्होंने कहा कि प्रमुख राजनीतिक दलों को जलवायु परिवर्तन को मुद्दा बनाना चाहिए, मगर पहले वे अपने चुनाव घोषणापत्र में इसे शामिल तो करें। सबसे पहले तो राजनीतिक दलों को प्रभावित करने की जरूरत है ताकि वे इस मुद्दे को गंभीरता से लें। राजनीतिक दलों को सिर्फ इस बात की फिक्र होती है कि फलां मुद्दे से उन्हें वोट मिलेगा या नहीं।
कुमार ने यह भी कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल और अन्य तौर-तरीके अपनाने की बात जरूर की जाती है लेकिन वास्तव में कोई भी व्यक्ति इस दिशा में पहल नहीं करता। यही कारण है कि जलवायु परिवर्तन कभी चुनावी मुद्दा नहीं बन पाता।
वेबिनार के शुरू में क्लाइमेट ट्रेंड्स और यू गॉव द्वारा संयुक्त रूप से किए गए एक सर्वे की रिपोर्ट पेश की गई।
उत्तर प्रदेश में किए गए इस सर्वे के मुताबिक करीब 47% लोगों ने माना कि उनके शहर में हवा की गुणवत्ता अच्छी नहीं है, जबकि 73% लोगों ने माना कि वाहनों से निकलने वाला धुआं इसका प्रमुख कारण है। इसके अलावा 65% लोगों ने कहा कि निर्माण कार्य स्थलों और सड़कों से उड़ने वाली धूल इसका प्रमुख कारण है।
इसके अलावा 61% लोगों ने कहा कि शहरों में मौजूद उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषणकारी तत्वों की वजह से वायु प्रदूषण हो रहा है। वहीं 38% लोगों ने माना कि कोयले से चलने वाले बिजली घरों की वजह से ऐसा हो रहा है।
सर्वे के मुताबिक 64% लोगों ने कहा कि सरकार वायु प्रदूषण को कम करने के लिए ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाएं। इसके अलावा 60% लोगों ने कहा कि लोगों को इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। वहीं, 58% लोगों ने कहा कि थर्मल पावर प्लांट्स पर निर्भरता में कमी लाई जाए।
सर्वे के अनुसार 75% लोगों ने कहा कि उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में वायु प्रदूषण को मुद्दा बनाया जाना चाहिए। वहीं 86% लोगों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन को प्राथमिकता पर रखना चाहिए। 47 प्रतिशत लोगों ने इसे बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा माना। सिर्फ 10% लोगों ने कहा कि यह महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है। इसके अलावा 57% लोगों ने माना कि जलवायु परिवर्तन का प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है। वहीं, 38% लोगों ने कहा कि वे इस बारे में पक्के तौर पर नहीं कह सकते।
पर्यावरण वैज्ञानिक डॉक्टर सीमा जावेद ने कहा कि जनता के बीच जितनी जानकारी पहुंचती है, लोगों में उतनी ही ज्यादा जागरूकता फैलती है। उतना ही ज्यादा वे उस चीज की रोकथाम के लिए कदम उठाते हैं। तंबाकू के खिलाफ चलाए गए अभियान में लोगों को काफी हद तक यह विश्वास दिला दिया गया कि तंबाकू से कैंसर होता है। इसका परिणाम यह हुआ कि लोगों ने तंबाकू के इस्तेमाल से परहेज करना शुरू किया। जागरूकता फैलने की वजह से ही कानूनी बंदिशें लागू की गईं कि कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान नहीं कर सकता। जब कोई मुद्दा जन सरोकार का मुद्दा बनता है तभी राजनेता उसे प्राथमिकता देते हैं।
उन्होंने कहा कि किसी भी नेता को वोट बैंक आमतौर पर ग्रामीण लोग होते हैं इसलिए जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता को ग्रामीण स्तर तक ले जाना होगा ताकि उस स्तर पर भी प्रदूषण का मुद्दा जन जन का मुद्दा बने। तभी इस दिशा में एक व्यापक बदलाव आएगा और यह एक राजनीतिक मुद्दा बन सकेगा।
डॉक्टर सीमा ने कहा कि मौसम की चरम स्थितियों ने भी वायु प्रदूषण को विचार विमर्श के केंद्र में ला दिया है। उत्तराखंड में हुई कई आपदाओं ने जलवायु परिवर्तन की तरफ इशारा किया है। इस बार उत्तर प्रदेश में मौसम का मिजाज बदल गया। ऐसा कहा जाता था कि मकर संक्रांति के बाद ठंड कम होने लगेगी लेकिन ठीक इसका उल्टा हो रहा है। मौसम के बदलते मिजाज का फसलों पर असर पड़ता है, इसलिए यह अच्छा अवसर है कि किसानों और ग्रामीणों को प्रदूषण के मुद्दे पर और जागरूक किया जाए।
क्या भारत में वायु प्रदूषण आम जन चर्चा का विषय बना सकता है? | Can air pollution in India become a matter of general public discussion?
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में समीक्षा अधिकारी करुणानिधान श्रीवास्तव ने कहा कि जब तक हम खुद नहीं समझेंगे कि हमें अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करना है, तब तक कुछ नहीं होगा। हम सरकार से ही सारी उम्मीद नहीं कर सकते हैं। हम पहले अपने अंदर बदलाव लाएं। हर नागरिक को जागरूक होना पड़ेगा। भारत में वायु प्रदूषण को आम जन चर्चा का विषय बनाना फिलहाल बहुत मुश्किल है। हमें चीजों को पंचायती राज और ब्लॉक स्तर तक ले जाना होगा।
उन्होंने कहा कि राजनेता और चुनाव लड़ने वाले लोग हमारे बीच से ही आते हैं। अगर आम नागरिक ही प्रदूषण के प्रति जागरूक नहीं होंगे तो हम हमारे बीच से आने वाले राजनेताओं में वह चिंता कैसे पैदा कर सकते हैं।
काउंसिल ऑन एनर्जी एनवायरमेंट एंड वॉटर में सीनियर प्रोग्राम लीड शालू अग्रवाल ने कहा कि बिजली क्षेत्र का मुख्य उद्देश्य सभी लोगों तक गुणवत्तापूर्ण, किफायती और सतत बिजली पहुंचाना है। सिर्फ विद्युतीकरण को ही देखें तो 2015 में ग्रामीण यूपी में 57% लोगों के पास बिजली के कनेक्शन थे। 2020 में जब हमने दोबारा सर्वे किया तो यह बढ़कर 90% हो गया। ग्रामीण उत्तर प्रदेश में 2016 में जहां औसतन 9 घंटे बिजली आती थी वहीं अब यह बढ़कर 16 घंटे हो गया मगर बिजली कंपनियों की हालत में सुधार नहीं हो रहा है। उन्हें हर साल लगभग 30% का घाटा हो रहा है। यह बहुत बड़ा वित्तीय नुकसान है कहीं ना कहीं इसका प्रभाव जनता पर ही पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के मौजूदा विधानसभा चुनाव में सब्सिडी को लेकर लोकप्रिय घोषणाएं की जा रही है। किसी भी सब्सिडी के लिए आपको धन तो लाना पड़ेगा। जाहिर सी बात है कि इसके लिए जनता को ही धन चुकाना पड़ेगा। प्रदूषण को चुनावी मुद्दा बनाने के लिए मीडिया को भी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।
इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस में ऊर्जा वित्त विश्लेषक कशिश शाह ने कहा कि जलवायु परिवर्तन बहुत बड़ा मुद्दा है। वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट अक्षय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य हासिल करने के लिए भारत को हर साल 40 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित करनी होगी, मगर इस वक्त हम सिर्फ 15 से 20 गीगावाट क्षमता ही स्थापित कर पा रहे है।
प्रेजेंटेशन देते हुए उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा बिजली खपत करने वाला राज्य है जहां देश में उत्पादित कुल बिजली के 10% हिस्से के बराबर खपत होती है। इस राज्य में बिजली की मांग बहुत तेजी से बढ़ी है। सिर्फ वार्षिक मांग ही नहीं बल्कि पीक डिमांड भी 23.8 गीगावॉट के स्तर पर पहुंच चुकी है। मगर उत्तर प्रदेश अपने अक्षय ऊर्जा उत्पादन संबंधी लक्ष्यों के मामले में बिजली की उच्च मांग वाले अन्य राज्यों के मुकाबले पीछे है।