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भारत में बिना महान जनक्रांति के कोई मौलिक सुधार संभव नहींI
ऐसा इसलिए क्योंकि वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था संसदीय लोकतंत्र पर आधारित है, जो वास्तव में काफ़ी हद तक जाति और मज़हब पर चलती है। जातिवाद और साम्प्रदायिकता सामंती शक्तियां हैं, जिनको नष्ट किये बिना हमारा देश प्रगति नहीं कर सकता, पर संसदीय लोकतंत्र इन्हें और मज़बूत करता है। इसलिए इसका विकल्प हमें ढूंढ़ना होगा, जो जनक्रांति से ही संभव है।
यानी हमारे देश की भीषण समस्याओं का समाधान वर्तमान व्यवस्था के अंदर नहीं बल्कि बाहर है।
ऐतिहासिक अनुभव बताता है कि जनक्रांति के पहले वैचारिक क्रांति (।deological revolution ) आवश्यक होती है, जैसे फ्रांस में १७८९ की महान जनक्रांति के पहले वोल्टेर ( Voltaire ) रूसो ( Rousseau ) दिदरो ( Diderot ) आदि ने की।
इस वैचारिक क्रांति में जो हथियारों का प्रयोग होता है वह बन्दूक बम तोप वगैरह नहीं होते, बल्कि वैज्ञानिक विचार होते हैं।
भारत में अभी जनक्रांति का समय नहीं पहुंचा, पर वैचारिक क्रांति का काल चल रहा है।
इस काल में हमें सामंती विचारों और रिवाज़ों जैसे जातिवाद और साम्प्रदायिकता, और अतार्किक तथा अवैज्ञानिक विचारों, मान्यताओं और अंधविश्वासों पर भीषण प्रहार करना होगा, और यह सोचना होगा कि एक नए आधुनिक राजनैतिक और सामाजिक व्यवस्था का कैसे निर्माण हो जिसमे ग़ुरबत, कुपोषण, बेरोज़गारी, महंगाई, स्वास्थ लाभ और अच्छी शिक्षा का अभाव, साम्प्रदायिकता, जातिवाद, आदि बुराइयां न हो, और हर नागरिक को उच्च स्तर का जीवन मिल सके।
जस्टिस मार्कंडेय काटजू
लेखक सर्वोच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश हैं।
Why does Justice Katju want a great people's revolution?