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ओजोन परत का क्षरण का हमारे जीवन पर प्रभाव
पृथ्वी का सुरक्षा कवच है ओजोन परत
पृथ्वी के सुरक्षा कवच ओजोन परत की सुरक्षा एवं नियंत्रण (protection and control of the ozone layer) के अभी-भी सकारात्मक कदम उठाये जा रहे हैं। यहां फिर से इस बात पर जोर देते हुए कहना है कि बिना ओजोन परत के हम जिन्दा नहीं रह सकते, क्योंकि विकिरण के कारण कैंसर, फसलों को नुकसान और समुद्री जीवों पर खतरा पैदा हो सकता है और इन्हीं पराबैंगनी किरणों से ओजोनपरत हमारी रक्षा करती है।
आस्ट्रेलिया का उदाहरण हमारे सामने हैं, जहां ओजोन परत को काफी नुकसान पहुंचा है।
ओजोन और ओजोन परत का महत्व (importance of the Ozone and the iozone layer) बहुत है, विशेषतः, धरती और उस पर आवासित जीवधारियों के लिए ओजोन-परत एक सुरक्षा-कवच के रूप में काम करती है। ओजोन के महत्व को जानने के पहले ओजोन के बारे में सामान्य जानकारी (General information about ozone in Hindi) जरूरी है।
एक निष्क्रिय गैस है ओजोन
वास्तव में सूर्य के विकिरण के प्रभाव से ऑक्सीजन का अणु नवजात ऑक्सीजन में टूट जाता है और वह दूसरे अणु से मिलकर ओजोन का निर्माण करता है। पृथ्वी की सतह से 23-30 किमी ऊपर वायुमंडल में पृथ्वी के चारों ओर ओजोन गैस की काफी मोटी परत होती है।
ओजोन परत सूर्य की पराबैंगनी किरणों (sun's ultraviolet rays) का लगभग 90 से 94 फीसदी भाग अवशोषित कर इन्सान तथा अन्य जीवों को मोतियाबिंद, त्वचा कैंसर तथा तमाम अन्य प्रकार के त्वचा रोग जैसे दुष्प्रभावों से बचाती है।
पृथ्वी के लिए आवश्यक सूर्य के प्रकाश को आने देना तथा हानिकारक पराबैंगनी किरणों को आने से रोकने के कारण ही इसे पृथ्वी का सुरक्षा-कवच भी कहा जाता है।
संतरे के छिलके की तरह पृथ्वी के ऊपर चारों ओर 800 किमी मोटी वायुमंडल की परत है जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण वायुमंडल पृथ्वी से पृथक नहीं हो पाता।
वायुमंडल के अन्दर भी कई परतें हैं जो पृथ्वी के ऊपर क्रमश: क्षोभ मंडल, समताप मंडल, ओजोन मंडल, आयन मंडल एवं बहिर्मंडल के नाम से जाना जाता है। जलवायु की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण वायुमंडल की सबसे निचली परत है जिसमें समस्त वायुमंडलीय घटनाएं घटित होती हैं।
क्षोभमंडल की औसत मोटाई 14 किमी की होती है।
समताप मंडल की ऊंचाई क्षोभ मंडल के ऊपर 30 किमी मानी जाती है। समताप मंडल सीमा के ऊपर ओजोन मंडल का विस्तार 30 से 60 किमी की ऊंचाई तक है। उस मंडल में ओजोन गैस की प्रधानता है।
कतिपय कुछ भूगोलवेत्ताओं ने इस मंडल को समताप मंडल की ऊपरी परत स्वीकार किया है। यह परत प्रकृति का वरदान है। इसकी उपस्थिति के कारण पृथ्वी पर आवासित जीव-जन्तु और वनस्पतियों का अस्तित्व विद्यमान है।
इस ओजोन मंडल के ऊपर आयन मंडल है। इसकी ऊपरी सीमा 500 किमी तक है और इसके ऊपर यानी 500 किमी के ऊपर महिर्मंडल है जो 800 किमी के मध्य है।
ओजोन मंडल में ओजोन परत की मोटाई एक सामान नहीं है। यह ध्रुवीय क्षेत्र में अधिक मोटी है। यहां ज्यादा क्यों हैं? इसका कारण इससे स्पष्ट होगा कि ध्रुवों पर सूर्य की किरणें सीधी नहीं पड़तीं हैं। इस कारण ह्रास नहीं होता और साथ ही महाद्वीप की ऊंचाई सर्वाधिक होने के कारण यहां ठंड ज्यादा रहती है।
ध्रुवों पर छह माह तक धूप नहीं रहती। सूर्य किरणों के अभाव में नई ओजोन परत का निर्माण नहीं हो पाता है।
ओजोन के विनाश की प्रक्रिया
ध्रुवों पर पृथ्वी के चुम्बकत्व के कारण धनात्मक कण दक्षिण ध्रुव की ओर और ऋणात्मक कण उत्तरी ध्रुव की ओर चला जाता है। इसे जलवाष्प ऑक्सीकृत हो जाती है और दोनों रास्ते बंद हो जाते हैं। एक ओर हाइड्रोजन पराक्साइड के निर्माण से ओजोन का विनाश (destruction of ozone) शुरू हो जाता है तो दूसरी ओर नवजात ऑक्सीजन के परमाणु के साथ मिलकर नाइट्रस ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है। यह प्रभाव दक्षिण ध्रुव पर ज्यादा होता है।
ओजोन परत का क्षरण क्यों हो रहा है? (Why is the ozone layer depleting?)
इसके जवाब में वह तथ्य संकलित है कि रेफ्रिजरेटर और एसी में इस्तेमाल होने वाली क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन गैस (Chloro-fluoro-carbon gas used in refrigerators and ACs) का क्लोरीन अणु ओजोन क्षरण का मुख्य कारण (Main cause of ozone depletion) है।
Ozone depletion (ओजोन ह्रास) | ओजोन छिद्र क्या होता है?
क्लोरीन का अणु वायुमंडल में जाकर ओजोन के अणुओं को विनाशक के रूप में तोड़ता चला जाता है। इससे उस स्थान पर ओजोन की सान्द्रता दूसरे स्थान से कम हो जाती है, जिसे ओजोन-छिद्र कहते हैं।
इसी स्थान से हानिकाकर विकिरण पृथ्वी के वायुमंडल में आने लगते हैं। ओजोन परत का मापन डाबसन यूनिट से किया जाता है। अगस्त से नवम्बर माह तक ओजोन-परत का क्षरण चरम पर रहता है। वर्ष 1985 में ब्रिटिश अंटार्कटिका सर्वे टीम ने सर्वप्रथम अंटार्कटिका तट के ऊपर ओजोन-परत क्षरण का पता लगाया था।
इस छिद्र का मीटियोरोलॉजिकल एजेंसी अपनी रिपोर्ट जारी करते हुए बताया कि अंटार्कटिका के ऊपर समताप मंडल के ओजोन परत (stratospheric ozone layer over Antarctica) में अब तक का सबसे बड़ा छेद देखा गया है, जो अंटार्कटिका के आकार के दोगुना से भी ज्यादा है।
ओजोन मंडल में इतना बड़ा छेद देखकर सारा विश्व भय से आक्रांत हो उठा और ओजोन-परत के विनाशक गैस सीएफसी तथा अन्य के उत्सर्जन की रोकथाम के लिए आवश्यक कार्रवाई हेतु सतर्क हो गया। इस तरह ओजोन-परत, जो पृथ्वी का सुरक्षा कवच है, की सुरक्षा एवं नियंत्रण के अभी-भी सकारात्मक कदम उठाये जा रहे हैं।
ओजोन परत के बिना हम जिन्दा क्यों नहीं रह सकते?
यहां फिर से इस बात पर जोर देते हुए कहना है कि बिना ओजोन परत के हम जिन्दा नहीं रह सकते, क्योंकि विकिरण के कारण कैंसर, फसलों को नुकसान और समुद्री जीवों पर खतरा पैदा हो सकता है और ओजोन-परत इन्हीं पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करती है।
ऑस्ट्रेलिया का उदाहरण हमारे सामने हैं, जहां ओजोन-परत को काफी नुकसान पहुंचा है।
इसी नुकसान की वजह से सूर्य की पराबैंगनी किरणों से बड़ी संख्या में वहां के लोग त्वचा-कैंसर के शिकार हुए हैं। एक अन्य खतरा इसके कारण ध्रुवों की बर्फ पिघलने का है। अंटार्कटिका क्षेत्र में बड़े हिमखंड हैं यदि ये हिमखंड पिघलते हैं तो तटीय क्षेत्रों में जलस्तर के बढ़ जाने पर बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसके अलावा गर्मी बढ़ेगी जो नुकसानदायी होगी।
-अमिता सिंह
(देशबन्धु में प्रकाशित लेख का संपादित रूप साभार)