/hastakshep-prod/media/post_banners/IfHGCG2gnWpYftzdGkqR.jpg)
Why is the government ignoring the demands of the Maoists?
अक्कीराजू हरगोपाल उर्फ रामकृष्ण की मौत | Death of Akkiraju Haragopal alias Ramakrishna
माओवादी पार्टी के सेंट्रल कमेटी सदस्य रामकृष्ण (Maoist party central committee member Ramakrishna) की उनके भूमिगत जीवन के दौरान 63 साल की उम्र में मौत हो गई। तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, बंगाल बिहार समेत भारत के कई हिस्सों से उन्हें अंतिम लाल सलाम भेजे गए हैं, और लगातार भेजे जा रहे हैं।
कौन थे माओवादी नेता रामकृष्ण?
भारत की माओवादी पार्टी के नेताओं में रामकृष्ण ऐसे नेता हैं, जिन्हें बहुत अधिक लोग जानते हैं, और जिनका चेहरा भारतीय क्रांति में रुचि रखने वाले लोगों के लिए सबसे अधिक परिचित है। उसकी वजह यह है कि 2004 में रामकृष्ण की अगुवाई में ही पूर्ववर्ती पीपुल्स वार पार्टी { Communist Party of India (Marxist–Leninist) People's War (भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) पीपुल्स वार) } कांग्रेस की वाई एस राजशेखर रेड्डी सरकार से वार्ता के लिए बाहर आई थी।
11 अक्टूबर 2004 को उनके सार्वजनिक होने से उनके वापस भूमिगत होने तक तेलंगाना आंध्र और देश के प्रमुख राष्ट्रीय अखबारों में वो और यह शांति वार्ता छाई रही थी।
प्रसिद्ध मानवाधिकार कर्मी के जी कन्नाबीरन, प्रोफेसर हरगोपाल, कवि वरवर राव, संस्कृति कर्मी गदर ने इस वार्ता की मध्यस्थता की थी। सरकार की ओर से गृह मंत्री के जेनारेड्डी प्रमुख रूप से थे।
रामकृष्ण ने अपनी पार्टी की ओर से जो मांगें रखी थीं, उनमें मुख्य रूप से थीं - सामंतों की जमीनों को चिन्हित कर उन्हें भूमिहीन, जो मुख्यत दलित किसान हैं, के बीच बांटने, महिलाओं को इस बंटवारे में बराबर का भागीदार बनाना, दलितों महिलाओं, अल्पसंख्यकों पर होने वाले जुल्मों पर रोक लगाने के प्रभावी उपाय करना मानवाधिकारों को सुरक्षित करना, विश्वबैंक पोषित साम्राज्यवादी परियोजनाओं को रद्द करना, उन पर रोक लगाना, जनता के निकायों के लिए सेल्फ गवर्नेंस, विकास को शिक्षा और स्वास्थ्य पर केंद्रित करना, इन तक सबकी पहुंच बनाना, भ्रष्टाचार पर रोक लगाना, और अलग तेलंगाना राज्य का गठन करना।
वार्ता के लिए बाहर आने वाले दिन उन्होंने प्रकाशक जिले में जो सभा की, वो ऐतिहासिक थी, जिसमें लाखों लोगों ने भागीदारी की। राज्य द्वारा उन्हें 8 दिन तक जिस मंजीरा गेस्ट हाउस में रुकाया गया था, उसमें रामकृष्ण से मिलने वालों का तांता लगा रहता था, जिसमें अधिकांश लोग और समूह दलितों और महिलाओं के थे, जो अपने-अपने क्षेत्र में सामंतों के उत्पीड़न के शिकार थे।
एक अखबार के मुताबिक इस दौरान उन्हें कुल विभिन्न समस्यायों वाले कुल 836 ज्ञापन सौंपे गए, जो कि आंध्र सरकार के लिए बेहद शर्मिंदगी का कारण भी बना।
सरकारी बेरुखी से ऊबे लोगों के लिए रामकृष्ण और उनकी पार्टी उम्मीद की किरण की तरह थे। चित्र में रामकृष्ण से हाथ मिलाते पुलिस वालों के चेहरे की खुशी देखी जा सकती है।
लेकिन सरकार ने रामकृष्ण की अगुवाई वाली माओवादी वार्ताकारों की एक भी शर्त को नहीं माना और वार्ता विफल हो गई, रामकृष्ण अपनी टीम सहित वापस लौट गए। आंध्र में फिर से दोनों ओर से बंदूकें कंधों पर टांग ली गई, बल्कि सरकारी दमन अब और तेज़ हो गया।
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) अस्तित्व में आई
इसी साल मुख्य रूप से पीपुल्स वार और एमसीसी सहित कई क्रांतिकारी कम्युनिस्ट पार्टियों का आपस में विलय होकर "भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)" का जन्म हुआ, जो तब से आज तक भारत की हर सरकार के लिए "सबसे बड़ा आंतरिक खतरा" बनी हुई है।
2016 में आंध्र ओडिसा बॉर्डर पर एक मुठभेड़, जिसकी असलियत की जांच होनी अभी बाकी है, में रामकृष्ण का एकमात्र बेटा भी मारा गया।
1958 में जन्में आईआईटी वारंगल से इंजीनियरिंग ग्रेजुएट हरगोपाल उर्फ रामकृष्ण उर्फ आरके 1978 से भूमिगत थे। खबरों के मुताबिक उनकी मौत Corona संबंधी समस्यायों के बाद किडनी फेल होने से बीजापुर के किसी गांव में हुई।
उनकी मौत की खबर पढ़ते हुए, 2004 की वार्ता में हथियार छोड़ने और शांति के लिए उनकी ओर से रखी गई सारी शर्तें एक बार फिर सतह पर आ गई हैं, जो कि किसी भी देश के लोकतंत्र और मानवाधिकारों को मजबूत करने वाली है। फिर लोकतंत्र का दावा करने वाली सरकार ने इन्हें मानने से आखिर क्यों इंकार किया? यह एक सवाल है जो इस समय उठना ही चाहिए, जबकि मानवाधिकार हनन के मामले में पहले से भी अधिक बढ़ोत्तरी हुई है।
माओवादी हिंसा पर तो सवाल उठते ही रहते हैं, साथ में यह सवाल भी क्यों नहीं उठना चाहिए कि आखिर सरकार माओवादियों की मांगों को नजरअंदाज क्यों कर रही है, आखिर वह उनको सुनने की बजाय दमन का रास्ता क्यों अख्तियार कर रही है? क्रांतिकारी रामकृष्ण की मौत की खबर के साथ ये सारे सवाल एक बार फिर से सतह पर आ गए हैं।
फोटो - वार्ता के लिए बाहर आते, पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी के लड़ाकुओं से घिरे राम कृष्ण
सीमा आज़ाद
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)