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COP26: बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के लिए कमज़ोर देशों के समर्थन में अपने पत्ते खेलने की ज़रूरत

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Guest writer
12 Nov 2021
किगाली संशोधन को मंज़ूरी के साथ एक बार फिर भारत ने दिखाया नेतृत्व

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नई दिल्ली, 12 नवंबर 2021. एक बेहद तेज़ घटनाक्रम में यूके की COP प्रेसीडेंसी (UK's COP Presidency) ने ग्लासगो क्लाइमेट समिट (Glasgow Climate Summit) के लिए फैसलों का एक नया मसौदा जारी किया है।

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इस मसौदे की भाषा सशक्त है और इशारा करती है कि अंततः फैसलों की शक्ल कैसी हो सकती है। नवीनतम COP26 मसौदा राजनीतिक अनुकूलन, वित्त और हानि और क्षति पर मजबूत तत्वों के साथ काफी अधिक संतुलित दिखाई देता है। उत्सर्जन लक्ष्यों की दिशा में अंतर को पाटने के लिए कार्रवाई में तेजी लाने के उद्देश्य इसमें हैं और  पिछले संस्करण से कोई आमूल-चूल परिवर्तन नहीं है

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ग्रीन क्लाइमेट फंड क्यों बनाया गया था? (Why was the Green Climate Fund created?)

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गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन की चुनौती का जवाब देने में विकासशील देशों के प्रयासों (Efforts of developing countries in responding to the challenge of climate change) का समर्थन करने के लिए ग्रीन क्लाइमेट फण्ड बनाया गया था।जलवायु परिवर्तन की चुनौती का जवाब देने में विकासशील देशों के प्रयासों का समर्थन करने के लिए ग्रीन क्लाइमेट फण्ड बनाया गया था। इसमें अमीर राष्ट्रों द्वारा  $100bn + की आधी-अधूरी योजना और एडाप्टेशन यानी क्लाइमेट चेंज से होने वाले बदलावों का सामना करने के लिए  अनुकूलन, और क्लाइमेट चेंज की वजह से होने वाली क्षति (damage caused by climate change) पर समर्थन और  साथ देना तय था ।

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लेकिन इस मसौदे को ले कर विशेषज्ञों की कुछ चिंताएं हैं। इनमें चिंता का मुख्य विषय है इस मसौदे का जलवायु वित्त, अनुकूलन, और जलवायु हानि जैसे प्रमुख मुद्दों पर पर्याप्त प्रतिबद्धता का न होना। उदाहरण के लिए, अनुकूलन वित्त को बढ़ाने के लिए कोई तिथि या समायावली नहीं है। हालांकि इस दिशा में परामर्श की शक्ल में मसौदे में अनिश्चितता दिखाई दे रही है।

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बड़ा सवाल: किस मुद्दे के लिए खड़े होंगे देश?

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फिलहाल, सभी प्रमुख खिलाड़ी इस बात पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे हैं कि बुरे नतीजों के लिए दोषारोपण कोस पर हो। हालांकि उनकी ऊर्जा अच्छे परिणाम सुनिश्चित करने पर होनी चाहिए।

एक ऐसा परिणाम बनाने के लिए जो किसी भी स्तर पर सभी के लिए स्वीकार्य हो, यूरोपीय संघ और अमेरिका जैसी सबसे अमीर अर्थव्यवस्थाओं को कमजोर लोगों के समर्थन में अपने पत्ते खोलने और खेलने की ज़रूरत है।

यह ज़रूरी है कि यह दोनों देश वित्त, हानि और क्षति और अनुकूलन पर इस मसौदे में अधिक ज़ोर दे कर इसे संतुलित करें। वे इस संकट के समाधान के लिए दूसरों का इंतजार नहीं कर सकते। और अगर अन्ततः इस दिशा में कुछ गलत होता है तो इसके लिए उनके अलावा किसी और को दोषी नहीं ठहराया जाएगा।

ऐसा इसलिए क्योंकि कई कमजोर देश - जिनमें से कई के मंत्री वार्ता के सबसे चुनौतीपूर्ण पहलुओं का नेतृत्व कर रहे हैं - इस बात से अवगत हैं कि यह क्षण उनके समुदायों के भविष्य के लिए निर्णायक होगा। इसलिए उनकी अपेक्षा है कि उनकी भी आवाज़ सुनी जानी चाहिए और उनकी प्राथमिकताओं को ध्यान दिया जाना चाहिए।

यहां इस बात पर ध्यान देना ज़रूरी है कि भले ही इन मुद्दों पर मसौदा उतना खरा न उतरता हो, लेकिन जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन के मुद्दे पर यह अपेक्षाकृत बेहतर है। हालांकि इसमें सुधार की अभी काफ़ी गुंजाइश है।

बेहतर इसलिए कहा जायेगा क्योंकि इसमें एक बात प्रमुखता से शामिल है कि देशों को 2023 तक 1.5C तक वार्मिंग को सीमत करने के लिए अपनी जलवायु योजनाओं को बेहतर करने की आवश्यकता है। साथ ही उन्हें इनमें विस्तृत और दीर्घकालिक डीकार्बोनाइजेशन रणनीतियों के साथ 2022 तक तय करना चाहिए। पहली बार कोयले और जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से हटाने में तेजी लाने के लिये भी कहा गया है।

मसौदे में चिंताएं : वित्तपोषण है ज़रूरी (Concerns in the draft: Financing is essential)

मसौदे में चिंताएं भी ज़ाहिर की गई हैं कि यदि जलवायु वित्त के प्रावधान को बढ़ाया नहीं गया तो उत्सर्जन पर लगाम लगाने की महत्वाकांक्षा का पाठ सार्थक नहीं रह पाएगा।

फ़िलहाल ग्लासगो में सभी देश इस मसौदे पर प्रतिक्रिया देने के लिए एक बैठक में शामिल होंगे और आने वाले दिनों में मसौदे का दूसरा प्रारूप जारी करने से पहले गहन परामर्श के दौर होंगे।

अब देखना यह है कि अंततः यह मसौदा क्या शक्ल लेता है।

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