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नई दिल्ली, 30 अक्तूबर 2022. विश्व के नीति निर्माता कुछ ही दिनों में मिस्र के शर्म अल शेख में संयुक्त राष्ट्र के अगले जलवायु सम्मेलन, सीओपी 27 (The next UN climate conference in Sharm el-Sheikh, Egypt, COP 27), में मिल कर पूरी पृथ्वी पर जलवायु कार्यवाही के लिए कुछ अहम फैसले लेंगे। और ठीक उससे पहले पिछले कुछ समय से G7 और उसके सहयोगियों ने वियतनाम, इंडोनेशिया और भारत को कोयले से दूर होने के लिए अरबों डॉलर की पेशकश की है, लेकिन अभी तक इस दिशा में खास बढ़त नहीं देखी गयी है।
इस पेशकश को जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप (Just Energy Transition Partnership- JETP) कहा जा रहा है और इसका उद्गम हुआ था पिछली सीओपी के बाद, जब दक्षिण अफ्रीका के कोयला उद्योग को बंद कर एक न्यायसंगत ऊर्जा संक्रमण को बढ़ावा देने के लिए 8.5 बिलियन डॉलर की पेशकश की गयी।
इस मसले पर अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में चल रही खबरों की मानें तो G7 की वियतनाम और इंडोनेशिया के साथ चर्चा उस बिंदु तक आगे बढ़ गई है, जहां लगभग $5 बिलियन और $10 बिलियन की प्रारंभिक नकद पेशकश की गई है।
वहीं भारत के साथ बातचीत अब तक आगे नहीं बढ़ी है। ऐसा पता चल रहा है कि भारत सरकार अभी इसके बारे में सोच रही है।
JETP पर क्या रहेगा भारत का रुख?
अगर भारत अगले कुछ दिनों में इस पेशकश को स्वीकार लेता है तो इसकी घोषणा नवंबर में मिस्र के शर्म अल शेख में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (COP27) में की जा सकती है।
बड़ा सवाल ये है कि इस साझेदारी में शामिल होने के लिए क्या भारत को G7 की भारत द्वारा कोयले की खपत कम करने की शर्त को स्वीकार करना चाहिए?
भारत कोयले को लेकर पहले भी अपनी स्थिति साफ़ कर चुका है। साथ ही, पिछले साल ग्लासगो में सीओपी 26 के दौरान, भारत ने विकासशील देशों के लिए ऊर्जा के प्रमुख स्रोतों में से एक, कोयले को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के कठिन लक्ष्यों का विरोध भी किया था।
भारत उन विकासशील देशों में शामिल था, जिन्होंने ग्लासगो संधि में कोयले के उपभोग को ख़त्म करने के लिए प्रयोग हुई भाषा का विरोध किया। अंततः यूके, यूएस, चीन, और यूरोपीय संघ के बीच हुए आपसी समझौते से संधि की भाषा को भारत की मंशा के अनुरूप फिर से लिखा गया।
उसके बाद, पिछले साल दिसंबर में, राज्यसभा में उठे एक सवाल पर जवाब देते हुए पर्यावरण मंत्रालय ने कहा कि भारत में कोयला ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत बना रहेगा। मंत्रालय ने एक प्रतिक्रिया में कहा कि "पर्याप्त भंडार के साथ ऊर्जा का एक किफायती स्रोत होने के कारण, निकट भविष्य में कोयला ऊर्जा के एक प्रमुख स्रोत के रूप में बना रहेगा।
इसके दृष्टिगत अब यह देखना रोचक रहेगा कि क्या भारत JETP में शामिल होता है या नहीं। ध्यान रहे, G7 के साथ भारत पर संयुक्त राष्ट्र से भी इस दिशा में आगे बढ्ने का दबाव है।
भारत पर संयुक्त राष्ट्र ने भी दबाव बनाया है
अपनी हाल की भारत यात्रा में और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की एमिशन गैप रिपोर्ट के शुभारंभ के दौरान संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने G7 के इस प्रस्ताव का कई बार उल्लेख किया। इतना ही नहीं, उन्होंने भारत से इस साझेदारी में शामिल होने का आग्रह भी किया।
बीती 19 अक्टूबर को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई में अपने भाषण के दौरान उन्होंने कहा, "विकसित देशों की इस संदर्भ में बड़ी भूमिका है। यही वजह है कि मैंने भारत सहित तमाम देशों का आह्वान किया है कि वह नवीकरणीय ऊर्जा की तैनाती में तेजी लाने की महत्वाकांक्षी योजनाओं को बनाने के लिए एक साथ बढ़े। और इसीलिए मैं JETP की स्थापना का स्वागत करता हूं।”
उसके बाद, एमिशन्स गैप रिपोर्ट को लॉंच करते हुए भी उन्होने JETP पर अपना रुख़ दोहराया और भारत की भूमिका पर रौशनी डाली।
Will India join the partnership of this equitable energy transition?...