Will Jitin Prasada be able to garner Brahmin votes for BJP in UP?
जितिन प्रसाद ने बीजेपी ज्वाइन कर ली.
2019 में भी लोकसभा चुनाव के पहले ज्वाइन करने जा रहे थे पर बहुत कोशिश के बाद रुके थे.
दरअसल इस समय जितना मुश्किल दौर से जितिन प्रसाद गुजर रहे हैं उससे ज्यादा मुश्किल दौर से उत्तर प्रदेश में भाजपा गुजर रही है क्योंकि उत्तर प्रदेश में एक तो योगी आदित्यनाथ की ब्राह्मणविरोधी छवि है और दूसरा यूपी के राजनैतिक-प्रशासनिक ढांचे में आदित्यनाथ मोदी और शाह को घुसने नहीं दे रहे हैं. अपनी पूरी ताकत लगाने के बावजूद मोदी और शाह एके शर्मा को अभी तक यूपी में कोई बड़ा पद या कद उत्तर प्रदेश की राजनीति में नहीं दिलवा पाए. थकी-हारी और हताश बीजेपी के लिए जितिन प्रसाद एक और मोहरा थे उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों को साधने की कोशिश का और बीजेपी ने इस दिशा में यह कोशिश भी की है. हो सकता है कि अगले कुछ दिनों में बीजेपी जितिन प्रसाद को विधान परिषद का सदस्य बना दे या एके शर्मा के साथ यूपी सरकार के मंत्रिमंडल में कोई जगह दिलवा दे, पर बड़ा सवाल- क्या जितिन प्रसाद उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए ब्राह्मण वोट बटोर पाएंगे?
जितिन प्रसाद कितने 'बड़े' जनाधार वाले नेता हैं, इसे इस तथ्य से समझिए-
जितिन राहुल से नजदीकी बनाने के चलते यूपीए 2 में केंद्रीय मंत्री बने, 2014 के लोकसभा चुनाव में हारे, 2017 के यूपी चुनाव में हारे और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में वो इतनी बुरी तरह से हारे कि उनकी जमानत तक ज़ब्त हो गई. जितिन बंगाल में कांग्रेस के प्रभारी बनाये गए थे और इनकी निष्क्रियता व निकम्मेपन के चलते बंगाल में कांग्रेस साफ हो गई. इसी साल हुए यूपी पंचायत चुनाव में जितिन अपनी भाभी तक को चुनाव नहीं जिता सके. ब्राह्मण चेतना परिषद नाम से एक संस्था बनाई पर ब्राह्मणों से कनेक्ट कभी नहीं हो सके.
जितिन के पिता जितेन्द्र प्रसाद को राजीव गांधी ने सब कुछ दिया मगर 22 साल पहले सोनिया जी के खिलाफ वो कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़े व बुरी तरह से हारे भी और इसके बावज़ूद जितेंद्र प्रसाद के न रहने पर सोनिया जी ने उनकी पत्नी और जितिन की माँ कांता प्रसाद को टिकट दिया. कांता प्रसाद हार गईं और फिर सोनिया जी ने बेटे जितिन प्रसाद को दिया, मंत्री बनाया.
यहां मैं बीजेपी के वर्तमान राजनीति के मॉडल पर भी छोटी सी टिप्पणी करना चाहूंगा.
बीजेपी को अगर यह लगता है कि वह दूसरी पार्टी के नेताओं को अपने यहाँ शामिल करके वोट ट्रांसफर करा लेगी, तो यह उसकी गलतफहमी है.
राजनीति में बहुत पानी बह चुका है और आज की स्थिति में जनता अपना वोट किसी नेता के कहने पर नहीं देती, बल्कि अपनी विचारधारा और उससे खुद को मिलने वाली मजबूती का विश्लेषण करने के बाद देती है, उदाहरण के तौर पर बंगाल में बीजेपी ने बहुत सारे टीएमसी नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कराया और उनमें से अधिकांश चुनाव हार गए और मुझे आगे देश की राजनीति में भी एक ऐसा मॉडल आता दिख रहा है जिसमें नेता की जगह कार्यकर्ता और मुद्दे ही प्रभाव दिखा पाएंगे.
यहां मैं एक बात स्पष्ट कर दूँ कि अभी भी कांग्रेस में मिलिंद देवड़ा जैसे कई नेता पुत्र हैं, जिनका विचारधारा से कोई लेना-देना नहीं है और वह समय आने पर आगे कभी भी पार्टी छोड़ सकते हैं!
(रामकृष्ण मिश्रा की फेसबुक टिप्पणी का संपादित रूप साभार)