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अयोध्या की समृद्धि में क्या गैर- सवर्ण भी होंगे हिस्सेदार!

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hastakshep
10 Aug 2020
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एच.एल. दुसाध : खूबियों से लैस एक दलित पत्रकार !

लेखक एच एल दुसाध बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। इन्होंने आर्थिक और सामाजिक विषमताओं से जुड़ी गंभीर समस्याओं को संबोधित ‘ज्वलंत समस्याएं श्रृंखला’ की पुस्तकों का संपादन, लेखन और प्रकाशन किया है। सेज, आरक्षण पर संघर्ष, मुद्दाविहीन चुनाव, महिला सशक्तिकरण, मुस्लिम समुदाय की बदहाली, जाति जनगणना, नक्सलवाद, ब्राह्मणवाद, जाति उन्मूलन, दलित उत्पीड़न जैसे विषयों पर डेढ़ दर्जन किताबें प्रकाशित हुई हैं।

Will non-upper castes also participate in the prosperity of Ayodhya!

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जब से अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन (Bhoomi pujan of Ram temple in Ayodhya) हुआ है, तब से चारों दिशाओं में रामनगरी के आर्थिक विकास के चर्चे के शुरू हो गए हैं। इस चर्चा के पीछे राम जन्मभूमि परिसर में भूमि पूजन (Bhoomi Poojan in Ramjanmabhoomi complex) के बाद आयोजित समारोह मे मोदी - योगी द्वारा व्यक्त उद्गार है।

यूपी के मुख्यमंत्री योगी ने उक्त समारोह में जहाँ रामायण सर्किट के बहाने विकास की झलक दिखलाया, वहीं मोदी ने अपने भाषण में रामनगरी के आर्थिक विकास का सूत्र देते हुये कहा था कि इस मंदिर के बनाने से इस क्षेत्र का अर्थतंत्र ही बादल जाएगा। यहाँ हर क्षेत्र मे नए अवसर बनेंगे : हर क्षेत्र में नए अवसर बढ़ेंगे।‘

बहरहाल योगी- मोदी द्वारा अयोध्या के विकास का सपना दिखाये जाने के बाद जिस रामनगरी का आर्थिक विकास चर्चा का विषय बना हुआ है, उसके बारे में मोदी सरकार के मुखपत्र के रूप में विख्यात देश के सबसे बड़े अखबार ने 9 अगस्त को ‘समृद्ध अयोध्या‘ शीर्षक से संपादकीय लिखकर इसकी भावी समृद्धि की तस्वीर पेश की है।

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अखबार ने लिखा है–

‘अयोध्या में राममंदिर भूमि पूजन के साथ ही रामनगरी का भी बहुत जल्दी कायाकल्प करने की पूरी तैयारी हो चुकी है। व्यावसायिक गतिविधियों का बहुत व्यापक केंद्र शीघ्र ही धरातल पर होगा। अयोध्या नगरी अब तक के अपने सौंदर्य से अलग ही नजर आएगी। यहाँ वाणिज्यिक संकुल के रूप में तीन नए बाजार विकसित होंगे। हालांकि कुछ वर्षों में अयोध्या के शहरी ढांचे में काफी बदलाव हुआ है। लेकिन नयी परिस्थितियों में भविष्य की जरूरतों को देखते हुये आधुनिक स्वरूप वाली बाज़ारों की अवश्यकता है। राम मंदिर जाने के लिए एनएच-27 पर मोहबरा से होते हुये टेढ़ी बाजार तक एलीवेटेड रोड को सबसे उपुक्त माना जा रहा है। इसी के आसपास ये आधुनिक बाजार तैयार होंगे, ताकि इस मार्ग से आवागमन करने वाले श्रद्धालु और पर्यटकों को ख़रीदारी की बेहतर सुविधा मिल सके। इसके अलावा भी व्यावसायिक गतिविधियों के लिए कई योजनाएँ हैं।

इन व्यावसायिक और आर्थिक गतिविधियों का दूसरा पहलू यह है कि रामनगरी के लोगों को स्वरोजगार के लिए व्यवस्थित स्थान मिल सकेगा। निश्चित रूप से सरकार का यह कदम न केवल अयोध्या की सूरत बदलने वाला है, बल्कि उसकी आर्थिक समृद्धि का नया अध्याय भी रचने वाला है। भले ही अयोध्या राम नगरी हो, लेकिन आर्थिक विकास के मामले में काफी पिछड़ी रही है। ऐसा उसका अपेक्षित विकास न होने के कारण था, लेकिन अब यह जिला चौतरफा सड़कों की जाल से जुड़ चुका है। आसपास के जिले भी न केवल इसके और करीब आ चुके हैं, बल्कि बाहरी पर्यटकों और श्रद्धालुओं के भी पहुँचने का मार्ग प्रशस्त है। उम्मीद है कि यह अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन की सूची में बहुत जल्द अत्यंत लोकप्रिय केंद्र साबित होगा। ऐसे में एक अतिविकसित धर्मनगरी में जो भी आधुनिक सुख-सुविधाएं अपेक्षित होती हैं, उन सब का विकास अति शीघ्र और बहुत तेजी से करना होगा। इन जरूरतों को समझते हुये प्रदेश सरकार इसी दिशा में काम कर रही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्द ही अयोध्या नगरी हर दृष्टि से एक नए और समृद्ध स्वरूप में हमारे सामने होगी। अयोध्या की विकासगाथा उत्तर प्रदेश को भी समृद्ध करेगी।‘

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भाजपा समर्थक देश के सबसे बड़े अखबार के उपरोक्त संपादकीय से भी साफ है कि अयोध्या की आर्थिक समृद्धि के नया अध्याय रचने का काम ज़ोर-शोर से शुरू हो चुका है और आने वाले दिनों में यह दुनिया के नक्शे पर हर दृष्टि से एक नए और समृद्ध स्वरूप में सामने होगी।

वैसे यह तथ्य है कि जहां-जहां लोकप्रिय तीर्थस्थल होते हैं, वहाँ स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी विकसित हो जाते हैं। ऐसे में आज जबकि दुनिया के दूसरे विशालतम आबादी वाले देश में राममंदिर के चलते अयोध्या संभवत: भारत के सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल के साथ ही विशिष्ट पर्यटन स्थल में तब्दील होने जा रही है, कोई विशेष प्रयास करे या न करे, इसका आर्थिक विकास होना ही होना है। पर, अब जबकि सरकार खुद ही इसके आर्थिक विकास के लिए इच्छुक दिख रही है, तब इसे एक नए आर्थिक केंद्र में विकसित होने से कौन रोक ही सकता ही है। ऐसे में एक बड़ा सवाल बहुजन बुद्धिजीवियों के जेहन में उभर रहा है, वह यह कि अयोध्या की आर्थिक समृद्धि में क्या दलित, आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यक भी हिस्सेदार होंगे?

उपरोक्त सवाल के जवाब में दो कारणों से इस लेखक का मानना है कि अयोध्या की समृद्धि में गैर-सवणों की कोई हिस्सेदारी नहीं होगी।
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पहला, यह कि आज़ाद भारत मे संघ प्रशिक्षित मोदी ने जिस उग्र तरीके से वर्ग-संघर्ष छेड़ा है, वह अभूतपूर्व है। वर्ग- संघर्ष मे वह अपने वर्ग- शत्रुओं(शूद्रातिशूद्रों) को फिनिश करने तथा शक्ति के समस्त स्रोत देश के जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के हाथ में सौंपने के लिए जिस हद तक आमादा हैं, उससे अयोध्या की आर्थिक समृद्धि में दलित, आदिवासी, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की भागीदारी का सपना देखना दुष्कर है। लेकिन सिर्फ जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के हाथों में शक्ति के समस्त स्रोत सुलभ कराने के लिए ही नहीं, बल्कि हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की दोहरी जरूरतवश भी मोदी-योगी सरकारों को अयोध्या की आर्थिक गतिविधियों में गैर-सवणों को हिस्सा देने से रोकेगी।

स्मरण रहे भाजपा का पितृ संगठन संघ जिस हिन्दू राष्ट्र की बात करता है, उसमें शूद्रातिशूद्रों का अर्थोपार्जन की गतिविधियों में भागीदारी हिन्दू धर्म के विरुद्ध जाएगी। कारण, जिन हिन्दू धर्म शास्त्रों के द्वारा संघ के सपनों के हिन्दू राष्ट्र को परिचालित होना है, वे धर्मशास्त्र अर्थोपार्जन की समस्त गतिविधियों के साथ शक्ति के समस्त स्रोतों (आर्थिक-राजनैतिक- शैक्षिक- धार्मिक इत्यादि) के भोग का अधिकार सिर्फ हिन्दू ईश्वर के मुख-बाहु-जंघे से जन्मे लोगों को ही प्रदान करते हैं। ऐसे में जाहिर है जो अयोध्या हिंदुओं के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक नगरी में विकसित होने जा रही है, वहाँ मोदी-योगी की सरकारें शूद्रातिशूद्रों के साथ म्लेच्छों को आर्थिक गतिविधियों में भागीदार कोई प्रावधान नहीं रचेंगी। उल्टे ऐसा हो सकता कि रामनगरी में हिन्दू धर्म की पताका और शान से लहराने के लिए, गैर-सवर्णों के जो पहले के व्यावसायिक प्रतिष्ठान हैं, उन्हें भी छल-बल-कल से ध्वस्त कर दिया जाय। किन्तु अयोध्या की आर्थिक समृद्धि में गैर-सवर्णों के बहिष्कृत होने के पक्ष में मैंने जो युक्ति खड़ी की है, वह भाजपा के अतीत का चाल – चलन देखते हुये एक सामान्य सिद्धान्त मे आएगा। किन्तु विद्वान कहते हैं कि हर सामान्य सिद्धान्त का कुछ अपवाद भी होता है। इसलिए रामनगरी के अर्थतन्त्र में गैर-सवर्णों की हिस्सेदारी (Non-upper castes share in the economy of Ram Nagari) के प्रति चाहे तो कुछ लोग आशावादी भी हो सकते हैं।

जो लोग आशावादी होना चाहते हैं उनके पक्ष सबसे बड़ी जो बात जाती है, वह यह कि इस धार्मिक नगरी का अर्थतन्त्र उस राम के नाम पर विकसित होने जा रहा है, जिन्हें आम हिन्दू से लेकर छोटे-बड़े सभी साधु-संत और राष्ट्रवादी सदम्भ मर्यादा पुरुषोतम कहते हैं।
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राम मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों हैं, इसके पक्ष में युक्ति खड़ी करते हुये भाजपा समर्थक सबसे बड़े अखबार ने कहा है,’भगवान राम का सम्पूर्ण जीवन सबको साथ लेकर चलने, सबके मान-सम्मान की चिंता करने, सबकी भलाई सुनिश्चित करने के प्रति समर्पित रहा है, इसीलिए वह मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता कि राममन्दिर निर्माण की प्रक्रिया जैसे-जैसे आगे बढ़े, वैसे-वैसे जन-जन में यह संदेश जाये कि राम मंदिर का निर्माण एक राष्ट्र निर्माण का माध्यम है’।

यहाँ मैं फिर सिद्धान्त के साथ अपवाद की बात दोहराना चाहूँगा। हिंदुओं अर्थात भारत के जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग को धर्म से मिली शक्ति / सत्ता का सामान्य यह सिद्धान्त है कि शासक वर्ग ने इसका सद्व्यवहार सिर्फ और सिर्फ अपनी सुख-समृद्धि का महल खड़ा करने में किया है। इस मामले मे तो भाजपा सरकारों ने बहुत ही शर्मनाक दृष्टांत स्थापित किया है। राममंदिर के सहारे राज्यों से लेकर केंद्र तक की सत्ता पर मजबूती से काबिज हुई भाजपा ने सत्ता का इस्तेमान सिर्फ बहुसंख्य वंचितों को गुलाम बनाने; देश को तोड़ने तथा हिंदुओं को बार्बर मानव समुदाय में तब्दील करने में किया है। यह काम इतनी निर्ममता और बेहयाई से किया है कि मुमकिन है मर्यादा पुरुषोत्तम का लिहाज करते हुये उनमे प्रायश्चित बोध पनपे और वे शंबूक व सबरियों की वर्तमान पीढ़ी का जीवन सुखमय बनाने के लिए अपवाद स्वरूप कुछ अलग काम कर जाएँ।

एच.एल. दुसाध

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लेखक एच एल दुसाध बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। इन्होंने आर्थिक और सामाजिक विषमताओं से जुड़ी गंभीर समस्याओं को संबोधित ‘ज्वलंत समस्याएं श्रृंखला’ की पुस्तकों का संपादन, लेखन और प्रकाशन किया है। सेज, आरक्षण पर संघर्ष, मुद्दाविहीन चुनाव, महिला सशक्तिकरण, मुस्लिम समुदाय की बदहाली, जाति जनगणना, नक्सलवाद, ब्राह्मणवाद, जाति उन्मूलन, दलित उत्पीड़न जैसे विषयों पर डेढ़ दर्जन किताबें प्रकाशित हुई हैं।

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