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Will these results further divide the opposition and make it easier for Modi?
अप्रत्याशित न सही, हैरान करने वाली जरूर है भाजपा की जीत!
यह अप्रत्याशित भले नहीं हो, कुछ हैरान करने वाला जरूर है। विधानसभा चुनाव के मौजूदा चक्र में प्रभावशाली कामयाबी और उसमें भी खासतौर पर उत्तर प्रदेश में जोरदार कामयाबी के मौके पर भाजपा मुख्यालय में हुई समारोही सभा में बोलते हुए प्रधानमंत्री ने, 2024 के आम चुनाव के लिए अपना चुनाव प्रचार शुरू कर दिया।
नरेंद्र मोदी ने 2019 के आम चुनाव में अपनी प्रभावशाली जीत की याद दिलाते हुए कहा कि ‘‘विद्वानों’’ तब यह कहा था कि यह जीत तो तभी तय हो गयी थी, जब 2017 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की जीत हुई थी। उम्मीद है कि 2022 की उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव की जीत के बाद ‘‘विद्वान’’ इसे भी 2024 की जीत तय होना कहेंगे!
वैसे उत्तर प्रदेश के 2022 के चुनाव का सीधा कनैक्शन, 2024 के आम चुनाव से जोड़ने की शुरूआत खुद प्रधानमंत्री मोदी ने नहीं की है। विधानसभाई चुनाव के ताजा चक्र में प्रभावशाली जीत के मौके पर प्रधानमंत्री ने जिस चुनावी कनैक्शन की बाकायदा पुष्टि की है, उसकी शुरूआत उनकी सरकार के नंबर-टू माने जाने वाले, अमित शाह ने उत्तर प्रदेश में इस बार का चुनाव प्रचार शुरू करते हुए ही कर दी थी। यह दूसरी बात है कि इस कनैक्शन पर जोर देने के पीछे तब भाजपा नेताओं का मकसद, मोदी के प्रभाव तथा राजनीतिक प्रतिष्ठा की दुहाई का, उत्तर प्रदेश में कठिन लगते चुनावी मुकाबले के लिए दोहन करना ही था। बहरहाल, अब इस कनैक्शन का अर्थ बदल गया है और प्रधानमंत्री, 2024 के चुनाव की अपनी संभावनाओं को मजबूत प्रदर्शित करने और इसके जरिए संभावित रूप से मजबूत करने के लिए भी, इस कनैक्शन की याद दिला रहे हैं।
फिर भी, अगर प्रधानमंत्री विधानसभाई चुनाव के ताजा चक्र में भाजपा की कामयाबी में, दो साल बाद होने वाले अगले आम चुनाव में अपनी संभावनाओं की बढ़ोतरी देख रहे हैं, तो इसे निराधार भी नहीं कहा जाएगा।
आखिरकार, विधानसभाई चुनाव के इस चक्र में सत्ताधारी पार्टी, देश के सबसे बड़े राज्य, उत्तर प्रदेश में ही सत्ता अपने हाथ में बनाए रहने में कामयाब नहीं रही है, इस चक्र में तीन अन्य राज्यों में भी सत्ता अपने हाथ में बनाए रखने में कामयाब रही है। इस चक्र में चुनाव से गुजरे पांच राज्यों में से इन चार राज्यों में ही चुनाव से पहले भाजपा की सरकारें थीं।
पंजाब अकेला राज्य है, जहां चुनाव से पहले भी कांग्रेस की सरकार थी और चुनाव में आप पार्टी की सरकार के पक्ष में जनादेश आया है। पंजाब में भाजपा की सीटों आयी मामूली गिरावट और उत्तराखंड में उसकी सीटों व मत फीसद में उल्लेखनीय कमी को अगर छोड़ दिया जाए तो, विधानसभाई चुनाव के इस चक्र में मोदी के नेतृत्व में भाजपा कुल मिलाकर कम से कम ना नफा ना नुकसान की स्थिति में तो जरूर ही रही है।
भविष्य की राजनीतिक संभावनाओं के लिए भाजपा की जीत का अर्थ क्या है?
भविष्य की राजनीतिक संभावनाओं के लिए इसके नतीजे का अर्थ इसलिए और भी बढ़ जाता है कि 2019 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी की, पहले से भी ज्यादा वोट तथा सीटों के साथ जीत के बाद से, विधानसभाई चुनावों के सभी चक्रों में भाजपा को हार का नहीं तो उल्लेखनीय नुकसान का मुंह जरूर देखना पड़ा था। 2019 के आम चुनाव के चंद महीने बाद आए विधानसभाई चुनाव के महत्वपूर्ण चक्र में भाजपा झारखंड तथा महाराष्ट्र में सरकारें गंवा बैठी थी, जबकि हरियाणा में बहुमत से काफी पीछे रह जाने के चलते उसे जजपा के साथ गठजोड़ सरकार बनानी पड़ी थी। फिर दिल्ली में विधानसभाई चुनाव में एक बार फिर भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा और कुछ ही आगे चलकर, बिहार में विधानसभा चुनाव में जदयू-भाजपा गठजोड़ हारते-हारते बचा।
विधानसभा चुनाव के अगले महत्वपूर्ण चरण को भाजपा की नाकामी की तरह ही देखा गया, जिसमें अपने सारे संसाधन और सारी ताकत झौंकने के बावजूद, भाजपा प. बंगाल में सत्ता के आस-पास भी नहीं पहुंच पायी। इसी चक्र में भाजपा की सहयोगी अन्नाद्रमुक पार्टी, जोरदार तरीके से भाजपाविरोधी गठबंधन के हाथों सत्ता गंवा बैठी, जबकि केरल में सीपीएम के नेतृत्व में एलडीएफ ने राज्य के आम चलन के उलट, लगातार दूसरी बार जोरदार जनादेश हासिल किया, जबकि भाजपा इस राज्य में पिछले चुनाव में ही खुला अपना खाता भी बंद करा बैठी। असम में जरूर भाजपा, सत्ता पर कब्जा बनाए रखने में कामयाब रही, लेकिन बहुत-बहुत मामूली अंतर से।
इस तरह, 2019 के आम चुनाव के बाद आए विधानसभाई चुनावों के सभी चक्रों में आम तौर पर यही छवि बन रही थी कि भाजपा का जनसमर्थन गिरावट पर था और 2019 की चुनावी कामयाबी, एक संयोग ही ज्यादा थी, जो उसकी ताकत को वास्तविकता से बढ़ाकर दिखाती थी। इस छवि को, ऐतिहासिक किसान आंदोलन समेत, मेहनतकश जनता के तथा विशेष तौर पर रोजगार की मांग को लेकर युवाओं के बढ़ते आंदोलनों ने और कोविड की महामारी के दौरान मोदी सरकार की घनघोर विफलताओं से पैदा हुई लोगों की नाराजगी ने और भी गाढ़ा कर दिया था। इस सब की पृष्ठभूमि में विधानसभाई चुनाव के ताजा चक्र में भाजपा का कुल मिलाकर ना नफा ना नुकसान में रहना भी, अगर इस गिरावट के पलटे जाने का नहीं, तो थमने का तो संकेत करता ही है।
अचरज नहीं कि मोदी की भाजपा इसे ही अपनी बड़ी भारी कामयाबी बनाकर दिखाने की कोशिश कर रही है और इसे भाजपा के शासन के खिलाफ कोई एंटी-इन्कम्बेंसी न होने के सबूत से खींचकर, उसके लिए सकारात्मक समर्थन बनाकर चलाने की कोशिश कर रही है।
2024 के लोक सभा चुनाव में भाजपा की जीत की संभावनाओं में मददगार नजर आने वाले कारक
कहने की जरूरत नहीं है कि मोदी की भाजपा के ग्राफ में, उसके दूसरे कार्यक्रम के आधे से ज्यादा के गुजर जाने के बाद, गिरावट का थमता नजर आना भी, अगले आम चुनाव में उसके विकल्प की संभावनाओं को कठिन बनाता है, फिर इस गिरावट के थमते नजर आने का, मोदी राज के पक्ष में हवा बनाने के लिए वह कैसे इस्तेमाल करेगी, इसका अनुमान लगाना कोई मुश्किल नहीं है। लेकिन, अगले आम चुनाव में मोदी के विकल्प को उभारने के प्रयासों की मुश्किलें विधानसभाई चुनाव के ताजा चक्र के नतीजों से सिर्फ इसीलिए नहीं बढ़ी हैं कि आम चुनाव के बाद से भाजपा के समर्थन में नजर आ रही गिरावट, इन नतीजों से थमती नजर आती है।
2024 के चुनाव में मोदी की जीत की संभावनाओं में मददगार नजर आने वाला एक और कारक इस चक्र के चुनाव नतीजों से पुख्ता होता नजर आता है। और इसका संबंध, विपक्षी एकता की संभावनाओं पर इस चक्र के नतीजों के संभावित असर से है।
सभी जानते हैं कि खासतौर पर प. बंगाल के चुनाव के बाद से विपक्षी एकता की संभावनाओं को कुछ न कुछ धक्का ही लगा था। बंगाल में मोदी को हराने के बाद, ममता बैनर्जी की प्रधानमंत्रित्व की आकांक्षाएं इसके पीछे एक प्रमुख कारक बनी रही थीं। इसी के हिस्से के तौर पर सुश्री बैनर्जी ने त्रिपुरा, गोवा तथा अन्यत्र में भी यहां-वहां, अन्य विपक्षी पार्टियों में तथा खासतौर पर कांग्रेस में तोड़-फोड़कर, अपने पांव फैलाने की कोशिश की थी। तृणमूल कांग्रेस की और आम आदमी पार्टी की भी ऐसी ही कोशिशों का असर, कम से कम गोवा में भाजपा की जीत सुनिश्चित करने वाला साबित हुआ लगता है।
बहरहाल, अब पंजाब में आम आदमी पार्टी की जबर्दस्त जीत के बाद और वह भी कांग्रेस को हराकर उसकी जीत के बाद, भाजपाविरोधी विपक्ष के बिखराव की इस प्रक्रिया के और तेज होने के ही आसार नजर आते हैं। अचरज नहीं होगा कि इससे, न सिर्फ कांग्रेस को किनारे कर के गैर-कांग्रेसी विपक्षी एकता की पुकारें तेज हों बल्कि कांग्रेस का स्थानापन्न बनने की कोशिश में आम आदमी जैसी पार्टियां, पहले गुजरात और फिर मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में विपक्ष का वोट और विभाजित कर, भाजपा की सत्ता को ही सुरक्षित करने में मददगार हों।
यह संयोग ही नहीं है कि पंजाब के नतीजे आते ही, आम आदमी पार्टी के प्रवक्ताओं ने कांग्रेस का स्वाभाविक और राष्ट्रीय विकल्प बनने के लिए अपना दावा बाकायदा पेश भी कर दिया है।
बेशक, कांग्रेस की राजनीतिक-चुनावी शक्ति लगातार गिरावट पर है और ऐसे में वह किसी विपक्षी कतारबंदी का स्वाभाविक नेता होने का दावा नहीं कर सकती है। लेकिन, दूसरी कोई विपक्षी पार्टी भी इस तरह का स्वाभाविक नेता माने जाने का दावा नहीं कर सकती है, न तृणमूल कांग्रेस, न आम आदमी पार्टी और न कोई अन्य पार्टी।
दरअस्ल यह रास्ता ही उल्टा है यानी घोड़े के आगे गाड़ी लगाने का। पहले से खुद को विपक्षी कतारों का नेता मनवाने या साबित करने की कोई भी कोशिश, विपक्षी कतारों को और ज्यादा बांटने का ही काम कर सकती है। और मोदी राज की इससे बड़ी मदद दूसरी नहीं हो सकती है।
वास्तव में 2022 के बाद भी विपक्ष का विभाजन ही है जो नरेंद्र मोदी को 2024 में जीत का भरोसा दिलाता है। वर्ना उत्तर प्रदेश में मोदी-योगी की शानदार जीत के पीछे भी, न सिर्फ भाजपा के करीब पचास सीटें गंवाने की बल्कि 2019 के आम चुनाव की तुलना में, करीब आठ फीसद वोट गंवाने की कहानी तो छुपी ही हुई है, सपा और बसपा का सम्मिलित वोट, भाजपा से खासा ज्यादा रहने की कहानी भी छुपी हुई है।
इस चुनाव में भी भाजपा और उसके सहयोगियों को कुल 44 फीसद वोट मिला है, जबकि सपा गठबंधन के 36.5 फीसद वोट के साथ बसपा का 12.8 फीसद मिलकर, आसानी से चुनाव नतीजों को पलट सकता था। लेकिन, उत्तर प्रदेश के चुनाव नतीजों में ही इसके भी इशारे छुपे हुए हैं कि विपक्षी नेताओं के शीर्ष से एकजुट हुए बिना भी, मोदी की भाजपा को शिकस्त दी जा सकती है।
इस चुनाव में सपा गठबंधन के वोट में 2017 के विधानसभाई चुनाव की तुलना में 12 फीसद से ज्यादा की बढ़ोतरी, इसका इशारा करती है कि खुद आम जनता नीचे से विपक्षी ताकतों को एकजुट कर, विकल्प खड़ा कर सकती है। विपक्षी पार्टियां, खुद को ही नेता मनवाने के झगड़ों से इस संभावना का रास्ता मुश्किल कर सकती हैं या फिर जनतंत्र तथा जनता के हित के मुद्दों पर संघर्षों में एकजुटता का दायरा बढ़ाकर, इस काम को आसान बना सकती हैं।
विधानसभाई चुनाव के इस चक्र के नतीजों से अगर विपक्ष का बिखराव बढ़ता है, तो वही 2024 में मोदी की जीत का रास्ता बनाने में मदद करेगा।
राजेंद्र शर्मा