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Wind energy is taking India towards net-zero target
जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए अगले दशक में तीन गुना तेज़ी से पवन ऊर्जा स्थापित करने की आवश्यकता
India is the fourth largest energy consumer in the world
दुनिया को नेट ज़ीरो मार्ग पर रखने और जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए अगले दशक में तीन गुना तेज़ी से पवन ऊर्जा स्थापित करने की आवश्यकता है। अगर बात भारत की करें तो भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है। और इस हिसाब से ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए एक दुनिया का महत्वपूर्ण वेक्टर है। हालांकि, 1.35 बिलियन से अधिक लोगों के साथ, इसका प्रति व्यक्ति कार्बन फूट प्रिंट केवल 2 टन CO2e के आसपास है। जबकि ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों में प्रति व्यक्ति कार्बन फूट प्रिंट 17 टन CO2 है।
ऐसे में पहले से ही महत्वाकांक्षी अक्षय ऊर्जा लक्ष्य (Renewable energy target) के बावजूद , भारत ने आज तक नेट जीरो लक्ष्य निर्धारित करने से परहेज किया है लेकिन राजनीतिक बदलावों ने भारत को 2015 से क्लीन एनर्जी ट्रांजीशन के रास्ते की तरफ मोड़ा और भारत ने 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था के कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता में 2005 के स्तर की तुलना में 33-35% की कमी का वादा किया।
हमारा देश देश जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति संवेदनशील है। लगातार एक के बाद एक सूखा, बाढ़, वनों की अंधाधुन्द कटाई, गिरते भूजल स्तर जैसी समस्यों से लगातर रूबरू होने के चलते अब जलवायु परिवर्तन (Climate change) के बारे में लोगों की सोच में बदलाव आया है। 2022 तक भारत के 175 गीगावॉट के अक्षय ऊर्जा लक्ष्य में 60 गीगावॉट की पवन शामिल है। फरवरी 2021 तक भारत में , 39 गीगावॉट की पवन क्षमता स्थापित की जा चुकी है। जो कुल ऊर्जा मिश्रण का 10.25% है।
भारत सरकार ने 2030 तक 450 गीगावॉट रिन्यूएबिल ऊर्जा का लक्ष्य निर्धारित किया है जिसमें 140 GW पवन ऊर्जा शामिल है। ऐसे में क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर ने भारत को ग्लोबल वार्मिंग को पेरिस समझौते के मुताबिक 2° C तक रोकने के संगत" माना है। बस व्यापक कार्बन न्यूट्रल रणनीति के अभाव में भारत के क्लीन एनर्जी लक्ष्यों को तत्काल और लक्षित पूरा करना के लिए इस दिशा में नीति नियम और सुधारों के कार्यान्वयन की ज़रूरत है।
भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा पवन ऊर्जा बाजार
इस क्रम में भारत की नज़र से, GWEC में नीति निदेशक, मार्तंड शार्दुल कहते हैं, “भारत 38 गीगावाट से ज़्यादा की क्षमता के साथ दुनिया का चौथा सबसे बड़ा पवन ऊर्जा बाजार है। साल 2050 तक नेट ज़ीरो लक्ष्य हासिल करने में तटवर्ती और अपतटीय पवन दोनों को एक बड़ी भूमिका निभानी होगी। भारत सरकार ने पहले ही रेन्युब्ल के क्षेत्र में महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित कर रखे हैं और साथ ही ग्रीन हाइड्रोजन की नीलामी के इरादे भी सार्वजनिक कर दिए हैं। लेकिन स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को प्राथमिकता देने के लिए सही और नयी नीतियों को लागू करना महत्वपूर्ण होगा।”
नेट ज़ीरो भारत का निर्माण करने का क्या अर्थ है
नेट ज़ीरो पर बोलते हुए मार्तंड आगे कहते हैं,
“नेट ज़ीरो भारत का निर्माण करने का अर्थ है कई लाख नए, दीर्घकालिक, और स्थानीय रोज़गार और नौकरियों अवसर पैदा करना। अपनी ‘आत्मनिर्भर भारत' पहल के माध्यम से, देश खुद को एक अक्षय ऊर्जा विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करना चाहता है, जो बड़े पैमाने पर निवेश और आपूर्ति श्रृंखला के अवसरों को खोलेगा और भारत को अन्य देशों का समर्थन करने के लिए दुनिया की स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता बनाएगा और तमाम देशों को नेट ज़ीरो के मार्ग पर बढ़ने में मदद करेगा।”
वहीं बात दक्षिण एशिया की करें तो उम्मीद है कि एशिया पैसिफिक क्षेत्र अगले पांच सालों में पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता विकास को यूँ ही गति देता रहेगा और 2021-2025 दुनिया की अनुमानित पवन ऊर्जा क्षमता की आधी से ज़्यादा अपने नाम कर लेगा, लेकिन GWEC की ताज़ा रिपोर्ट चेतावनी देती है कि वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अगले दशक में तीन गुना तेज़ी से नई पवन ऊर्जा क्षमता स्थापित करनी होगी।
भारत में ऊर्जा प्रबंधन - Energy Management in India
क्या आपको पता है एशिया पैसिफिक के जिस क्षेत्र में आप और हम रहते हैं, वहां पवन ऊर्जा की मौजूदा उत्पादन क्षमता इतनी है कि अगर उतना बिजली उत्पादन कोयले से हो तो 510 मिलियन टन का कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन होगा?
जी हाँ, सही पढ़ा आपने। दूसरे शब्दों में कहें तो बिजली उत्पादन के इस विकल्प के प्रयोग से कार्बन डाइऑक्साइड का उतना उत्सर्जन टाला जा सका जितना 110 मिलयन कारें उत्सर्जन करतीं।
अमूमन हम लोग विंड एनर्जी को तरजीह नहीं देते लेकिन यहाँ ये जानना बड़ा तसल्ली देगा कि हमारे एशिया पैसिफिक के क्षेत्र में पिछले साल 56 गीगावाट की नयी क्षमता स्थापित की गयी, जिसके बाद इस क्षेत्र की कुल उत्पादन क्षमता हो गयी 347 गीगावाट। और पिछले साल महामारी के चरम दौर में, जब दुनिया उसे झेल रही थी, चीन पवन ऊर्जा में खेल रहा था। इस 56 गीगावाट की क्षमता में अकेले चीन ने 52 गीगावाट की क्षमता स्थापित कर रिकार्ड बनाया, जो कि उसके साल 2060 तक नेट जीरो होने के लक्ष्य की ओर बढ़ता हुआ मज़बूत क़दम के तौर पर दिखता है।
बात भारत की करें तो लगभग 39 गीगावाट की संचयी पवन ऊर्जा क्षमता के साथ, हमारा देश दुनिया में चौथे स्थान पर है और 57 टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को टाल रहा है।
कुल मिलाकर देखें तो 2020 वैश्विक पवन उद्योग के लिए इतिहास में अब तक का सबसे अच्छा वर्ष था जिसमें 93 गीगावॉट नई क्षमता स्थापित की गई, जो कि साल-दर-साल 53 प्रतिशत की वृद्धि थी। लेकिन वैश्विक पवन ऊर्जा परिषद (GWEC) द्वारा प्रकाशित एक नई रिपोर्ट चेतावनी देती है कि यह वृद्धि 2050 तक दुनिया को नेट ज़ीरो हासिल करने के लिए पर्याप्त नहीं। GWEC की 16-वीं वार्षिक फ्लैगशिप रिपोर्ट, ग्लोबल विंड रिपोर्ट 2021, के अनुसार दुनिया को नेट ज़ीरो मार्ग पर रहने के लिए और जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए अगले दशक में तीन गुना तेज़ी से पवन ऊर्जा स्थापित करने की आवश्यकता है। मतलब, दुनिया को जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए हर एक वर्ष में न्यूनतम 180 गीगावॉट नई पवन ऊर्जा स्थापित करने की आवश्यकता है, जिसका मतलब है कि उद्योग और नीति निर्माताओं को संयंत्रों की स्थापना में तेज़ी लाने के लिए जल्द कार्य करने की आवश्यकता है।
कुल वैश्विक पवन ऊर्जा क्षमता अब 743 GW तक बढ़ गयी है, जिससे दुनिया को सालाना 1.1 बिलियन टन CO2 उत्सर्जन से अधिक से बचने में मदद मिलती है। यह उत्सर्जन दक्षिण अमेरिका के वार्षिक कार्बन उत्सर्जन के बराबर है।
प्रौद्योगिकी नवाचारों और स्केल की अर्थव्यवस्थाओं के माध्यम से, वैश्विक पवन ऊर्जा बाजार पिछले एक दशक में लगभग चौगुना हो गया है और इसने ख़ुद को दुनिया भर में सबसे अधिक लागत-प्रतिस्पर्धी और लचीले बिजली स्रोतों में से एक के रूप में स्थापित किया है। 2020 में, चीन और अमेरिका - दुनिया के दो सबसे बड़े पवन ऊर्जा बाजारों में, - जिन्होंने 2020 में नए प्रतिष्ठानों का 75 प्रतिशत स्थापित किया और जो दुनिया की कुल पवन ऊर्जा क्षमता के आधे से अधिक हिस्से का हिसाब देते हैं, प्रतिष्ठानों की महोर्मि से रिकॉर्ड वृद्धि हुए।
आज भले ही दुनिया में 743 गीगावॉट पवन ऊर्जा क्षमता है, जो विश्व स्तर पर 1.1 बिलियन टन CO2 से बचने में मदद करती है लेकिन फिर भी, इस रिपोर्ट से पता चलता है कि पवन ऊर्जा की तैनाती का वर्तमान दर इस सदी के मध्य तक कार्बन न्यूट्रैलिटी प्राप्त करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी, और अब आवश्यक गति से पवन ऊर्जा को बढ़ाने के लिए नीति निर्माताओं द्वारा तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए।
IRENA और IEA जैसे अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा निकायों द्वारा स्थापित किए गए परिदृश्यों के अनुसार, विश्व को हर साल कम-से-कम 180 GW नई पवन ऊर्जा स्थापित करने की आवश्यकता है ताकि ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2°C अधिक की सीमा के नीचे रखा जा सके और 2050 तक नेट ज़ीरो लक्ष्य को पूरा करने के लिए एक मार्ग को बनाए रखने के लिए प्रति वर्ष 280 GW तक स्थापित करने की आवश्यकता होगी।
GWEC अपनी रिपोर्ट के माध्यम से नीति-निर्माताओं से आह्वान कर रहा है कि वे एक ’जलवायु आपातकालीन’ दृष्टिकोण अपनाएं, जिससे तुरंत बढ़ावे की अनुमति हो। इसमें शामिल हैं:
· लालफीताशाही को खत्म करना और परियोजनाओं के लिए लाइसेंसिंग और अनुमति को शीघ्रता और व्यवस्थित करने के लिए प्रशासनिक संरचनाओं में सुधार करना
· ग्रिड, बंदरगाहों और अन्य बुनियादी ढांचे में निवेश में भारी वृद्धि को स्थापित करने की आवश्यकता है ताकि प्रतिष्ठानों को बढ़ावा मिल सके
· यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे जीवाश्म ईंधन के प्रदूषण की वास्तविक सामाजिक लागतों का लेखा-जोखा रक्खें और रिन्यूएबल ऊर्जा पर आधारित प्रणाली में जल्द-से-जल्द संक्रमण की सुविधा प्रदान करें, ऊर्जा बाजार में सुधार
अपनी प्रतिक्रिया देते हुए GWEC के CEO बेन बैकवेल कहते हैं,
“दुनिया भर के लोग और सरकारें महसूस कर रही हैं कि हमारे पास खतरनाक जलवायु बदलाव से निपटने के लिए एक सीमित समय है। जबकि कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं ने लंबी अवधि के नेट ज़ीरो लक्ष्यों की घोषणा की है, हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि ये महत्वाकांक्षा ज़मीन और पानी में रिन्यूएबल ऊर्जा की स्थापना में तेज़ी से बढ़ते निवेश और इंस्टालेशन के साथ होने के लिए तत्काल और सार्थक कार्रवाई की जाए। पिछले साल चीन और अमेरिका में रिकॉर्ड वृद्धि देखना वास्तव में उत्साहजनक है, लेकिन अब हमें दुनिया के बाकी हिस्सों से हरकत देखनी की ज़रूरत है, ताकि हम वहां हम पहुंच पाएं जहां हमें होने की ज़रूरत है।
"हमारे मौजूदा बाजार पूर्वानुमान बताते हैं कि अगले पांच वर्षों में 469 गीगावॉट नई पवन ऊर्जा क्षमता स्थापित की जाएगी। लेकिन हमें 2025 भर तक हर साल कम से कम 180 गीगावॉट नई क्षमता स्थापित करने की आवश्यकता है ताकि हम यह सुनिश्चित कर सकें कि हम ग्लोबल वार्मिंग को 2 ° C से नीचे सीमित करने के लिए सही रास्ते पर बने रहें - मतलब हम वर्तमान में औसतन प्रत्येक साल 86 गीगावॉट कम के ट्रैक पर हैं। और इन स्थापना स्तरों को मध्य शताब्दी तक कार्बन न्यूट्रैलिटी प्रदान करने के लिए 2030 से परे 280 गीगावॉट तक ऊपर जाने की आवश्यकता होगी। हम हर साल पीछे रह जाते हैं और आगे के वर्षों में (हम जो पहाड़ चढ़ रहे हैं वो) पहाड़ ऊंचा होता जाता है।''
अंत में, फेंग ज़्हाओ, GWEC में मार्केट इंटेलीजेंस और रणनीति के प्रमुख, ने टिप्पणी की, “पवन उद्योग को सरकारों, समुदायों, साथ ही अन्य क्षेत्रों जैसे सौर, भंडारण और तेल और गैस के साथ मिलकर काम करना चाहिए ताकि ऊर्जा संक्रमण को यथासंभव कुशलता से बढ़ाने के लिए समाधान मिल सके। ऑनशोर और ऑफशोर पवन ऊर्जा, न केवल इलेक्ट्रॉनों, बल्कि अणुओं के भी डीकार्बोनाइज़ेशन में निर्णायक रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी - यह लागत-प्रतिस्पर्धी पावर-टू-x (पावर-से-एक्स) समाधान के व्यावसायीकरण को चलाकर ऐसा करेगी। यह भारी उद्योग और लंबी दूरी के परिवहन जैसे समाप्त करने में कठिन क्षेत्रों के नेट ज़ीरों को प्राप्त करने में एक महत्वपूर्ण तत्व होगा और हमारे समाज के पूर्ण डीकार्बोनाइज़ेशन को सक्षम करेगा।”
“इस रिपोर्ट में विश्लेषण किए गए ऊर्जा प्रणाली परिवर्तन के लिए हर प्रमुख संस्थागत परिदृश्य में, पवन बाजार को अगले दशक में तेजी से विस्तार करना चाहिए। पवन उद्योग को स्पष्ट होना चाहिए कि यह वृद्धि अनायास नहीं होगी, और दुनिया भर में तत्काल नीतिगत व्यवधान की आवश्यकता है। कोविड-19 संकट के दौरान, हमने देखा कि कैसे सरकारें वैश्विक संकट को दूर करने के लिए त्वरित प्रतिक्रिया दे सकती हैं - जलवायु संकट पर भी यही ज़ोर लागू होना चाहिए।"