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राकेश शर्मा : भारत का प्रथम अंतरिक्ष यात्री

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hastakshep
02 Apr 2021
द्वितीय विश्वयुद्ध : मानवजाति के इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी

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Rakesh Sharma: India's first astronaut

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इतिहास में आज का दिन | Today’s History | Today’s day in history | आज का इतिहास 2 अप्रैल

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नई दिल्ली, 02 अप्रैल : कैलेंडर की कुछ तारीखें इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में हमेशा के लिए दर्ज हो जाती हैं। 02 अप्रैल, 1984 ऐसी ही एक तारीख है, जब कोई भारतीय पहली बार अंतरिक्ष में जाने में सफल रहा। भारत के खाते में यह अनुपम उपलब्धि दर्ज कराने का श्रेय जाता है विंग कमांडर राकेश शर्मा (Wing Commander Rakesh Sharma) को।

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अंतरिक्ष में कदम रखने का गौरव हासिल करने के सपने कई भारतीयों ने संजोए हुए थे। लेकिन, अंत में नियति ने यह अवसर राकेश शर्मा को दिया।

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1980 के दशक की शुरुआत में भारत सरकार ने सोवियत रूस के साथ मिलकर अंतरिक्ष अभियान की योजना बनायी, तो उसमें तय हुआ कि एक भारतीय को भी इस अभियान के लिए चुना जाएगा। एक लंबी, जटिल और गहन प्रक्रिया के द्वारा इसके लिए योग्य उम्मीदवारों को चिह्नित किया गया। अंत में दो उम्मीदवार चयनित किये गए। एक राकेश शर्मा और दूसरे रवीश मल्होत्रा।

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Story of India first astronaut retired wing commander Rakesh Sharma,

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उस दौर में भारतीयों के मन में यही बड़ी उत्सुकता हुआ करती थी कि शर्मा और मल्होत्रा में से किसके सिर पर पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री होने का सेहरा सजेगा। अंत में बाजी राकेश शर्मा के हाथ लगी। इस प्रकार 20 सितंबर, 1982 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन  (Indian Space Research Organization - इसरो) के माध्यम से इंसरकॉस्मोस अभियान के लिए राकेश शर्मा के नाम पर अंतिम मुहर लगी। रवीश मल्होत्रा किसी भी विपरीत परिस्थिति में राकेश शर्मा का स्थान लेने के लिए तैयार थे, लेकिन इसकी आवश्यकता नहीं पड़ी।

राकेश शर्मा ने यह मुकाम कड़ी परीक्षाओं से गुजरने के बाद हासिल किया था। इसमें एक कसौटी तो ऐसी भी थी कि उन्हें 72 घंटे यानी पूरे तीन दिन एक बंद कमरे में एकदम अकेले रहना पड़ा। उनकी परीक्षाएं यहीं समाप्त नहीं हुईं। मिशन के लिए चयन के बाद जब वह अभियान हेतु परीक्षण के लिए रूस के यूरी गागरिन अंतरिक्ष केंद्र (Yuri Gagarin Space Center of Russia) में गहन अभ्यास में जुटे थे, तो देश में उनकी छह वर्षीय बेटी मानसी का निधन हो गया। इस घटना से भी वह विचलित नहीं हुए, और उन्होंने स्वयं को अपने लक्ष्य पर केंद्रित रखा। पूरे देश की आशाएं उनसे जुड़ी हुई थीं, और उन्होंने उन उम्मीदों को टूटने नहीं होने दिया।

02 अप्रैल, 1984 को वह तारीख आ ही गई, जब शर्मा को अपने तीन सोवियत साथियों के साथ अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरनी थी। तत्कालीन सोवियत संघ के बैकानूर से उनके सोयुज टी-11 अंतरिक्षयान के उड़ान भरते ही देश के लोगों की धड़कनें बढ़ गईं। आखिरकार अंतरिक्ष में दाखिल हुए। उन्होंने कुल सात दिन, 21 घंटे और 40 मिनट अंतरिक्ष में बिताए और सफलतापूर्वक पृथ्वी पर लौटे।

अंतरिक्ष में उनकी प्रयोगधर्मिता खासी परवान चढ़ी, और अपने अंतरिक्ष प्रवास के दौरान उन्होंने कुल 33 प्रयोग किए। इनमें भारहीनता से उत्पन्न होने वाले प्रभाव से निपटने के लिए किया गया प्रयोग भी शामिल था। शर्मा और उनके तीनों साथियों ने स्पेस स्टेशन से मॉस्को और नई दिल्ली के लिए एक साझा संवाददाता सम्मेलन को भी संबोधित किया। अंतरिक्ष में भी राकेश शर्मा का अंदाज विशुद्ध भारतीय था। कहा जाता है कि स्पेस स्टेशन में भी शर्मा रोज कम से कम दस मिनट योग किया करते थे। उन्होंने अंतरिक्ष से उत्तर भारत के इलाकों को अपने कैमरे में भी कैद किया।

राकेश शर्मा की जीवनी | Biography of Rakesh Sharma in Hindi,

राकेश शर्मा भारत के प्रथम और विश्व के 138वें अंतरिक्ष यात्री थे। अपनी इस उपलब्धि से शर्मा उस दौर के एक बड़े नायक बन गए। युवाओं में उनकी लोकप्रियता कायम हो गई और उन्होंने एक पूरी पीढ़ी को प्रेरित किया। उनकी उपलब्धि से प्रेरित होकर ही भारत सरकार ने उन्हें 'अशोक चक्र' से सम्मानित किया। सोवियत सरकार ने भी उन्हें 'हीरो ऑफ सोवियत यूनियन' सम्मान से नवाजा। समय के साथ भारतीय वायुसेना भी पदानुक्रम की सीढ़ियां चढ़ते गए और विंग कमांडर के पद तक पहुँचे। विंग कमांडर के पद पर सेवानिवृत्त होने पर राकेश शर्मा ने हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में परीक्षण विमान चालक के रूप में भी काम किया।

पंजाब के पटियाला में 13 जनवरी 1949 को एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे शर्मा बचपन से ही आकाश की ओर टकटकी लगाए रहते थे। आसमान में उड़़ते विमान पर उनकी नजरें तब तक टिकी रहती थीं, जब तक कि वह आंखों से ओझल न हो जाए। अनंत आकाश के प्रति यही आकर्षण उन्हें भारतीय वायुसेना में ले आया। वर्ष 1966 में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) का हिस्सा बने शर्मा का 1970 में भारतीय वायुसेना से जुड़ाव हो गया। इस प्रकार वह 21 साल की उम्र में भारतीय वायु सेना के पायलट बन गए। वर्ष 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में देश उनकी प्रतिभा और कौशल से परिचित हुआ। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

उनकी उपलब्धियों ने तमाम भारतीय युवाओं को अंतरिक्ष के क्षेत्र में दिलचस्पी जगाने का काम किया।

कालांतर में कल्पना चावला से लेकर सुनीता विलियम्स जैसे भारतीय मूल के अंतरिक्ष यात्रियों के नाम उभरे, जो अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अभियानों का हिस्सा बने। भविष्य में भी ऐसे तमाम नाम उभरेंगे, लेकिन अंतरिक्ष को लेकर भारतीयों के जेहन में हमेशा जो पहला नाम उभरेगा, वह राकेश शर्मा का ही होगा।

(इंडिया साइंस वायर)

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