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अमित शाह की ज़ुबान से निकले शब्द गाली क्यों बन जाते हैं
अमित शाह की भाषा का असली अर्थ !
अब सचमुच अमित शाह की ज़ुबान से निकला ‘नागरिक’ शब्द भारत के लोगों के लिये शत्रु को संबोधित हिक़ारत भरी गाली बन चुका है। यह बात सचमुच बहुत दिलचस्प है।
फ्रायड कहते हैं कि आदमी के सपनों की एक शाब्दिक संरचना होती है, एक चित्रात्मक पहेली। इसके बीज बचपन में ही पड़ जाते हैं जो वयस्क उम्र में भी उसके सपनों में कई संकेतों, प्रतीकों के साथ उभरते रहते हैं।
कहते हैं कि प्राचीन मिस्र की चित्रलिपि और आज भी चीन में प्रयुक्त होने वाले संकेताक्षरों में ये प्रारंभिक शब्दचित्र होते हैं।
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आरएसएस के आदमी में भरी हुई नफ़रत भी इसी प्रकार नागरिक, विधर्मी और मुसलमान, लव जिहाद की तरह के शब्दों और पदों से एक पूरा संकेत चित्र बन कर व्यक्त होती है। इसीलिये ये शब्द नहीं, गाली होते हैं।
फ्रायड कहते हैं कि इन सपनों का अर्थ तब और ज़्यादा खुलता है जब मनोरोगी इनका बखान किया करता है।
अमित शाह जब ‘होंठ भींचते हुए एक-एक घुसपैठिये को निकाल बाहर करने’ की बात करते हैं, तभी उनके द्वारा नागरिक शब्द का गाली की तरह का प्रयोग कहीं ज़्यादा खुल कर सामने आता है।
अरुण माहेश्वरी