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वर्ल्ड इनिक्वालिटी रिपोर्ट : घटी नहीं बल्कि बढ़ी है आजादी के बाद आर्थिक असमानता

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hastakshep
13 Dec 2021
आत्मनिर्भर भारत में एलपीजी भी हुई आत्मनिर्भर, अच्छे दिनों में रसोई गैस सिलेंडर के दाम बढ़े

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World inequality report in Hindi : देश और दुनिया का राजकाज लोगों की भलाई से भटक चुका है!

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सबसे अमीर 10 फ़ीसदी लोगों की भारत की कुल आमदनी में हिस्सेदारी (10 percent of the richest people share in India's total income) बढ़कर 57% की हो गई है, जबकि आजादी के पहले 10 फ़ीसदी सबसे अधिक अमीर लोगों की हिस्सेदारी कुल आमदनी में तकरीबन 50% की थी। यानी आजादी के बाद आर्थिक असमानता (economic inequality after independence) घटी नहीं बल्कि बढ़ी है...

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दुनिया की हर सरकार आर्थिक बढ़ोतरी के आंकड़े तो प्रकाशित करती है। लेकिन कोई भी सरकार इसका आंकड़ा प्रकाशित नहीं करती कि आर्थिक बढ़ोतरी का बंटवारा पूरी आबादी में किस तरह से हो रहा है? आर्थिक नीतियां पूरी आबादी पर किस तरह से असर डाल रही हैं? कौन आर्थिक नीतियों का फायदा ले पा रहा है, कौन आर्थिक नीतियों से पीछे रह जा रहा है? भारत में ही देखिए। आर्थिक बढ़ोतरी से जुड़े जीडीपी का आंकड़ा (GDP figures linked to economic growth) तो हर तिमाही प्रकाशित हो जाता है, लेकिन आर्थिक असमानता का आंकड़ा (economic inequality figure) प्रकाशित नहीं होता।

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दुनिया में मौजूद आर्थिक असमानता के बीहड़ खाई को दिखाने के लिए वर्ल्ड इनिक्वालिटी रिपोर्ट 2022 (World Inequality Report 2022) प्रकाशित हुई है। यह रिपोर्ट दुनिया भर के 100 रिसर्चरों के अथक मेहनत का परिणाम है। इस रिपोर्ट को रिसर्चरों ने दुनिया भर की टैक्स अथॉरिटी के पास मौजूद दस्तावेज, विश्वविद्यालयों के रिसर्च, सांख्यिकी के काम में लगे हुए संस्थाओं की रिपोर्ट जैसे तमाम तरह के जरूरी जानकारियों का विश्लेषण और तार्किक अध्ययन कर प्रस्तुत किया है।

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इस रिपोर्ट के मुताबिक केवल यूरोप को छोड़कर दुनिया के हर देश में आमदनी के मामले में सबसे निचले पायदान पर मौजूद 50% आबादी देश की कुल आमदनी में हिस्सेदारी 15% से कम है। लैटिन अमेरिका, सहारा और अफ्रीका के देशों में तो सबसे गरीब 50% आबादी की हिस्सेदारी कुल आमदनी में 10% से भी कम है। जहां तक सबसे अमीर 10% लोगों की बात है, तो दुनिया के हर देश में इनकी हिस्सेदारी अपने देश की कुल आमदनी मे 40% से अधिक है। कहीं-कहीं इनकी हिस्सेदारी कुल आमदनी में 60% हिस्सेदारी को पार कर जाती है।

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आर्थिक तौर पर बहुत गहरी है दुनिया में गैर-बराबरी

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यह आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में आर्थिक तौर पर गैर-बराबरी (Economic inequality in the world) बहुत गहरी है। यह गहरी गैर बराबरी राष्ट्रवाद, नस्लवाद, सांप्रदायिकता, आतंकवाद जैसी कई बीमारियों का कारण है। जब तक इस पर मुकम्मल बहस नहीं होगी दुनिया न्याय के रास्ते की तरफ नहीं बढ़ पाएगी। उसकी सारी संस्थाएं धरी की धरी रह जाएगी।

यह रिपोर्ट बताती है कि अगर संपत्ति के लिहाज से देखें तो दुनिया की स्थिति और भयानक दिखती है। संपत्ति के लिहाज से दुनिया के सबसे निचले पायदान पर मौजूद 50% आबादी की दुनिया के कुल संपत्ति में हिस्सेदारी महज 2 फ़ीसदी हैं। जबकि ऊपरी पायदान पर मौजूद 10% लोगों की दुनिया की कुल संपत्ति में हिस्सेदारी 76% की है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र संघ, किसी भी तरह की शांति वार्ताएं, जलवायु परिवर्तन से जुड़े सारे सम्मेलन सब के सब निरर्थक दिखते हैं।

Income inquality in world

1995 से लेकर के साल 2021 तक दुनिया की कुल संपत्ति में जो इजाफा हुआ है उसकी 38 फ़ीसदी हिस्सेदारी दुनिया के सबसे अमीर 1 फ़ीसदी लोगों को मिली है। जबकि दुनिया के 50 फ़ीसदी सबसे गरीब लोगों की साल 1995 से लेकर साल 2021 तक हुए कुल संपत्ति के इजाफे में महज 2% की है। यानी पिछले 25 साल की दुनिया की नीतियां अमीरों को ही अमीर बनाने में लगी हुई हैं। गरीबों की उन्हें कोई परवाह नहीं।

साल 1820 में दुनिया के 10 फ़ीसदी सबसे अधिक अमीर लोगों की औसत आमदनी उस वक्त के सबसे गरीब 50 फ़ीसदी लोगों की औसत आमदनी के 18 गुना थी। लेकिन 200 साल बाद यह आर्थिक असमानता की खाई पहले से भी ज्यादा बढ़ गई है। साल 2020 में दुनिया के 10 फ़ीसदी सबसे अधिक अमीर लोगों की औसत आमदनी दुनिया के 50 सबसे अधिक गरीब लोगों के औसत आमदनी से 38 गुना अधिक है।

नहीं हुई समय के साथ प्रगति

इस आंकड़े का मतलब यह है कि समय और प्रगति के बीच में सीधा रिश्ता नहीं होता है। जो लोग कहते हैं कि समय के साथ प्रगति भी आती है, यह गलत बात है। दुनिया में मौजूद गैर-बराबरी के ये आंकड़े तो यह बता रहे हैं कि समय के साथ प्रगति नहीं हुई है। बल्कि गैर-बराबरी के मामले में हम आज से 200 साल पहले की दुनिया से भी पीछे खड़े है। अफसोस की बात यह है कि भारत और दुनिया का पॉलीटिकल क्लास आर्थिक असमानता को राजनीति का मुद्दा नहीं बनाता।

गांव देहात में चले जाइए तो दिखेगा कि अब भी कईयों के पास ढंग की मोटरसाइकिल नहीं है। सफर या तो पैदल तय करना है या तो साइकिल के सहारे तय करना है लेकिन जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा इन्हीं लोगों पर पड़ने वाला है। बेमौसम बारिश, आंधी, तूफान, बाढ़ यह सब जलवायु परिवर्तन के निष्कर्ष हैं। इनमें सबसे बड़ा योगदान अमीरों का है लेकिन मार गरीबों को सहनी है।

कार्बन एमिशन के आंकड़े बता रहे हैं कि दुनिया के 10% सबसे अधिक अमीर लोग 48% कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं और दुनिया के 50% सबसे गरीब लोग महज 12% कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं।

Wealth enquality in world

प्राइवेटाइजेशन तो पूरी दुनिया ने खुले मन से गले लगाया है, भले ही प्राइवेटाइजेशन से दुनिया को सबसे अधिक क्यों ना लूटा गया हो. साल 1995 से लेकर साल 2020 तक दुनिया की सरकारी संपत्ति दुनिया के कुल आय से अधिक नहीं हुई। साल 2020 में दुनिया की सरकारी संपत्ति दुनिया के कुल आय का 75% है। लेकिन साल 1995 में दुनिया की निजी संपत्ति दुनिया के कुल आय तकरीबन 375% हुआ करती थी। यह बढ़कर साल 2020 में दुनिया की कुल आय का 525% हो गई है। यानी पिछले 15 सालों में निजी संपत्ति खूब बढ़ी है(Private property has grown tremendously in the last 15 years)। सरकारी संपत्ति पहले से कम हुई है। निजी लोगों के पास संकेंद्रण बढ़ा है। सरकारों ने अपना संकेंद्रण पहले से भी कम किया है।

Wealth enquality in India

जहां तक भारत की बात है तो आमदनी के हिसाब से भारत के 10% सबसे अमीर लोगों की टोली भारत की कुल आमदनी का 57% अपने पास रखती है। अमीरों की 1% टोली भारत की कुल आमदनी का 22% अपने पास रखते हैं। सबसे निचले पायदान पर मौजूद 50% गरीबों की आबादी भारत की कुल आमदनी में महज 13% का हिस्सा रखती है। और सबसे बड़ी बात यह है कि महज 10% अमीरों की टोली मिलकर भारत की पूरी नियति तय करती है। प्रत्यक्ष तौर पर बहुत ही प्रभावी तरीके से यही तय करती है कि भारत के संसद में कौन बैठेगा और कौन नहीं बैठेगा। क्या नीति बनेगी और क्या नहीं बनेगी? एमएसपी की गारंटी दी जाएगी या नहीं दी जाएगी? यह सब कुछ इसी 10% अमीर लोगों की रहमों करम पर टिका हुआ है।

Female income in India

भारत में औरत और मर्द की कमाई के बीच दुनिया के अधिकतर इलाकों से ज्यादा फर्क है। एशिया के देशों में औरत की कमाई की औसतन हिस्सेदारी कुल कमाई की 21% है। जबकि भारत में यह महज 18% है। यानी औरतों से बना लेबर फोर्स भारत की कुल कमाई में महज 18% का हिस्सा रखता है।

Income inquality in India prior to Independence and after Independence

साल 1858 से लेकर साल 1947 के बीच भारत के 10% सबसे अमीर लोगों की भारत की कुल कमाई में हिस्सेदारी 50% की थी। 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली। समय बदला। भारत के लोगों के नीति निर्धारक बदले। 1950 से लेकर 1980 के बीच भारत के 10% अमीर लोगों की भारत की कुल आमदनी में हिस्सेदारी 35 से 40% की हो गई।  वजह यह थी कि भारत की सरकार ने आजादी के बाद समाजवादी नीति अपनाई। 1980 के बाद भारत की अर्थव्यवस्था समाजवादी नीति को छोड़कर उदारवादी नीति की तरफ चल पड़ी। मीडिया, किताब और विद्वानों के जरिए यह बताया जाने लगा कि अगर भारत की अर्थव्यवस्था का सुधार (India's economy reforms) करना है तो रास्ता केवल प्राइवेटाइजेशन है। इसका परिणाम यह हुआ है कि भारत के सबसे अमीर 1% लोगों ने जमकर कमाई की है। सबसे अमीर 1% लोगों की भारत की कुल आमदनी में हिस्सेदारी 21% की हो गई है। इस 1 फ़ीसदी की हिस्सेदारी भारत की कुल संपत्ति में 33 फ़ीसदी की हो चुकी है। 10 फ़ीसदी सबसे अमीर लोगों की भारत की कुल आमदनी में हिस्सेदारी 57% की हो गई है। जो आजादी से पहले के 50% की हिस्सेदारी से अधिक है। इन 10% सबसे अधिक अमीर लोगों की हिस्सेदारी कुल संपत्ति में 63% की हो गई है। जबकि सबसे गरीब 50% की भारत की कुल संपत्ति में महज हिस्सेदारी 5.9% की है। अब आप बताइए कि 15 अगस्त 1947 के बाद भारत की आम जनता क्या आर्थिक तौर पर वाकई आजाद हो पाई है?

अजय कुमार

(न्यूज क्लिक में प्रकाशित लेख का संपादित रूप साभार)

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