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वैश्विक रूल ऑफ़ लॉ इंडेक्स में फिसड्डी भारत

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Guest writer
10 Jul 2020
कन्हैया कुमार समेत 10 जेएनयू के छात्रों पर राजद्रोह का मुकदमा चलाने की अनुमति, दिल्ली सरकार का सभी को शर्मसार करने वाला निर्णय

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India in global rule of law index

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वाशिंगटन डीसी स्थित वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट (World Justice Project, an organization devoted to promoting the rule of law throughout the world.) हरेक वर्ष देशों की क़ानून व्यवस्था से आधारित रूल ऑफ़ लॉ इंडेक्स (Rule of law index) प्रकाशित करता है. इस वर्ष के इंडेक्स में कुल 128 देशों की सूचि में विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत का स्थान 69वां है. पिछले वर्ष भी यही स्थान था. आज तक भारत का स्थान 50वें या उससे नीचे नहीं रहा है.

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इस सन्दर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता और भाजपा के प्रवक्ता आश्विनी उपाध्याय ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका प्रस्तुत की थी. इसमें कहा गया था कि भारत सरकार को निर्देश दिया जाए कि इस इंडेक्स के शुरू के 20 देशों के क़ानून व्यवस्था का विस्तृत अध्ययन कर यह पता किया जाए कि उन देशों की व्यवस्था हमसे बेहतर क्यों है और फिर कोशिश की जाए कि हमारा देश इस इंडेक्स में ऊपर के क्रम में शामिल हो.

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हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया पर जून के महीने में केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि इस याचिका को एक रीप्रिसेंटेशन की तरह लें और एक कमेटी का गठन कर 6 महीने के भीतर इस इंडेक्स में भारत को अच्छे स्थान पर पहुंचाने का प्रयास करें.

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अश्विनी उपाध्याय के अनुसार इस इंडेक्स में आज तक हम 50वें स्थान पर भी नहीं पहुंचे, पर किसी भी सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया. खराब क़ानून व्यवस्था जीवन, आजादी, आर्थिक समानता, भाईचारा, आत्मसम्मान और राष्ट्रीय एकता में बाधक है.

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वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट के अनुसार क़ानून व्यवस्था के चार मूलभूत और सार्वभौमिक सिद्धांत (Four fundamental and universal principles of law system according to the World Justice Project) हैं –

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  1. सरकार और सरकारी अधिकारी समाज की हरेक समस्या के लिए कानूनन उत्तरदायी होंगे;
  2. क़ानून स्पष्ट, निष्पक्ष, मौलिक अधिकारों के रक्षक, नागरिकों और संपत्ति के रक्षक हों और इनका व्यापक प्रचार किया जाये;
  3. क़ानून व्यवस्था सबकी पहुँच में, प्रभावी, सुगम और निष्पक्ष हो; और,
  4. न्याय देने वाले योग्य, प्रबुद्ध, मानवतावादी, नैतिक, स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रतिनिधि हों, जिनकी संख्या पर्याप्त हो, संसाधन पर्याप्त हों और इनकी संरचना सामाजिक थांचे के अनुरूप हो.

रूल ऑफ़ लॉ इंडेक्स के लिए विभिन्न देशों के क़ानून व्यवस्था से सम्बंधित कुल 8 पहलू का अध्ययन किया जाता है – सरकारों पर दबाव, भ्रष्टाचार, स्वतंत्र सरकार, मौलिक अधिकार, क़ानून व्यवस्था, न्यायिक व्यवस्था, नागरिक न्याय और आपराधिक न्याय.

पूरे इंडेक्स के अनुसार भारत कुल 128 देशों में 69वें स्थान पर है, पिछले वर्ष भी इसी स्थान पर था. पर भ्रष्टाचार के सन्दर्भ में हम 85वें, मौलिक अधिकार के सन्दर्भ में 84वें, क़ानून व्यवस्था के सन्दर्भ में 114वें, न्यायिक व्यवस्था के सन्दर्भ में 74वें, नागरिक न्याय के सन्दर्भ में 98वें और आपराधिक न्याय के सन्दर्भ में 78वें स्थान पर हैं.

इस इंडेक्स में सबसे ऊपर के दस देश क्रम से हैं – डेनमार्क, नोर्वे, फ़िनलैंड, स्वीडन, नीदरलैंड्स, जर्मनी, न्यूज़ीलैण्ड, ऑस्ट्रिया, कनाडा और एस्तोनिया.

सबसे नीचे के स्थान पर काबिज 10 देश हैं – वेनेज़ुएला, कम्बोडिया, कांगो, ईजिप्ट, कैमरून, मॉरिटानिया, अफ़ग़ानिस्तान, बोलीविया, पाकिस्तान और जिम्बाम्बे. इस इंडेक्स में अमेरिका 21वें, इंग्लैंड 13वें, ब्राज़ील 67वें, ऑस्ट्रेलिया 11वें, जापान 15वें और चीन 88वें स्थान पर है. भारत के पड़ोसी देशों में नेपाल और श्री लंका क्रमशः 61वें और 66वें स्थान पर हैं और भारत से आगे हैं. शेष पड़ोसी देश भारत से बहुत पीछे हैं – बांग्लादेश 115वें, म्यांमार 112वें, पाकिस्तान 120वें और अफ़ग़ानिस्तान 122वें स्थान पर है.

रूल ऑफ़ लॉ इंडेक्स 2020 (Rule of law index 2020) के अनुसार जितने देश अपनी पहले के स्थान से आगे बढ़ें हैं, उससे अधिक संख्या में देशों का स्थान पहले से और नीचे पहुँच गया है. ऐसा लगातार तीन वर्षों से हो रहा है, इसका सीधा सा मतलब है कि देशों की क़ानून व्यवस्था पहले से खराब होती जा रही है. इंडेक्स में सबसे तरक्की इथियोपिया और मलेशिया ने दर्ज की है, जबकि सबसे बड़ी गिरावट कैमरून और ईरान में देखी गई है.

सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय स्वयं सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता और सत्ताधारी बीजेपी के प्रवक्ता भी हैं. जाहिर है, वे देश की क़ानून व्यवस्था के साथ साथ वर्त्तमान सरकार के इस सन्दर्भ में रुख से भलीभांति परिचित होंगें. इस नाते उन्हें देश की क़ानून व्यवस्था पर क़ानून व्यवस्था के चार मूलभूत और सार्वभौमिक सिद्धांत के परिप्रेक्ष्य में एक व्हाइट पेपर जारी करना चाहिए, जिससे देश की जनता भी क़ानून व्यवस्था के बारे में जानकार बन सके.

वैसे आश्विनी जी ने अपने कुछ फेसबुक पोस्ट पर जाने-अनजाने अपनी सरकार को भी कटघरे में खड़ा किया है. एक पोस्ट में लिखते हैं,

“राजनीति का अपराधीकरण हुआ या अपराध का राजनीतिकरण? जितनी चर्चा आज विकास दुबे की हो रही है उससे ज्यादा 2016 में रामबृक्ष यादव की हुइ थी लेकिन व्यवस्था नहीं बदली, इसलिए समस्या बरकरार है. चुनाव आयोग के 50 सुझाव, विधि आयोग के 250 सुझाव और वेंकटचेलैया आयोग के 225 सुझाव वर्षों से लंबित हैं”.

राजनीति का अपराधीकरण पर विश्लेषण

एक दूसरी पोस्ट में वे साम्यवाद और समाजवाद को भी वंशवाद के समकक्ष रखते हुए सत्ता प्राप्ति का मुख्य उद्देश्य बताते हैं,

जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, सम्प्रदायवाद, साम्यवाद, मार्क्सवाद, अगडावाद, पिछड़ावाद, सवर्णवाद, दलितवाद, समाजवाद, अम्बेडकरवाद, अल्पसंख्यकवाद, माओवाद, नक्सलवाद, वंशवाद, परिवारवाद का मूल उद्देश्य सत्ता है और सत्ता प्राप्ति का मुख्य उद्देश्य कालाधन, बेनामी संपत्ति और आय से अधिक संपत्ति इकट्ठा करना है”.

हमारे देश की क़ानून व्यवस्था की स्थिति जानने के लिए किसी इंडेक्स की जरूरत नहीं है – यहाँ गुंडे, अपराधी, हत्यारे, बलात्कारी और गैंगस्टर देश और समाज के लिए खतरा नहीं होते बल्कि उन्हें पूरी व्यवस्था संरक्षण देती है. यहाँ अपराधी, गुंडा, राष्ट्रीय सुरक्षा का खतरा, अर्बन नक्सल, टुकड़े-टुकड़े गैंग का सदस्य उन्हें माना जाता है जो मानवाधिकार की आवाज उठाते हैं. क़ानून व्यवस्था के जो चार मूलभूत सिद्धांत हैं, क्या किसी एक पर भी हम खरे उतरते हैं?

वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट के संस्थापक विलियम एच नयूकोम (William H. Neukom, founder of World Justice Project) के अनुसार यह इंडेक्स केवल न्याय व्यवस्था से जुड़े लोगों के लिए नहीं है, बल्कि यह सरकार, नीति निर्धारकों, विद्यार्थियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए भी उतनी ही उपयोगी है. इस इंडेक्स से दुनिया में लोकतंत्र की दिशा और दशा का पता तो चलता ही है.

महेंद्र पाण्डेय

लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

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