महासागरों की सुध लेने का समय | विश्व महासागर दिवस पर विशेष

hastakshep
08 Jun 2021
महासागरों की सुध लेने का समय | विश्व महासागर दिवस पर विशेष

World Oceans Day 2021: क्या है इसका महत्व और क्यों मनाते हैं विश्व महासागर दिवस, जानिए

World ocean day in Hindi (08 June 2021)

विश्व महासागर दिवस कब मनाया जाता

नई दिल्ली, 08 जून (इंडिया साइंस वायर): अंतरिक्ष से देखने पर पृथ्वी नीले रंग की दिखती है, इसलिए पृथ्वी को 'ब्लू प्लैनेट' यानी नीला ग्रह भी कहा जाता है। इसके नीला दिखने का कारण हैं- धरती के 71% हिस्से पर फैले सागर और महासागर। हल्के नीले रंग की अथाह जल-राशि वाले ये महासागर सूर्य के प्रकाश में घुले अन्य रंगों को अवशोषित कर केवल नीले रंग को परावर्तित करते हैं। ज्ञात ब्रह्मांड में जीवन के अस्तित्व वाले एकमात्र  ग्रह पृथ्वी पर जीव की उत्पत्ति भी समुद्र से मानी जाती है। धरती पर उपलब्ध कुल जल का 97% हिस्सा इन्हीं सागरों - महासागरों में सिमटा है। मानव-जीवन और समुद्र के बीच इसी अविभाज्य सम्बन्ध को रेखांकित करने के लिए प्रत्येक वर्ष 08 जून को विश्व महासागर दिवस का आयोजन किया जाता है।

विश्व महासागर दिवस 2021 की थीम | Theme of World Oceans Day 2021

इस वैश्विक आयोजन का उद्देश्य महासागरीय तंत्र के प्रति आम जन में संवेदना और जागरूकता का प्रसार करना है। इस वर्ष विश्व महासागर दिवस की थीम 'द ओशनः लाइफ ऐंड लाइवलिहुड' यानी-महासागरः जीवन एवं आजीविका है। यह थीम संयुक्त राष्ट्र के उस संकल्प के अनुरूप है, जिसके अंतर्गत वर्ष 2021 से 2030 तक 'यूएन डीकेड ऑफ ओशन साइंस फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट’ यानी ‘सतत् विकास के लिए महासागरीय विज्ञान’ (United Nations Decade of Ocean Science for Sustainable Development (2021-​2030)) के संयुक्त राष्ट्र दशक के तौर पर मनाने का निर्णय लिया गया है। इसका उद्देश्य ऐसे वैज्ञानिक शोध और नई तकनीकों का विकास करना है, जो महासागरीय विज्ञान को समाज की आवश्यकताओं के साथ जोड़ सकें।

विश्व महासागर दिवस का इतिहास

आज विश्व जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है जिनके कारण प्रतिकूल मौसमी परिघटनाएं घटित हो रही हैं। इन सभी चुनौतियों के तार महासागरों से जुड़े हैं। समुद्री जहाजों से खतरनाक रसायनों की आवाजाही के रिसाव, उनके परिवहन से होने वालेप्रदूषण और मानवीय गतिविधियों से समुद्र में बढ़ते कचरे की समस्या से निपटने के उपाय तलाशने के उद्देश्य से वर्ष 1973 में अंतरराष्ट्रीय सामुद्रिक संगठन यानी इंटरनेशनल मरीन ऑर्गेनाइजेशन की स्थापना हुई। पर्यावरण को लेकर उत्तरोत्तर बढ़ती वैश्विक चिंता के बीच वर्ष 1992 में रियो डी जेनेरियो में हुए ‘पृथ्वी शिखर सम्मेलन’ में हर साल ‘विश्व महासागर दिवस’ मनाने का प्रस्ताव किया गया। वर्ष 2008 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसे आधिकारिक तौर पर मान्यता दी गई, जिसके बाद सेयह दिवस हर साल 8 जून को मनाया जाने लगा।

विश्व महासागर दिवस का उद्देश्य

‘विश्व महासागर दिवस’ महासागरों को सम्मान देने, उनका महत्व जानने तथा उनके संरक्षण के लिए आवश्यक कदम उठाने का एक प्रभावी वैश्विक मंच है। यह दिवस विश्व भर की सरकारों को यह अवसर भीदेता है कि वे अपनी जनता को आर्थिक गतिविधियों एवं मानवीय क्रियाकलापों के समुद्र पर पड़ रहे दुष्प्रभावों को समझा सकें। वास्तव में जैव विविधता, खाद्य सुरक्षा, पारिस्थितिकी संतुलन, जलवायु परिवर्तन के स्तर पर बढ़ते जोखिमों, सामुद्रिक संसाधनों के अतिरेकपूर्ण उपयोग जैसे मुद्दों पर प्रकाश डालना और समुद्र से जुड़ी चुनौतियों के बारे में दुनिया में जागरूकता का प्रसार ही इस दिवस को मनाने का प्रमुख कारण है।

पृथ्वी के लगभग दो तिहाई हिस्से में फैले सागरों-महासागरों में अनुमानतः 13 अरब घन किलोमीटर पानी है जो पृथ्वी पर उपलब्ध समस्त जल का लगभग 97 प्रतिशतहै। समुद्र में मौजूद वनस्पति प्लैंकटेन को आहार श्रृंखला की पहली कड़ी माना जाता है, परंतु आजइस महतवपूर्णकड़ी पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। वह इसलिएकि कई स्थानों पर समुद्र का रंग प्रभावित होने के कारण सूर्य की रोशनी गहराई तक नहीं पहुंच पाती। इसके चलते ये वनस्पतियां प्रकाश संश्लेषण करने में समर्थ नहीं हो पातीं। इससे एक बड़ी खाद्य श्रृंखला व्यापक रूप से प्रभावित हो रही है। समुद्र का रंग बदलने का एक बड़ा कारण उसमें बढ़ता प्रदूषण ही माना जा रहा है।

एक अनुमान के अनुसार प्रशांत महासागर में एक स्थान पर कचरे का इतना बड़ा भंडार जमा हो गया है जिसका क्षेत्रफल फ्रांस जैसे देश के बराबर है। यह एक चिंताजनक स्थित है। महासागरों की महत्ता को समझाने का एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि दुनिया की करीब 7 अरब आबादी में से 3 अरब से भी ज्यादा लोग अपनी आजीविका के लिए उन्हीं पर निर्भर हैं। इतना नहीं इतना ही नहीं समस्त पृथ्वी पर संचालित होने वाली 50 से 80% गतिविधियां महासागरों के इर्द-गिर्द ही संपादित होती हैं। इतने पर भी यह अफसोस की बात ही कही जाएगी कि महासागरों का केवल 1% भाग ही वैधानिक रूप से संरक्षित हो सका है। ऐसे में, इनमें हानिकारक कचरे का अम्बार बढ़ता जा रहा है जिससे समुद्री जीवन चक्रपर संकट मंडराने के साथ ही सी-फूड्स के भी विषैले हो जाने का खतरा है। एक अनुमान के अनुसार महासागरों में प्रति वर्ष 8 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा गिराया जा रहा है। ‘ओशन क्लीन अप’ नामक संगठन द्वारा किए गए एक शोध के मुताबिक समुद्र में रहने वाली सात सौ से भी ज्यादा जीवों की प्रजातियों को इस प्लास्टिक कचरे से नुकसान पहुंच रहा है, जिनमें से लगभग सौ प्रजातियां पहले से ही खतरे में हैं।

कोरोना संकट के दौरान हमने ऑक्सीजन की बड़ी किल्लत के बारे में खबरें देखी और सुनीं। ऐसे में, आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाली 70% ऑक्सीजन महासागरों से मिलती है। साथ ही महासागर भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर पृथ्वी के पारिस्थितिकी संतुलन को साधने के अलावा जलवायु परिवर्तन के जोखिमों को भी घटा रहे हैं। हालांकि, इस कारण समुद्र में कार्बन का स्तर बढ़ रहा है, जिससे सामुद्रिक जल की प्रकृति अधिक अम्लीय होती जा रही है।

सागर के गर्भ में संसाधनों का भंडार छुपा हुआ है। इस विशाल सम्पदाकी कोई थाह नहीं। कारण यह कि मानव आज तक समुद्र के केवल 05% हिस्से को ही खंगाल पाया है। सागर के 95% हिस्से की थाह लेना मानव के लिए आज भी एक चुनौती है। इस 05% से ही प्राप्त होने वाले संसाधनोंसेपैदाहुआलोभ मानव को सामुद्रिक पारिस्थितिक तंत्र में हस्तक्षेप के लिए निरंतरउकसा रहा है। हमें यह देखना होगा कि इस प्रक्रिया में समुद्री-जीवों की प्रजातियों को कोई नुकसान न पहुंचे, क्योंकि समुद्र जैव विविधता के भी बड़े केंद्र हैं। वर्ल्ड रजिस्टर ऑफ मरीन स्पीशीज के अनुसार फिलहाल 2,36,878 सामुद्रिक प्रजातियों को मान्यता मिल चुकी है। पृथ्वी पर होने वाली 90% ज्वालामुखी गतिविधियां भी महासागरों में ही उत्पन्न होती हैं। ऐसे में, सामुद्रिक पारिस्थितिक तंत्र में अविवेकपूर्ण हस्तक्षेप भारी विनाश को आमंत्रित करने वाला हो सकता है।

भारत के सन्दर्भ में यह विषय और महत्वपूर्ण हो जाता है। भारत तीन तरफ से समुद्र से घिराहै।इसकी तटीय सीमा 7516.6 किलोमीटर लंबी है। पश्चिम में अरब सागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में हिंद महासागर भारत के पर्यावरण तंत्र के प्रमुख नियामक हैं। यह भी एक रोचक तथ्य है कि दुनिया के सात महासागरों में से केवल एक महासागर का ही नाम किसी देश के ऊपर रखा गया है और वह है भारत को इंगित करता-हिंद महासागर।

तीन तरफ से समुद्र से घिरे होने, लंबी तट रेखा तथा एक बड़ी तटीय आबादी वालेभारत में सामुद्रिक पारिस्थितिक तंत्र को लेकर जागरूकता की आवश्यकता कहीं अधिक है, क्योंकि महासागरों के बढ़ते तापमान की परिणति भीषण चक्रवातों के रूप में देखने को मिलती है। बीते दिनों अरब सागर में ताऊते और बंगाल की खाड़ी में यास जैसे चक्रवात इसके उदाहरण हैं। हालांकि समय से उनकी सूचना मिलने के कारण लोगों की जान बचाने में तो बड़ी सफलता मिली है, लेकिन संसाधनों की हानि नहीं रोकी जा सकी। आज आवश्यकता है धरती के पर्यावरण और आर्थिक जीवन में समुद्र की भूमिका को लेकर एक व्यापक आम-समझ बनाने की। समुद्री संसाधनों का केवल उपभोग ही नहीं बल्कि इसके पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करना भी सबका दायित्व है। इस दायित्व के निर्वहन का संकल्प लेने के लिए ‘विश्व महासागर दिवस’ से उपयुक्त अवसर भला और क्या हो सकता है। (इंडिया साइंस वायर)

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