जेएनयू-इस पागलपन के वक्त पागल बनने का फैसला करने में ही समझदारी है
जेएनयू-इस पागलपन के वक्त पागल बनने का फैसला करने में ही समझदारी है
सरकार, स्मृति ईरानी और राजनाथ सिंह, दूसरे भाजपा मंत्री, आरएसएस के विचारक, पत्याला हाउस में वकीलों के लबादे में आए, लेकिन वे दिखते जैसे भी हों।
दो माह बाद: जेएनयू के मामले पर एक बार नज़र
दो महीने में जेएनयू और देश में काफी कुछ हुआ है और इन सब पर काफी कुछ लिखा और पढ़ा गया। सौम्यब्रत चौधरी बता रहे हैं कि दो महीने पहले 9 फरवरी को जेएनयू में हुए आयोजन में कथित रूप से बोले गए शब्दों के मायने क्या हैं और उनका हमारी राष्ट्र्रीय समझदारी पर क्या असर पड़ता है। वे फिलहाल स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड एस्थेटिक्स, जेएनयू में पढ़ाई कर रहे हैं। उन्हें इसके पहले सीएएएसएसीएस के बारे में भी जानकारी है। कोलकाता में पढ़ाया गया है और वे सीएसडीआईएईएस, दिल्ली और आईआईएआईएएएस, शिमला में फैले रहे हैं। 2013 में आई उनकी किताब थ्री स्टडीज ऑन द रिलेशनशिप ऑफ सॉवरेन्टी, पावर एंड ट्रुथ राष्ट्रों की संपृक्तता और रंगमंच के साथ इसके रिश्ते पर गौर करती है। उनका हालिया काम बासाहेब आंबेडकर और जाति के प्रश्न पर है। मूल लेख: काफिलाल। अनुबंध: रेयाज उल हक।
पोलोनियस: ‘आप क्या पढ़ रहे हैं जहांपनाह?’
हैमनलेट (नई दिल्ली, 2016): ‘भारत, पाकिस्तान, सुरक्षा, संपृक्तता, राष्ट्र, राष्ट्र-विरोधी…शब्द, शब्द, शब्द।’
सिगमंड फ्रायड के मुताबिक, जब हम सपनों में होते हैं और जब हम दिमागी बीमारियों की वजह से होने वाले...


