प्रतिरोध मीरा की कविता का केन्द्रीय स्वर- माधव हाड़ा
प्रतिरोध मीरा की कविता का केन्द्रीय स्वर- माधव हाड़ा
मीरा पर हुई परिचर्चा
नई दिल्ली। वह मीरा, जिसे हम आज जानते हैं, अपनी असल मीरा से बहुत दूर आ गई है। यह दूरी बनाने और बढ़ाने का काम मीरा के अपने समय से ही हो रहा है। असल मीरा अभी भी लोक, इतिहास, आलोचना, धार्मिक आख्यान और आलोचना-विमर्श में है, लेकिन वह इन सब में कट-छंट और बंट गई है।
सुविख्यात आलोचक तथा उदयपुर के सुखाड़िया विश्वविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. माधव हाड़ा ने हिन्दू कालेज में हिन्दी साहित्य सभा द्वारा आयोजित एक परिचर्चा में कहा कि मीरा के व्यक्तिगत राग-द्वेष, उसकी नाराजगी और प्रतिरोध, जो उसकी कविता का केन्द्रीय स्वर है, लोकप्रिय संचार माध्यमों से सामने नहीं आता। यही नहीं धार्मिक चरित्र-आख्यानों और उपनिवेशकालीन इतिहासकारों ने मीरा का संत-भक्त रूप गढ़ने के लिए उसके विद्रोह और संघर्ष को अनदेखा कर दिया। मीरा के जीवन और कविता में जो सघन अवसाद है, वह उसके वंचित-पीड़ित होने के कारण नहीं है। यह मीरा के सुरक्षा और स्थावित्व की तलाश में भटकने और परिजनों के निधन के दुःख से पैदा हुआ है।
वाणी प्रकाशन के सहयोग से आयोजित प्रो. माधव हाड़ा की सद्यः प्रकाशित पुस्तक 'पचरंग चोला पहन सखी री' पर केंद्रित इस परिचर्चा में सुपरिचित कवि और स्त्रीवादी आलोचक अनामिका ने कहा कि मीरा ने सधी हुई स्त्री की तरह संघर्ष किए और अपनी भक्ति का उपयोग किया।
अनामिका ने मीरा की कविताओं में अभिधा की ताकत को कमाल बताते हुए कहा कि अतिरेकों में बांधकर देखने से मीरा के प्रज्ञा पक्ष की अवहेलना हुई है।
आयोजन में हिन्दू कालेज के प्राध्यापक डॉ. रामेश्वर राय ने कहा कि यह किताब हिन्दी आलोचना के राष्ट्रवाद के सम्मुख विवेकपूर्ण सवाल उठाती है।
डॉ. राय ने कहा कि रचना को बनी बनाई छवियों के आधार पर पढ़ने से पाठ में विसंगतियां पैदा होती हैं और प्रो हाड़ा ने ऐसी गढ़ी हुई छवि से मीरा को मुक्त कर आमंत्रण दिया है कि उसकी कविता का असल अर्थ तलाश कर सकें।
इससे पहले इस किताब पर सत्यवती कालेज के डॉ प्रवीण कुमार और हिन्दी विभाग की शोधार्थी अनुपमा शर्मा ने पत्रवाचन किया।
संयोजन कर रहे प्राध्यापक डॉ पल्लव ने कहा कि मेवाड़ जैसी पुरानी और अपने समय की सबसे शक्तिशाली राजसत्ता के बहुत तनावपूर्ण मोड़ पर मीरा का आगमन होता है और उस समय की जटिलताओं -विसंगतियों को जानकर ही मीरा के सही व्यक्तित्व की पहचान संभव है। उन्होंने 'पचरंग चोला पहन सखी री' को भक्तिकाल को नए और देशज नजरिये से देखने वाली कृति की संज्ञा दी।
आयोजन में इस किताब के जनसुलभ संस्करण का लोकार्पण किया गया। आयोजन में वाणी प्रकाशन के निदेशक अरुण महेश्वरी ने ज्ञान मीमांसा के क्षेत्र में अपने प्रकाशन की प्रतिबद्धता दर्शाते हुए कहा कि युवाओं के बीच इस तरह के आयोजन वे लगातार करेंगे। डॉ विजया सती, डॉ हरीन्द्र कुमार, डॉ रचना सिंह, डॉ बिमलेंदु तीर्थंकर, डॉ अरविन्द सम्बल सहित बड़ी संख्या में विद्यार्थी और शोधार्थी इस आयोजन में उपस्थित थे।
इस अवसर पर वाणी प्रकाशन द्वारा लगाईं गई पुस्तक प्रदर्शनी का पाठकों ने लाभ लिया।
फोटो एवं रिपोर्ट - शशांक शुक्ला


