संघी-सवर्णवादी फासिस्ट षड़यंत्र से जूझते हुए व्यापक जन-एकता आज की जरूरत
संघी-सवर्णवादी फासिस्ट षड़यंत्र से जूझते हुए व्यापक जन-एकता आज की जरूरत
संकीर्ण-आत्मकेंद्रित बहुजनवाद और सैफई-मार्का॓ पिछड़ावाद का हश्र हम यूपी की राजनीति में देख चुके हैं...
कम्युनिस्टों की तरह अपनी गलतियों से सबक न लेने की बहुजनवादियों को गलती नहीं करनी चाहिये...
हमारे कुछ 'दलित-बहुजनवादी' युवा सिद्धांतकार इन दिनों JNU में 'क्रेकडाउन' के पूरे प्रसंग को रोहित वेमुला प्रकरण से ध्यान हटाने की संघी-ब्राह्मणवादी साजिश का हिस्सा बता रहे हैं और वहां उसके खिलाफ जारी छात्र-शिक्षक प्रतिरोध से दूरी बनाये ऱखने का आह्वान भी कर रहे हैं।
अगर ऐसी साजिश हुई भी है तो सबाल्टर्न-बहुजन डिस्कोर्स से जुड़े लोगों का क्या रूख होना चाहिये? होना चाहिये यह कि हम सब मिलकर संघी-ब्राह्मणवादी साजिशों का विरोध करें, उसे बेनकाब करें और समाज में व्यापकतम एकता स्थापित करें क्योंकि हमारे पास 85 फीसदी लोगों का कुनबा है, जो विभिन्न ऐतिहासिक-राजनीतिक कारणों से बिखरा पड़ा है।
पर मैं देख रहा हूं कि कुछ अवसरवादी-नितांत व्यक्तिवादी लोग, जो अपने आपको 'उग्र बहुजनवादी' बताते फिरते हैं, इन दिनों दलील दे रहे हैं कि JNU के मामले में हमें नहीं पड़ना चाहिये क्योंकि इससे रोहित वेमुला शहादत से शुरू हुई लड़ाई कमजोर हो जायेगी। मैं समझता हूं, यह बहुत ही गलत और विकृत राजनीतिक समझ है, जो हमारी बौद्धिक-राजनीतिक लड़ाई और रोहित वेमुला की वैचारिक विरासत को कमजोर करेगी।।
अगर JNU का मामला एक साजिश के तहत उभारा गया है तो भी हमें उसमें एक लाइन लेनी होगी। संघ-ब्राह्मणी साजिशों की मुखालफत में खड़ाहोना होगा। हम हैदराबाद में लड़ेंगे, JNU में नहीं , ऐसा सोचना एक अराजनीतिक विचार होगा। हैदराबाद से लेकर JNU, पटना से लेकर पांडिचेरी, बनारस से भुवनेश्वर, अहमदाबाद से कोलकाता, हर क्षेत्र में आज व्यापक एकता की जरूरत है, जिसकी धुरी प्रगतिशील बहुजन विचारधारा(जिसे मैं 'भगत-भीम धारा' कहता हूं) ही हो सकती है।
संकीर्ण-आत्मकेंद्रित बहुजनवाद और सैफई-मार्का॓ पिछड़ावाद का हश्र हम यूपी की राजनीति में देख चुके हैं। कम्युनिस्टों की तरह अपनी गलतियों से सबक न लेने की बहुजनवादियों को गलती नहीं करनी चाहिये। संघी-सवर्ण॓वादी फासिस्ट षड़यंत्र से जूझते हुए व्यापक जन-एकता आज की जरूरत है।


