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इक़बाल की शायरी में धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता के गहरे अंतर्विरोध

इक़बाल की शायरी में धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता के गहरे अंतर्विरोध

इकबाल की कविता का तीसरा दौर 1908 में विलायत से लौटने से लेकर उनकी मृत्युपर्यन्त 1938 तक फैला हुआ है। इस दौर में इकबाल पूरी तरह साम्प्रदायिक रंग में रंगे नजर आते हैं।
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