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वाह रे मोदीजी ! क्या गांवों में अंधविश्वास और पाखंड के बल पर कोरोना से मुक्ति दिलाएंगे जिलाधिकारी ?

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hastakshep
18 May 2021
एक दिन अनाज के लिये भी मचेगी यही अफरातफरी, यह पूंजीवाद का निकृष्टतम रूप है

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हमारे प्रधानमंत्री भी गजब हैं फसल उठाएंगे उगाएंगे अंधविश्वास और पाखंड की और उम्मीद करेंगे स्वास्थ्य सेवाओं के दुरुस्त होने की।

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हमारे प्रधानमंत्री सैनिकों को हथियार देंगे जंग लगे हुए और चुनौती देंगे युद्ध जीतने की।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 9 राज्यों के 46 जिलाधिकारियों से ऑनलाइन संवाद करते हुए उन्हें जिलों में कोरोना से जीतने की चुनौती देना बिना हथियार से युद्ध जीतना जैसा है। यही प्रधानमंत्री शल्य चिकित्सा पर चर्चा करते हुए गणेश जी धड़ पर हाथी का सिर लगाने को शल्य चिकित्सा बता रहे थे। इन्हीं की सांसद प्रज्ञा ठाकुर गोमूत्र लगातार सेवन से कोरोना न होने की बात कर रही हैं। 

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इन्हीं हमारे प्रधानमंत्री के उत्तराखंड के मुख्यमंत्री गंगा में स्नान करने से कोरोना भगा रहे थे। इन्हें की दो भक्तों ने कानपुर के कोविड सेंटर में एक संक्रमित महिला मरीज की ऑक्सीजन और मास्क हटाकर हनुमान चालीसा पढ़कर कोरोना भगाने का प्रयास किया और मरीज को मार दिया। 

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गत साल कोरोना के कहर में भी हमारे प्रधानमंत्री लोगों से तालिया, थालियां बजवाकर टार्च दिखवा कर अंधविश्वास को बढ़ावा देते रहे। साल भर से लोगों को मास्क लगाने और सोशल डिस्टेंडिंग बनाने का उपदेश देते रहे पर खुद ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि कोरोना कहर से निपटेंगे कैसे ? 

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हमारे प्रधानमंत्री 7 साल से बात तो कर रहे हैं जम्मू-कश्मीर, राम मंदिर, धारा 370, हिन्दू-मुस्लिम, पाकिस्तान और चीन की  और जिलाधिकारियों को चुनौती दे रहे हैं स्वास्थ्य सेवाओं से कोरोना को जीतने की।

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उल्टे कोरोना से निपटने के लिए जो वैक्सीन बनवाई नोबल पुरस्कार लेने के चक्कर में वह विदेश में भिजवा दी।

स्वास्थ्य सेवाओं पर भाषण देने के अलावा प्रधानमंत्री ने धेले भर का काम नहीं किया।

ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या राज्य सरकारें जिले में कोरोना रोकथाम के प्रयास नहीं कर रही हैं ?

वैसे कोराना कहर से घबराकर प्रधानमंत्री अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ चुके हैं। तभी तो राज्य सरकारों से ही कोरोना से निपटने के लिए कह दिया था। अब जब कोरोना के मामले कम होने की खबरें आने लगी हैं तो वाहवाही लूटने के लिए जिलाधिकारियों से संवाद कर लिया। अब प्रधानमंत्री गांवों में वाहवाही लूटने में लग गये हैं। क्या इन चरमराई स्वास्थ्य सेवाओं के बल पर कोरोना से जीता जाएगा। हालांकि वह बात दूसरी है कि प्रधानमंत्री ने कोरोना की चपेट में आकर दम तोड़ चुके लोगों के परिजनों को सांत्वना देने के लिए एक भी शब्द नहीं बोला है।

जिलों से रोज खबरें आ रही हैं कि फला जिले के स्वास्थ्य केंद्र में मवेशी बंधे हुए हैं। फला दयनीय हालत में हैं। डॉक्टर नहीं हैं स्टाफ नहीं हैं। दवाएं नहीं हैं। जिलों में रोज ऑक्सीजन की कमी से संक्रमित मरीजों के मरने की खबरें आ रही हैं। कोरोना से जीतने के लिए और आगे बढ़कर आक्सीजन और वेंटीलेटर चाहिए।

गत साल कोरोना काल ही में केंद्र ने बताया था कि ग्रामीण क्षेत्रों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 82 फीसदी विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है। यह जगजाहिर है कि देश की ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (कम्युनिटी हेल्थ सेंटर) बहुत महत्व रखते हैं। यह मैं नहीं बता रहा हूं। यह जानकारी केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने राज्य सभा में दिए गए एक प्रश्न के जवाब दी थी।

देश के कम्युनिटी हेल्थ सेंटर्स में कुल मिलाकर 21,340 विशेषज्ञों की जरुरत की बात बताई गई थी। जिनमें से मात्र 3,881 ही उपलब्ध होने की बात कही गई थी। मतलब 17,459 की कमी थी। प्राइमरी हेल्थ सेंटर्स (पीएचसी) में करीब 1,484 विशेषज्ञों की कमी थी।  क्या ये विशेषज्ञ रखे गये ?

जिस भाजपा शासित प्रदेश उत्तर प्रदेश में वहां के मुख्मयंत्री सब कुछ ठीक बता रहे हैं वहां सबसे ज्यादा विशेषज्ञों की कमी है। जहां 2,716 विशेषज्ञों की जरूरत है जबकि वहां केवल 484 ही उपलब्ध हैं। जनपद बिजनौर में तो यह हाल है कि आबादी के हिसाब से मात्र 0.01 फीसद ही आबादी के लिए स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हैं।

राजस्थान में 1,829 विशेषज्ञों की कमी है। जबकि तमिलनाडु में 1361, गुजरात में 1330, पश्चिम बंगाल में 1321, ओडिशा में 1272 और मध्य प्रदेश में 1,132 विशेषज्ञों की कमी है। इन प्रदेशों में ही अधिकतर लोग गांवों में रहते हैं।

मानकों के आधार पर एक कम्युनिटी हेल्थ सेंटर आम तौर पर मैदानी क्षेत्रों में करीब 120,000 लोगों जबकि पहाड़ी/ आदिवासी और दुर्गम क्षेत्रों में 80,000 लोगों को अपनी सेवाएं प्रदान करता है। जबकि देश में एक कम्युनिटी हेल्थ सेंटर देश के ग्रामीण इलाकों में करीब 165,702 लोगों को अपनी सेवाएं प्रदान करता है। ऐसे में वहां विशेषज्ञों की कमी एक बड़ी भरी समस्या है।

स्वास्थ्य सेवाओं में खामियों के चलते ही गत साल चिंता जताई गई थी कि यदि कोरोनावायरस जैसी बीमारी विकराल रूप धारण करती है तो उससे कैसे निपटा जाएगा ? पर प्रधानमंत्री ने इसे गंभीरता से ही नहीं लिया। ये महाशय तो गोमूत्र और गोबर जैसी बातों को बढ़ावा देते रहे। अपने भाग्य पर इतराते रहे। गोदी मीडिया ने कह दिया कि मोदी ने देश का बचा लिया तो खुश हो गये।

चरण सिंह राजपूत

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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