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समाजवाद

सत्य की बहुस्तरीयता ही बाबा नागार्जुन की कविता की धुरी है
बाबा नागार्जुन की कविता की धुरी है ‘घृणा करो या प्यार करो’, वे इस नारे के आधार पर कविता लिखते हैं। वे समाजवाद से प्यार करते हैं या फिर घृणा करते हैं। वे लोकतंत्र से प्यार करते हैं या घृणा करते हैं।
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