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विश्व सिकल सेल दिवस (World sickle cell day) प्रतिवर्ष 19 जून को मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में अधिकारिक तौर पर वर्ष 2008 में घोषणा की थी, कि हर वर्ष 19 जून को विश्व सिकल सेल दिवस के रूप में मनाया जाएगा। यह दिन सिकल सेल रोग (sickle cell in Hindi), इसके उपचार के उपायों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और दुनिया भर में इस रोग पर प्रभावी नियंत्रण पाने के लिए मनाया जाता है। पहला विश्व सिकल सेल दिवस (world sickle cell day in Hindi) वर्ष 2009 में मनाया गया था। आइए जानते हैं क्या है सिकल सेल रोग, क्या हैं सिकल सेल रोग के लक्षण, क्या हैं सिकल सेल रोग के काऱण और क्या है सिकल सेल रोग का उपचार (sickle cell treatment) ...
सिकलसेल रोग (sickle cell) विकृति एक आनुवंशिक रोग (genetic disease) है। विश्व के पांच प्रतिशत लोग इससे प्रभावित हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाले इस रोग में गोलाकार लाल रक्त कण शरीर की छोटी रक्तवाहिनी में फंसकर लिवर, तिल्ली, किडनी, मस्तिष्क आदि अंगों के रक्त प्रवाह को बाधित कर देते हैं। रक्त कणों के जल्दी-जल्दी टूटने से रोगी को सदैव रक्त की कमी रहती है। इसलिए इस रोग को सिकलसेल एनीमिया (Sickle cell anemia) भी कहा जाता है।
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Over 300000 babies with severe haemoglobin disorders are born each year - WHO
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार विश्व में प्रतिदिन पांच हजार सिकल ग्रस्त बच्चे पैदा होते हैं, जिनमें साठ प्रतिशत बच्चे एक वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते और बाकी बीस वर्ष के पहले काल-कवलित हो जाते हैं। यह बीमारी अफ्रीका, सऊदी अरब,एशिया और भारत में ज्यादा पाई जाती है, जहां मलेरिया का प्रकोप अधिक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस रोग का संज्ञान लेते हुए प्रतिवर्ष 19 जून को विश्व सिकल सेल दिवस मनाने की घोषणा की है।
Auto cell disease in Hindi
संयुक्त राष्ट्र संघ में इसे एक घातक आनुवांशिक रोग चिह्नित करते हुए कहा है कि इस विकृति के प्रबंधन एवं जनजागरण के चलते मलेरिया, कुपोषण एवं एनीमिया से होने वाली बीमारी से शिशु मृत्यु दर में कमी लाई जा सकेगी।
यह विडंबना ही है कि वर्ष 1952 तक भारत में इस बीमारी के विषय में विशेष जानकारी नहीं थी। समय के साथ मालूम हुआ कि मध्य भारत के आदिवासी पिछड़े और वंचित लोगों का एक बहुत बड़ा वर्ग इस बीमारी से ग्रस्त है। दक्षिण गुजरात के भी, गमीत, नायक और पटेहा जैसी जातियों के बारह से 25 प्रतिशत व विदर्भ के गढ़चिरौली, चंदरपुर नंदूरवार व अन्य जिलों 25 प्रतिशत तक सिकल सेल विकृति से प्रभावित हैं।
In some areas of Odisha, every fifth person is a carrier of this disease sickle cell.
ओडिशा के कुछ क्षेत्रों में हर पांचवा व्यक्ति इस रोग का वाहक है। आंध्रप्रदेश, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, झारखंड के आदिवासी इलाकों में भी इस रोग की पहचान की गई है। मध्यप्रदेश के कई जिलों में दस से तीस प्रतिशत लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं।
छत्तीसगढ़ में किए गए सर्वें के अनुसार यहां पिछड़े, वंचित और आदिवासी लोगों में यह बीमारी दस से चालीस प्रतिशत तक व्याप्त है। एक सर्वे के अनुसाल छ.ग. में तीस लाख लोग सिकल के वाहक एवं पच्चीस लाख सिकल सेल के रोगी हैं। भारत की विशाल जनसंख्या को देखते हुए यह अनुमानित है कि विश्व के आधे सिकल सेल रोगी भारत में ही रहते हैं। एक लंबे समय तक इस विभीषिका को पहचाना नहीं जा सका। अनुसंधान के अभाव में चिकित्सक अनभिज्ञ प्रशासक संवेदनाशून्य और मीडिया मौन रहा। अब भारत में सिकलसेल रोग पर जागृति बढ़ी है।
The resolution that established World Sickle Cell Day also urged countries to fund and establish healthcare systems and specialized care to support and improve care for sickle cell disease.
Stay tuned for more on #WorldSickleCellDay #sicklecell101 #WSCD20 #WSCD #sicklecell pic.twitter.com/w7rzElVKFL
— Sickle Cell 101 (@sicklecell101) June 17, 2020
छत्तीसगढ़ में सिकल सेल इंस्टीट्यूट (Sickle cell institute in chhattisgarh) की स्थापना हुई है। आज भी भारत में सिकल रोगियों की वास्तविक संख्या (Actual number of sickle patients in India) का कोई रिकार्ड उपलब्ध नहीं है।
How to manage Sickle cell
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19 जून को विश्व सिकल सेल दिवस मनाया जाता है इस दिन आम जनता को इस रोग को समझाने के अतिरिक्त यह बतलाना आवश्यक है कि यदि सही उपाय किए जाए तो इस रोग का प्रसार रोका जा सकता है। विवाह पूर्व परामर्श इसके प्रबंधन का मुख्य आधार है। सिकल सेल व्यक्ति की तरह के होते हैं-एक वाहक एवं दूसरा सिकल सेल रोग पीड़ित।
जब माता या पिता से एक एक जीन संतान को मिलता है तो इसे सिकल का वाहक कहा जाता है। सिकल वाहक को कोई तकलीफ नहीं होती है। उन्हें खुद नहीं मालूम कि वे सिकल के वाहक हैं। उन्हें किसी इलाज की भी जरूरत नहीं होती। जब वे आपस में विवाह करते हैं तो इस रोग के प्रसार की संभावना बढ़ जाती है। उन्हें विवाह पूर्व सिकल कुंडली मिलाने की समझाइश दी जाती है। यदि दो वाहक आपस में विवाह कर भी लेते हैं तो उन्हें गर्भधारण के शुरुआती महीनों में गर्भजल परीक्षण जांच कराकर गर्भस्थ सिकल रोगी बच्चे का गभपात करा लेना वैधानिक है।
नवजात शिशुओं का जन्म के समय से ही रक्त परीक्षण कर सिकल रोगी बच्चे को चिन्हित किया जा सका है। रोगग्रस्त जन्मे बच्चे को दो माह की आयु से ही पेनीसिलीन की गोली और निमोकोककस वैक्सीन देकर इन बच्चों में संक्रमण से होने वाली बीमारी को रोका जा सकात है। आवश्यकतानुसार नि:शुल्क रक्त प्रदाय कर एनीमिया और सिकल रोग से होने वाले दुष्प्र्रभाव को रोक कर ऐसे बच्चों को लम्बा जीवन काल दिया जा सकता है।
अब सिकल सेल रोग पर विश्व के कई देशों में अनुसंधान (Research on sickle cell disease) का कार्य भी चल रहा है।
हाइड्रोक्सीयुरिया जैसी दवाओं ने सिकल रोगियों का प्रबंधन आसान कर दिया है। अब विश्व में जेनेटिक इंजीनियरिंग, जीन थैरेपी एवं मालेकुलर जेनेटिक इंजीनियरिंग अनुसंधान का कार्य प्रगति पर है। अब सिकल ग्रस्त रोगियों को दिव्यांग व्यक्तियों को दी जाने वाली सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जा रही है। सिकल सेल रोगियों को इलाज के लिए आने-जाने के लिए रेल यात्रा में कंसेशन दिए जाने का प्रावधान भी है। सिकल गस्त प्रदेशों के सुदूर इलाकों में मोटर बस से की जाने वाली यात्रा में भी ऐसी छूट दिलाना उचित होगा।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1912 में पारित अपने प्रस्ताव में सिकल सेल विकृति को एक घातक आनुवांशिक रोग चिन्हित करते हुए कहा है इस विकृति के प्रबंधन और जनजागरण के चलते मलेरिया व एचआईवी से होने वाली मृत्यु दर को कम किया जा सकता है।
- डॉ. ए. आर. दल्ला
Today is World Sicke Cell Day. To all the WARRIORS around the world, we stand by you and your families as you struggle through this trial.
Sickle Cell Disease is easily PREVENTABLE.
Know your GENOTYPE and don't GAMBLE with the health of your unborn child.#WorldSickleCellDay pic.twitter.com/P3r33HtcWQ
— Abdulsalam Nuhu (@salamnuhu) June 19, 2020
(देशबन्धु में प्रकाशित लेख का संपादित अंश साभार)